गुरुवार, 17 मई 2012

बाइसकोप (संस्मरण)

कभी-कभी अपना बचपन याद आ जाता है। बचपन की यादों में ऐसे खो जाता हूं लगता है कि सपनों की दुनियां में आ गया हूं। जहां पर कोई दुख नहीं सिर्फ यादों के सिवा। बालपन में बाइसकोप देखने की जिद तो पिटाई करवा देती थी। आपको बता दूं 1990 के आप-पास तक हमारे जिले के गांवों में बच्चे बाइसकोप देखा करते थे। मेरे ख्याल से यह हमारे जिले जौनपुर में ही नही बल्कि यूपी के लगभग सभी जिलों में बाइसकोप बड़े चाव से देखा जाता था। बाइसकोप दिखाने वाले अक्सर दोपहर को गर्मियों के दिनों में आया करते थे। बाइसकोप से बजते मधुर फिल्मी गानें लोगों को बरबस ही घर के बाहर निकलने पर मजबूर कर देते थे। उस समय सिनेमा घर सिर्फ शहरों में हुआ करते थे। सिनेमा घरों में टिकट थी काफी महंगा होता था जिसकी वजह से गांव के लगभग सभी लोग बड़े प्रेम से सिनेमा देखने की बजाय बाइसकोप देखना पसंद करते थे। उस समय में बच्चों को जेब खर्च भी बहुत कम ही मिला करती थी। जिसकी वजह भी सिनेमाघर ना होकर बाइस कोप तक ही सीमित रह जाती थी। गांवों में उस समय मनोरंजन के साधन भी सीमित थे। टेलीविजन गिने-चुने घरों में होता था । जिसकी दो वजहें थीं। पहली गरीबी, दूसरी गांवों में लाइट की सुविधा ना होना। जिसके घर बिजली होती भी थी, लाइट बहुत कम आती थी। बाइसकोप इन सभी वजहों से गांवों में बहुत पापुलर था। बाइसकोप को लोग पैसे नहीं होने पर गेंहूं या अन्य कोई अनाज देकर भी देख लेते थे। जो कि ऐसा सिनेमा घरों में नहीं था। बाइसकोप में फिल्मी सितारों के फोटो हुआ करते थे। कई नामी अभिनेता और अभिनेत्रियों के फोटो से सजी बाइसकोप में फिल्मी गाने भी बजते थे। जो कि दर्शकों में खूब पसंद किये जाते थे। बाइसकोप में फिल्मी सितारों की फोटो के आलावा प्राकृतिक सुंदरता भी दिखाई जाती थी। जो बाइसकोप में चार चांद लगा देता था। बाइसकोप को गांवों का सिनेमा घर अगर कहा जाय तो गलत नही होगा। उस समय गांवों में टेप रिकॉर्ड, रेडियों और टेलीविजन की संख्या कम होने के कारण बाइसकोप को बुलंदी तक पहुंचाया। गांवों में लोगों का यह बाइसकोप बड़ा ही मनोरंजन देता था। अब काफी समय बीत गये। दुनियां में काफी बदलाव आया है। मनोरंजन के साधनों में भी काफी बड़ा चेंजेस देखने को मिले हैं। समय के साथ लोगों का झुकाव भी मनोरंजन के प्रति बदल गया है। मनोरंजन क्रांति ने बाइसकोप को बदलकर रख दिया है। अब पुराना बाइसकोप आप को नहीं दिखेगा। कहने का सीधा सा अर्थ है घर-घर में टेलीविजन, रेडियो और छोटी-छोटी बाजारों में छोटे-छोटे सिनेमा घर खुल गए हैं। और तो और अब आप मोबाइल में भी गाने सुनने के साथ फिल्म भी देख सकते हैं। शायद यही वजह रही कि बाइसकोप विलुप्प हो गये। अब तो ना कोई देखने वाला है और ना ही कोई मनोरंजन प्रेमी बाइसकोप दिखाने वाला। लेखक- कुमार मंगल

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