शनिवार, 28 अप्रैल 2012

मेरी नयी कहानी " आबार एशो [ फिर आना ] "

आदरणीय गुरुजनों और मित्रो ;
नमस्कार ;

कृपया मेरी नयीकहानी " आबार एशो [ फिर आना ] " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . कहानी को मैंने बहुत प्रेम से लिखा है . अनिमा का जीवन किसी का भी हो सकता है. मैंने पूरी कहानी को एक cinematic visualization के साथ लिखा है , कहानी भी frame by frame चलती है . आपको अच्छी लगेंगी.


आपके भावपूर्ण कमेंट्स के इंतजार में…….!


आपका बहुत धन्यवाद. 

आपका अपना
विजय कुमार

गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

ना कोंसो अब हमें

i-next में उठाये गये प्रश्न ‘तो क्या लड़कियां ही हैं रेप की जिम्मेदार?’ के मुख्य दो कारण हैं- एक, कि यह प्रश्न वास्तव में जानना चाहता है कि रेप का वास्तविक कारण है क्या? दूसरा, इस प्रकार की शर्मनाक एवं दुखद घटनाओं के प्रति आने वाले वे असंवेदनशील संवाद जो उच्च पदों पर विराजमान शिरोमणियों के मुख से प्रकट हुए। डिप्टी कमिश्नर, डीजीपी, दिल्ली पुलिस कमिश्नर, सीएम दिल्ली एवं दिल्ली पुलिस, सभी के अनुसार लड़कियां अपने साथ हुई किसी भी दुर्घटना के लिए स्वतः जिम्मेदार है। किसी के अनुसार लड़कियों का पहनावा दोषी है तो किसी के अनुसार असमय उनका असुरक्षित यात्रा अथवा नौकरी करना। कितनी विचित्र स्थिति है कि एसी आफिस में बैठने वाले अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ने के लिए ‘चोरी और ऊपर से सीना जोरी’ कर रहे है! पुलिस एवं सरकार की पहली जिम्मेदारी देश के प्रत्येक नागरिक को सुरक्षा के भाव का अहसास कराना है। ऐसे में ये उल्टी नसीहत उन्हें नागरिकों द्वारा कष्ट प्रदान न किये जाने का आदेश दे रही है। उन्नति की दौड़ में अपेक्षाओं से अधिक परिणाम प्रस्तुत कर अपने वजूद का लौहा मनाने वाली महिलाओं को सुरक्षा के नाम पर कैसे घर बैठकर आलू-गोभी काटने का हुक्म सुनाया जा सकता है? और इस प्रकार कैद महिलाओं की आन्तरिक सुरक्षा की क्या गारंटी? 15 मार्च 2012 को अमर उजाला में प्रकाशित समाचार ‘ नौ साल की उम्र में पहला एबार्शन’ लड़कियों की घरेलु सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह आरोपित करने के साथ-साथ दी जाने वाली नसीहतों को शर्मिंदा भी करता है। नाबालिकों के साथ आये दिन होने वाले दुर्व्यवहारों के लिए हमारे इन आलाकमानों के पास क्या नसीहत है? ऑफिस में बैठकर सुझावों एवं सलाहों के भँवरों में आम आदमी की सोच को गुमराह करने से बेहतर है एक सटीक रणनीति का निर्माण किया जाए और एक ऐसा समाधान प्रस्तुत किया जाये जिससे वास्तव में लड़कियों को सुरक्षित संरक्षण प्राप्त हो सके और वे अपने सपनों का आकाश पा सकें।

बुधवार, 25 अप्रैल 2012

चार रुपइया और बढ़ा दो


चार रुपइया और बढ़ा दो
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दो रोटी के पड़े हैं लाले
भूखे-दूखे लोग भरे हैं
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बहन बेटियाँ बिन -व्याही हैं
कर्ज में डूबे कुछ किसान हैं
दर्द देख के -सभी – यहाँ चिल्लाते
सौ अठहत्तर अरब का सोना
कैसे फिर हम खाते ??
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मंहगाई ना कुछ कर पाती
अठाइस है बहुत बड़ा
चार रुपइया और बढ़ा दो
३२-३३ – संसद देखो भिड़ा पड़ा
कहीं झोपडी खुला आसमां
सौ-सौ मंजिल कहीं दिखी
कहीं खोद जड़ – कन्द हैं खाते
कहीं खोद भरते हैं सोना
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कोई जमीं फुटपाथ पे सोया
नोटों की गड्डी “वो” सोया
किसी के पाँव बिवाई – छाले
उड़-उड़ कोई मेवे खा ले
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( सभी फोटो साभार गूगल/ नेट से लिया गया )
विस्वा – मेंड़ जमीं की खातिर
भाई -भाई लड़ मरते
सौ – सौ बीघे धर्म – आश्रम
बाबा-ठग बन जोत रहे
कितने अश्त्र -शस्त्र हैं भरते
जुटा खजाना गाड़ रहे
भोली – भाली प्यारी जनता
गुरु-ईश में ठग क्यों ना पहचाने ??
कुछ अपने स्वारथ की खातिर
सब को वहीं फंसा दें
निर्मल-कोई- नहीं है बाबा !
अंतर मन की-सुन लो-पूजो
खून पसीने श्रम से उपजा
खुद भी भाई खा लो जी लो !!
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर’ ५
८-८.२० पूर्वाह्न
कुल यच पी
२५.०४.२०१२

