रविवार, 9 दिसंबर 2012

मुकदमा, सियासत और फजीहत

( “पोल इंडिया ” राजनीतिक पत्रिका के दिसबंर अंक में प्रकाशित लेख) मंगल यादव यूपी सरकार की फजीहत कम होने का नाम नही ले रही है। यूपी की अखिलेश सरकार के कई फैसलों की विपक्ष से लेकर कोर्ट तक आलोचना हुई है। चाहे कई राजनेताओं के मुकदमें वापस लेने की बात हो या फिर कुछ महत्वपूर्ण जगहों पर विस्फोट के आरोप में जेल में बंद आरोपियों पर से मुकदमें वापस लेने की बात हो किसी औऱ मामलों में फैसले लेने की अखिलेश सरकार की किरकरी हुई है। अभी हाल में ही 22 नवबंर को यूपी सरकार की इलाहाबाद हाईकोर्ट में किरकिरी हुई। सात मार्च 2006 में वाराणसी के संकटमोचन मंदिर, दशाश्वमेघ घाट, कैंट रेलवे स्टेशन और दिसबंर 2007 को रामपुर सीआरपीएफ कैंप पर आतंकी हमले मामले को वापस लेने के विरोध में याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने अखिलेख सरकार की जमकर लताड़ लगाई। कोर्ट ने तंग लहजे में कहा कि आज आप मुकदमें वापस ले रहे हैं कल पद्मश्री भी देंगे। वाराणसी ब्लास्ट मामले में आरोपी वलीउल्ला और शमीम पर लगे देशद्रोह, हत्या औऱ अन्य गंभीर मुकदमें वापस लिए जाने की उत्तर प्रदेश की तैयारी पर कोर्ट ने सख्त नाराजगी जाहिर की है। मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस आर.के अग्रवाल और जस्टिस आर.एस.आर मौर्य की बेंच ने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा कि आऱोपी आतंकी है या नहीं, यह तय करना कोर्ट का काम है राज्य सरकार का नहीं। उत्तर प्रदेश सरकार के इस फैसले के विरोध में वाराणसी के सामाजिक कार्यकर्ता राकेश श्रीवास्तव और एडवोकेट नित्यानंद चौबे ने हाइकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर आरोपियों पर लगे मुकदमें हटाने को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने मुकदमा हटाने की प्रक्रिया पर राज्य सरकार से आख्या मांगी है। इलाहाबाद हाइकोर्ट के तल्ख टिप्पणी से विपक्षी पार्टियों विशेषकर बसपा औऱ भाजपा को घर बैठे मुद्दा मिल गया। इन पार्टियों ने अखिलेख सरकार की जमकर आलोचना की है। वाराणसी और रामपुर ब्लास्ट मामले के अलावा अखिलेख सरकार कई जाने-माने लोगों पर दर्ज मामले या तो वापस ले लिए हैं या फिर वापस लेने की तैयारी की है। इनमें प्रमुख रुप से कैबिनेट मंत्री आजम खान, भाजपा सांसद वरुण गांधी, सपा के पूर्व सिपाहकार रहे अमर सिंह और फिल्म अभिनेता संजय़ दत्त प्रमुख हैं। राज्यसभा सांसद अमर सिंह पर 2009 में माया सरकार के समय में मनी लांड्रिंग का केस दर्ज किए गए थे। जबकि रामपुर जिले में कैबिनेट मंत्री आजम खान पर चार केस दर्ज किए गए। ये मामले 2007 में बसपा सरकार में दर्ज किए गए थे। इन्हें वापस लेने की प्रक्रिया रामपुर की अदालत में चल रही है। आजम खान पर 2007 में बसपा प्रमुख मायावती पर आपत्तिजनक भाषण देने औऱ रामपुर के जिलाधिकारी पर हमला करने के आरोप में मुकदमें दर्ज किए गए थे। इसी प्रकार 2011 में यूपी सरकार ने गौतमबुद्धनगर के भट्टा पारसौल गांव के किसानों पर दर्ज सारे मामले वापस ले लिए। गौरतलब है कि भट्टा पारसौल गांव के किसान अपनी जमीनों का मुआवजा बढ़ाए जाने की मांग को लेकर आंदोलन किया था। प्रदर्शन के दौरान ही आंदोलन कर रहे किसानों पर कई मामलों में केस दर्ज किए गए थे। उत्तर प्रदेश सरकार के इन फैसलों पर अपनी राय जाहिर करते हुए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता राजेश गोगना कहते हैं कि एक सरकार मामले दर्ज करे दूसरी सरकार मामले वापस ले ले ऐसे फैसलों से नेताओं को तो फायदा होगा। लेकिन न्याय प्रक्रिया प्रभावित होगी औऱ इससे आम आदमी का न्यायिक प्रक्रिया से विश्वास उठ जाएगा। गोगना का यह भी कहना था कि सरकार अगर ऐसा कदम उठाती है तो यह न्यायपालिका और प्रजातंत्र के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता के अनुसार अपराध हुआ है या नहीं इसे तय करना न्यायालय का काम है सरकार का नहीं। अगर सरकारें ऐसे कदम उठाने लगेंगी तो कोर्ट क्या काम करेगी। जाहिर सी बात है अगर राज्य सरकारें मनमाने तरीके से किसी पर द्वेष की भावना से प्रेरित होकर मुकदमा दर्ज करती रहेंगी और सत्ता में आने के बाद दूसरी पार्टियां सारे केस वापस लेती रहीं तो न्याय प्रक्रिया प्रभावित तो होगी ही साथ में अराजकता को बढ़ावा मिलेगा। जगह-जगह बात-बात पर राजनीतिक लोगों समेत कई लोगों पर फर्जी मुकदमों की भरभार होगी। फिर सत्ता परिवर्तन पर केस वापस लेने की होड़ होगी। इससे सरकारी कामकाज प्रभावित होगा औऱ कोर्ट में मुकदमों की बाढ़ सी आ जायेगी। लोग न्याय के लिए कोर्ट पर कम राजनीति औऱ नेताओं पर अधिक भरोशा करेंगे। आम आदमी न्याय के लिए भटकता फिरेगा। राजनीतिक स्तर के लोग मनमाने तरीके से काम-काज करेंगे। समाज में हर तरफ अराजकता के माहौल में लोगों का जीना मुहाल हो जाएगा। लोगों की उम्मीद कोर्ट ही है जो समय-समय पर सरकार के कामकाज पर निगाह रखती है और जनहित पर प्रभाव पड़ने वाले फैसलों पर कोर्ट ही कड़ी निगाह रहती है। सरकार अपनी जिम्मेदारी फली-भांति निभाए या ना निभाए लेकिन कोर्ट अपनी जिम्मेदारी को बखूबी अंजाम देती है। कोर्ट की वजह से ही कई दिग्गज नेताओं को जेल की हवा खानी पड़ी है औऱ संबंधित केस के जुड़े कई अहम सुराग भी जनता के सामने आए। अगर सरकारें ही देश की न्याय व्यवस्था पर चोट पहुंचाती रहेंगी तो देश में कानून नाम की कोई चीज, चीज बनकर रह जाएगी