शुक्रवार, 11 मार्च 2016

JNU छाप बुद्धिजीवी वर्ग में पाँव पसारती #Congiunism की विचारधारा


भारत में एक नयी विचारधारा का जन्म हो रहा है..कांग्रेस और कम्युनिज्म के देशद्रोही गठबंधन की जिसमें इस्लामिक जेहाद और हिन्दू विरोध का स्वाभाविक सा तड़का लगा हुआ है..इसे मैंने #Congiunism का नाम दिया है..
जानिये इस #Congiunism के मूल तत्व क्या हैं..
ये कांग्रेस और कम्युनिष्ट की सम्मिलित विचारधारा है..
 ये भारत को जोड़ने में नहीं बल्कि तोड़ने में विश्वास रखती है 
ये कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानते.
ये लोग दुर्गा माता को वेश्या कहते हैं..
ये लोग भारतीय सेना के जवानो की मौत का जश्न मनाते हैं.
 ये भारतीय सेना के लीगों को बलात्कारी कहते हैं.
 इनके आदर्श अफजलगुरू हैं.
 ये जेएनयू दिल्ली में ज्यादा मिलते हैं।
 इनके प्रमुख सहयोगी राहुल गांधी,अरविन्द केजरीवाल,ABP News,NDTV और आज तक हैं..
आशुतोष की कलम से 

ट्विट@ashu2aug
कृपया इस विचारधारा के महान विचार सबसे शेयर करें...

भारतीय सेना बलात्कारी है: कांग्रेसी सपोला कामरेड कन्हैया

कांग्रेस,कम्युनिष्ट और केजरीवाल का पाला हुआ एक सपोला अपनी जेएनयू की बिल से बोल रहा है की भारतीय सेना बलात्कारी है..
मेरा प्रश्न उस सपोले से नहीं उसे दूध पिलाने वाले कांग्रेसी,वामपंथी और केजरीवाल की टोपी गैंग से है।
बाढ़ से लेकर पुल बनाने तक सेना चाहिए। जब आतंकवादियों से तुम्हारी पैंट गीली पीली हो तो भी सेना चाहिए जब भूकंप में तुम्हारा घर तबाह हो तो सेना चाहिए और जब सीमा पर गोली चले तब तो सेना चाहिए ही..कई कांग्रेस,वामपंथी,केजरीवाल जैसे नेताओं ने अपने घरों की महिलाओं की सुरक्षा में सेना को तैनात कर रखा है तो अगर सेना बलात्कारी है तो तुम सबकी बहनो,बेटियों और पत्नियों का बलात्कार हुआ होगा जिन्होंने सैनिको की सुरक्षा या सेवा ली है..
सबसे पहल प्रश्न तो जेएनयू के गद्दारों के साथ खड़े राहुल गांधी के वंशावली पर हो जायेगा क्योंकि उनके नाना,दादी,दीदीमम्मी सबने भारतीय सेना की सेवाएं ली हैं और ले रही हैं.केजरीवाल जी आप की बिटिया और पत्नी भी यदा कदा सुरक्षा लेती हैं..वामपंथियों का क्या कहना सेना के जवान के मरने का जश्न भी मनाते हैं और सुरक्षा में सेना का जवान भी चाहिए..
यदि सेना बलात्कारी है तो 24 घंटे सेना के भरोसे साँस लेने वालों तुम सब अपने पिता की संतति कैसे हो गए??तुम सबकी बाप हुई #भारतीय_सेना..
कांग्रेसियों,कम्युनिष्ट और केजरीवाल के गुंडों Narendra Modi को गाली देना स्वीकार है मगर देश को या भारतीय सेना को गाली देकर तुम ये साबित कर दे रहे हो की तुम्हारे जन्म से माह पहले तुम्हारी अम्मीजान जरूर लाहौर के "हीरामंडी" का पर्यटन करके आई होंगी...

