सोमवार, 23 अप्रैल 2018

आर्य समाज हिन्दू विरोधी कैसे ??

आर्य समाज हिंदू विरोधी कैसे ?

आर्यसमाज नहीं मानता कि श्रीकृष्ण जी माखन चोर थे, गौएँ चराते थे, गोपियों संग रास रचाते थे, राधा के संग प्रेम प्रसंग में लिप्त थे, कुब्जा दासी के साथ समागम किया था। या वे ईश्वर का अवतार थे ।
अधिकांश सनातन धर्म अनुयायी जन द्वारकाधीश योगेश्वर श्रीकृष्ण को छोड़कर, पार्थसारथी-योगेश्वर श्रीकृष्ण को भूलकर  माखनचोर व राधा के साथ रमण करने वाले राधारमण के पीछे पड़े हैं। लोग श्रीकृष्ण के 'विश्वरूप' को भी पसंद नहीं करते उन्हें तो 'राधा माधव' वाली राधा रमण वाली काल्पनिक छवि ही पसन्द आती है।
लेकिन आर्य समाज इन सब काल्पनिक बातों पर बिल्कुल विश्वास नही करता। ये सब कपोल कल्पित घटनाएं हैं जो कि भक्ति की अतिरेक में लिखी गयी है। जो श्रीकृष्ण जी के चरित्र को और धूमिल ही करती हैं।

बल्कि आर्य समाज ये मानता है कि श्रीकृष्ण जी जन्म से लेकर  ४८ वर्ष की उम्र तक ब्रह्मचारी थे जैसा कि महाभारत में वर्णित है। उनकी सिर्फ एक पत्नी रुक्मणी थी जिनसे विवाह करके भी उसके साथ विष्णु पर्वत पर उपमन्यु ऋषि के आश्रम में १२ वर्ष तक ब्रह्मचर्य तप करके अपने समान तेजस्वी पुत्र प्रद्युम्न को पैदा किया। एक महान योगेश्वर होने की वजह से वे नित्य ईश्वर उपासना, प्राणायाम, संध्या, अग्निहोत्र आदि करते थे। अनेकों प्रकार की युद्ध कलाओं में दक्ष थे।  उनका प्रिय शस्त्र सुदर्शन चक्र था। वे एक महान विचारक भी थे। वे अद्वितीय योद्धा थे।भारतवर्ष के समस्त गणराज्यों को यादवों के संघर्ष तले एक करने वाले महान राजनीतिज्ञ थे ।
महर्षि दयानन्द सरस्वती ने भी कहा है कि श्री कृष्ण जी का महाभारत ग्रन्थ में इतिहास अति उत्तम है। उनके गुण, कर्म व स्वभाव आप्त पुरूषों अर्थात् वेद के ऋषियों के समान थे। उन्होंने जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त कोई बुरा काम नहीं किया।
मूर्तिपूजा के प्रसंग में सत्यार्थ प्रकाश के ग्यारहवें समुल्लास में वह लिखते हैं कि ‘‘संवत् 1914 (सन् 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम) के वर्ष में तोपों की मार से मंदिर की मूर्तियां अंगरेजों ने उड़ा दी थीं, तब मूर्ति की शक्ति कहां गई थीं? प्रत्युत् बाघेर लोगों ने जितनी वीरता की, और लड़े, शत्रुओं को मारा, परन्तु मूर्ति एक मक्खी की टांग भी न तोड़ सकी। जो श्री कृष्ण के समान (उन दिनों) कोई होता तो इनके (अंग्रेजों के) घुर्रे उड़ा देता और ये लोग भागते फिरते। भला यह तो कहो कि जिसका रक्षक मार खाय, उसके शरणागत क्यों न पीटे जायें?’’

वे न केवल साहित्य, संगीत, कला, नृत्य और योग विशारद थे। अपितु वे इस भारत भूमि पर आम लोगों के लिए लड़ने वाले योद्धा थे, जिन्होंने इंद्र इत्यादि जैसे ताकतवर लोगों के अतिरिक्त जुल्म के विरुद्ध शंखनाद किया था।
श्रीकृष्ण ने कर्म से, ज्ञान से और वचन से मनुष्यमात्र को नई दिशा दी। उन्होंने विश्व को कर्म योग और भौतिकवाद से जोड़ा।

तो ऐसा मानने से आर्य समाज
हिंदू विरोधी कैसे ?

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