 आशुतोष की कलम से
 टवीट:  @ashu2aug

शनिवार, 5 मार्च 2016

अभिव्यक्ति की आजादी

अभिव्यक्ति की आजादी
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पढ़ते हुए बच्चे का अनमना मन
टूटती ध्यान मुद्रा
बेचैनी बदहवासी
उलझन अच्छे बुरे की परिभाषा
खोखला करती खाए जा रही थी .......
कर्म ज्ञान गीता महाभारत
रामायण राम-रावण
भय डर आतंक
राम राज्य देव-दानव
धर्म ग्रन्थ मंदिर मस्जिद ..और भी बहुत कुछ ..
पी एच डी कर भी जेल जाना
गरीब अमीर परदा दीवार
आरक्षण भेदभाव मनुवाद सम्राज्य्वाद
सब मकड़जाल सा उलझा तो
बस उलझता गया…. दिमाग सुन्न.......
किताबें फेंकशोर में खो गया
गुड्डे गुड़िया के खेल में
अचानक क्रूरता हिंसा ईर्ष्या जागी
कपडे नोंच चीड़ फाड़ रौंद पाँव तले

नर- सिंह  सा हांफ गया ............................
आजादी -आजादी इस से आजादी उस-से आजादी या फांसी ?
अभिव्यक्ति की आजादी ...
कुछ लोगों की भेंड़ चाल झुण्ड देख
वह दौड़ा अंधकार में अंधे सा ....
माँ ने एक थप्पड़ जड़ा ..रुका ……
आँचल से पसीना पोंछ ..समझाया
बैठाया… प्यार से पोषित करदिखाया
देख !  चिड़िया भी अपना घर तिनके तिनके ला
बनाती  हैं घोंसला… उजाड़ती नहीं
बन्दर मत बन -….उजाड़ -आग -विनाश नहीं
जिस थाली में खाते हैं छेद नहीं करते
अपना घर परिवेश समाज देश समझ
संस्कार प्यार ईमान धर्म कर्म
तेरे खोखले पी. यच. डी. विज्ञान पर भारी हैं
भूख ..गरीबी जाति धर्म नहीं देखती
ये वाद .. वो वाद ..विवाद ही विवाद
सामंजस्य समझौता परख जाँच
जरुरी है महावीर बुद्ध ज्ञानी बनने हेतु
शून्य में विचर पानी में लाठी मत पीट
कुएं में एक भेंड़ कूदी
फिर सब सत्यानाश ...हाहाकार
जंगल राज ..अन्धकार से सहजता में
सरल बन ..शून्य बन
फिर ऊंचाइयों में चढ़ना आसान है
बच्चे ने आकाश की ऊंचाइयों में झाँका
कुछ आँका ..जाँचा
समझ गयी थी
आग लगाने से विकास नहीं होता
होता है विनाश ..नंगापन का नाच
भूख नहीं मरती
कटुता ही है बढ़ती
और हम जाते हैं ग्राफ में नीचे
पचास साल और पीछे
और फिर तिरंगा ले वह सावधान हो गया
वन्दे मातरम ..
जय हिन्द .....
उहापोह अब सुसुप्ति में चुका  था ...
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर
कुल्लू यच पी
-.५२ पूर्वाह्न

२८ फरवरी २०१६

कन्हैया की रिहाई ....... बधाई ..उनके शुभ चिंतकों को

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र संगठन के पदाधिकारी कन्हैया कुमार को कल दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर रिहा कर दिया गया. हालाकि  दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश में ऐसी  बहुत सारी  शर्तें हैं जिनसे JNU में जो कुछ हुआ उसके प्रति अच्छा सन्देश नहीं है. ये सर्व विदित है कि कैसे JNU  को राष्ट्र विरोधी तत्वो का अड्डा बनाया गया और कैसे वहां पर राष्ट्र विरोधी गतिविधियां चलाई जाती है और कैसे वहां पर  देश के बहुत संख्यक समुदाय के प्रति कुत्सित भावनाएं निकाली जाती हैं . इन सब के पीछे एक सुनियोजित अभियान है और इस अभियान को राष्ट्रीय स्तर  और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी धन उपलब्ध कराया जाता है. अंतरिम जमानत आदेश की शर्तों में कन्हैया कुमार को किसी भी देश विरोधी अभियान में शामिल ना होना, किसी भी ऐसी चीजों से अलग रहना  जिससे देश की छवि प्रभावित होती है, देश की अखंडता को धक्का पहुंचता है. लेकिन इस जमानत को एक बहुत बड़ी विजय के रूप में प्रचारित और प्रसारित किया जा रहा है .

  रिहाई के बाद कन्हैया कुमार के लिए  JNU में उसी रात  लगभग 11:00 बजे एक सभा का आयोजन किया गया जिसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लगभग हर चैनेल ने सीधे प्रसारित किया. जिन लोगों ने ये  सीधा प्रसारण देखा और कन्हैया कुमार द्वारा संबोधन और उस में कही गई बातों का सुना, उन लोगों को इस बात का एहसास जरूर हुआ होगा कि उसके बोलने की स्टाइल और डायलोग बहुत ही  अच्छे हैं, पूरा भाषण किसी मंझे  हुए राजनेता से कम नहीं था . भाषण को बहुत ही सावधानी  से लिखा गया था और मुख्य निशाना केंद्र व् सरकार नरेंद्र मोदी थे . यह कहना भी अप्रासंगिक नहीं होगा कि  पूरे भाषण में कन्हैया कुमार ने कई राजनीतिक दलों का और कई नेताओं का नाम लेकर उनके प्रति आभार व्यक्त किया और प्रशंसा की जिन्होंने उनका साथ दिया. ये दर्शाता है कि यह पटकथा कहीं और लिखी गयी . कन्हैया कुमार के अतीत को अगर देखा जाए तो ऐसा नहीं लगता कि वह किसी मंझे  हुए नेता की  तरह सधा  हुआ भाषण देने की कला जानते हैं.  और तो और, भाषण के अंत में उसी तरह की  नारेबाजी की गई.... आजादी.... आजादी जैसे कि उमर खालिद ने हिंदुस्तान से  आजादी की  बात की थी. शायद इसका उद्देश पूरे देश को संदेश देना होगा की उस दिन अफजल गुरु की बर्षी पर भी  इसी तरह के भाषण दिए गए थे  और जो भी वीडियो पुलिस के समक्ष प्रस्तुत किये गए या  मीडिया में दिखाए गए गए वह सही नहीं थे. यही काफी कुछ नियोजित लगता है.

कन्हैया कुमार की जेल के दौरान  उनके परिवारी जनो द्वारा  जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के छात्रों को संबोधित करना और कन्हैया ने  जो भी किया  उस पर गर्व किया . भाषण में तमाम लोगों पर नाम कटाक्ष किया गया और एलान किया गया कि आजादी की जंग चलती रहेगी. स्वाभाविक है आजादी की जंग का मतलब मोदी सरकार से आज़ादी. ये शुद्ध राजनीति है और इसलिए जो पूरा ड्रामा शुरु हुआ और उसे  जो मोड़ दिया गया वह आगामी चुनाओं को ध्यान में रखते हुए  किया गया है.

भारत में पिछले  कुछ महीनों में हुए आन्दोलनों पर  अगर  सिलसिले बार गौर किया जाए तो आप पाएंगे कितना कुछ बिलकुल इवेंट मैनेजमेंट की तरह किया जा रहा है . फिल्म एवं टेलीविजन इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया पुणे में छात्रों का प्रदर्शन होता है, कथित  बौद्धिक लेखक वर्ग असहिष्णुता के नाम पर अपना पुरस्कार वापस करता है और तब  तक चलता रहता है जब तक बिहार के चुनाव संपन्न नहीं हो जाते,  इसी बीच में रोहित वेमिला का मामला आता है, बीफ का मामला गर्माता है . इसके बाद मैं जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय का नंबर आता है और अफजल गुरु के फांसी के दिन को  शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है, उसकी प्रशंसा की जाती है. अफजल गुरु के पक्ष में स्वयं  उमर खालिद और एक विशेष समुदाय संबंध रखने वाले कई नेता मीडिया बहस में अफजल गुरु और कई ऐसे लोगों के पक्ष में बयान देते हैं. 

इस बात में किसी को भी कोई संदेह नहीं कि जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में राष्ट्र विरोधी नारे लगाए गए . अखिलेश गुरु के समर्थन में नारे लगाए गए और बहुत से ऐसे नारे लगाए गए कि कोई भी राष्ट्र भक्त और राष्ट्र हित में सोचने वाला व्यक्ति बर्दाश्त नहीं कर सकता है. जब इस मामले को मीडिया में उछाल दिया गया तो तथाकथित बौद्धिक वर्ग सामने आ गया इसमें राजनैतिक दल भी थे और कई गणमान्य व्यक्ति भी. पूरे मामले को ऐसा मोड़ दे दिया गया जैसे की राष्ट्र और राष्ट्र विरोध की भावना ना होकर केंद्र सरकार और छात्र के बीच का मामला है. कन्हैया कुमार को जेल  ले जाते समय  धक्का मुक्की को उन वकीलों के लिए ऐसा पेश किया गया जैसे उनका कृत्य राष्ट्रद्रोह से भी भयंकर है. इस बीच उमर खालिद और उसके अन्य साथी  भूमिगत हो जाते हैं और जब पूरा माहौल उन के पक्ष में बन जाता है, कई राष्ट्रीय नेता और अंतरराष्ट्रीय हस्तियां  उन के पक्ष में खड़े हो जाते हैं तो अचानक प्रगट हो जाते हैं. दिल्ली सरकार जिसके पास पुलिस का कंट्रोल  नहीं है, कानून व्यवस्था का भी दायित्व  नहीं है,  मजिस्ट्रेट जांच का आदेश देती है और उस जांच में यह पाया जाता है कि जो वीडियो पुलिस को दिए गए और जिन वीडियो के आधार पर भी कार्रवाई की जा रही उनके साथ छेड़छाड़ की गयी थी. इन सबके बीच कई राजनीतिक दलों के नेता कैम्पस  जाते हैं और सभी छात्रों के समर्थन में खड़े हो जाते हैं . कई राज्यों के मुख्यमंत्री अपने-अपने राज्यों से बयान देते हैं. अब कन्हैया बामपंथियो, कांग्रेस और आप के लिए चुनाव प्रचार करेंगे.


विषय बहुत गंभीर है और इसको उतनी ही गंभीरता से हल करने की जरूरत है. देशद्रोहियों के साथ,  देश के विरुद्ध बात करने वालों के साथ, देशद्रोहियों का साथ देने वालों के साथ, बहुत ही सख्ती से पेश आने की जरूरत है लेकिन देश के पालनहार कर्णधार राजनैतिक  स्वार्थ बस .....देश हितो के विरुद्ध कार्य कर रहे हैं . राजनीतिक स्वार्थ आज देश तो बहुत बड़ा हो गया है. कई बार लगता है भारत कैसा महान है ? और कितना महान है ?

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शिव प्रकाश मिश्र 

http://lucknowcentral.blogspot.in/2016/03/blog-post_4.html


गुरुवार, 3 मार्च 2016

कर्मचारी भविष्य निधि .....आयकर.....या सजा ?

बजट में वित्त मंत्री द्वारा कर्मचारी भविष्य निधि पर लगाए जाने वाला टेक्स साधारण टैक्स नहीं है यह कर्मचारियों के लिए जिन्होंने 30 35 साल की सेवा अवधि पूरी कर ली है और निकट भविष्य में सेवानिवृति होने वाले हैं, बहुत बड़ी सजा है. यह ज्यादातर कर्मचारियों की राय है.  भविष्य निधि एक  लंबी अवधि की संचय योजना है और उसका उद्देश्य सेवा निवृत्ति के समय एक मुस्त राशि प्रदान करना है ताकि वे अपनी जिम्मेदारियों का वहन कर सकें.  वित्त सचिव और वित्त  राज्य मंत्री के बयानों और स्पष्टीकरण से ऐसा मालूम हुआ है कि  संभवत: ब्याज की 60% भाग पर टैक्स लगेगा.

 टैक्स का प्रावधान  करने वाले केंद्र सरकार के उच्च अधिकारियों को शायद ये  नहीं मालूम है कि  सेवा मुक्त होने पर भविष्य निधि की राशि जो कर्मचारी को मिलती है उस में आधे से अधिक हिस्सा सिर्फ ब्याज का होता है और अगर ब्याज की 60% राशि पर भी टैक्स लगाया जाता है तो यह बहुत अधिक होगा लगभग. अगर कोई कर्मचारी पेंशन सिस्टम में निवेश करने की बजाय टैक्स देना पसंद करें, तो अनुमान है कि  वह व्यक्ति अपने भविष्य निधि का लगभग पांचवा (१८-२०%) हिस्सा सिर्फ टैक्स के रुप में गवां देगा . अगर यह पैसा  पेंशन योजना में  लगाया जाता है जो आज की परस्थितयों में  बहुत अच्छा सुझाव नहीं है, क्योंकि एक तो ज्यादातर योजनाएं भारत में बहुत आकर्षक लाभ नहीं दे रहीं  हैं और दूसरे इन  योजनाओं से निश्चित समय बाद जो पैसा निकालने दिया जाता है तो उन पर आयकर लगता है। 

 पेंशन योजना की  तुलना में अगर इस राशि को कहीं अन्यत्र निवेश किया जाता है तो उसके लाभ काफी जादा है. स्पष्ट है कि जो  कर्मचारी रिटायर होते हैं उनके पास भविष्य निधि के फंड के अलावा बहुत सीमित विकल्प होते हैं और खास तौर से ऐसे लोग जो अपनी जिम्मेदारियों के कारण अपने सेवाकाल में ऐसा कुछ नहीं कर पाते हैं जिसके  सपने उनके दिल में होते हैं. ये लोग सेवा मुक्त होने  के बाद ऐसा क्या करेंगे ? कार खरीदेंगे.. मकान खरीदेंगे...बच्चों की शादी विवाह करेंगे...  जमीन खरीदेंगे या जाकर गांव कस्बे या शहर  में बसेगे. उनके लिए यह प्रस्ताव बहुत ही मुसीबत देने वाले हैं . 

वास्तव में यह टैक्स नहीं... सजा है और सरकार को इस से बचना चाहिए . इस तरह का प्रावधान एक तो अनायास नहीं किया जा सकता और दूसरे ऐसे लोग अपने पूरे सेवाकाल में तमाम कठनाईयां सहने के बाद अपने भविष्य निधि को हाथ भी नहीं लगाया और भविष्य के लिए सुरक्षित रखा. मनोवैज्ञानिक रुप से भी एक अच्छा कारण सरकार के लिए नहीं है.. वित्त मंत्रालय से जुड़े तमाम अधिकारियों ने कहा है इस योजना का उद्देश भविष्य निधि पर टैक्स लगा कर  सरकार के लिए पैसे जुटाना नहीं है बल्कि सरकार चाहती है की लोगों को सामाजिक सुरक्षा मिले. अगर सरकार की यह बात स्वीकार भी की जाए तो भी इसे तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता. इस तरह की योजना अगर लागू करनी है तो नए कर्मचारियों के लिए लागू करनी चाहिए और जो कर्मचारी अगले कुछ सालों में रिटायर होने वाले हैं उन पर यह योजना थोपी नहीं जानी चाहिए.  इस तरह की योजनाएं बनाने वाले मुख्यता केंद्र सरकार के वह बड़े अधिकारी है जिनके पास अच्छी संपत्ति है और जिन्होंने देश विदेश घूमकर सामाजिक सुरक्षा की विभिन्न  योजनाएं देखी हैं जिनका भारत में काम करने वाले छोटे कर्मचारियों की रोजाना जिंदगी और समस्याओं से कोई सरोकार नहीं है. ये  वह अधिकारी हैं जिनको इतनी पेंशन मिलती है जो शायद प्राइवेट और पब्लिक सेक्टर के निकायों में काम करने वाले बड़े अधिकारियों की सैलरी से भी ज्यादा होती है. स्वाभाविक है वह शायद इस योजना को समझ नहीं पाएंगे . 

अच्छा  होगा यदि सेवा मुक्त होने वाले कर्मचारी अपना पैसा कैसे इस्तेमाल करेंगे ? कहां लगाएंगे ? इसका फैसला उनके ऊपर छोड़ देना चाहिए. इस तरह की जो सोशल सिक्योरिटी की योजनाएं लागू की जानी  है वह कर्मचारियों के करियर की शुरुआत में लगाई जानी चाहिए. कम से कम भी सेवा मुक्त होने वाले कर्मचारियों पर यह चीजे नहीं थोपी  जानी चाहिए.  
इस प्रावधान को तुरंत वापस ले लेना चाहिए.


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               -  शिव प्रकाश मिश्रा 

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