रविवार, 22 अप्रैल 2012

सभी मनुष्य एक ही जाति हैं |


जब उत्तम-उत्तम उपदेशक होते हैं तब अच्छे प्रकार धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सिध्द होते हैं  और जब उत्तम उपदेशक और श्रोता नहीं रहते तब अंध परम्परा चलती है / फिर भी जब सत्पुरुष होकर सत्योपदेश होता है. तभी अंध परम्परा नष्ट होकर प्रकाश की परम्परा चलती है .
महर्षि दयानंद सरस्वती


सभी मनुष्य एक ही जाति हैं |
जिस तरह आज देश राजनितिक रूप से सामाजिक रूप से विभिन्न जाति एवं पंथों में बंटा हुवा है उसका दुष्परिणाम हमें स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है | जिस तरह हमारे मर्यादा पुरुषोत्तम राम एवं रामसेतु को काल्पनिक बताया जा रहा है तथा हमारी तथाकथित सेकुलर जमात ऐसे लोगों के हाँ में हाँ मिला रहा है बहुत ही क्षोभनीय स्थिति है ये | जिस ब्राह्मण समाज की जिम्मेद्वारी थी देश को सही दिशा देने की आज वही ब्राह्मण समाज इतिहास की भूलों से सबक नहीं लेते हुवे अपने स्वार्थ के लिए अंधविश्वास के पोषण में लगा हुवा है |
हिंदुओं में सामाजिक निर्बलता का मूल कारण उनमें प्रेम का अभाव हैं जो की जातिवाद की देन है | हम अच्छी तरह जानते हैं की किसी भी समाज में सामाजिक गठन तभी स्थापित हो सकता हैं जब उस समाज के सदस्यों में आपस में न्याय और प्रेम का व्यवहार हो | जातिवाद के कारण अपने आप को उच्च कहने वाली जातियां  अपने ही समाज के दुसरे सदस्यों को नीचा मानती हैं जिसके कारण आपस में प्रेम रहना असंभव हैं  |. जिस सामाजिक व्यवस्था में बुद्धिमत्ता, सज्जनता तथा गुण सम्पन्त्ता का कोई स्थान न हो, जिस सामाजिक व्यवस्था में एक नीच जाति के मनुष्य को अपने गुण, कर्म और स्वभाव के आधार पर उच्च पद पाने की कोई सम्भावना न हो, जो सामाजिक व्यवस्था प्रकृति के नियमों के विरुद्ध एवं अस्वाभाविक हो, जो सामाजिक व्यवस्था अन्याय पर आधारित हों और सामाजिक उन्नति की जड़ों को काटने वाली हों  ऐसी व्यवस्था में प्रेम का ह्रास और एकता का न होना निश्चित हैं और यही कारण हैं की हिन्दू जाति पिछले २०००  साल से संख्या में अधिक होते हुए भी विधर्मियों से पिटती आ रही हैं और आगे भी इसी प्रकार पिटती रहेगी |
इसी आपसी फूट तथा स्वार्थ वश धर्मग्रंथों में मिलावट ने हिंदुओं को इतना निर्बल बना दिया हैं की कोई भी बाहर से आता है अवैज्ञानिक बातों के आधार पर इनके धर्म ग्रंथों का अपमान करता है और ये कुछ भी नहीं कर पाते हैं | इसी भेद भाव के कारण करोडों हिंदुओं ने धर्म परिवर्तन कर के अन्य धर्म अपना लिया है | किन्तु हमारे धर्माधिकारियों के कानों पर जूं तक रेंगता नजर नहीं आता | कभी सारे विश्व में वैदिक धर्म का साम्राज्य था आज वह भारत में भी हिंदू धर्म के रूप में सिमटता जा रहा है किन्तु फिर भी हम आज खुशफहमी में जी रहे हैं |
प्राचीन भारत में वर्णाश्रम व्यवस्था थी जिसके अनुसार एक ब्राह्मण का पुत्र अगर अनपढ़, शराबी, मांसाहारी, चरित्रहीन होता था तो वह ब्राह्मण नहीं अपितु शुद्र कहलाया जाता था | जबकि अगर एक शुद्र का पुत्र विद्वान, ब्रहमचारी, वेदों का ज्ञाता और चरित्रवान होता था तो वह ब्राह्मण कहलाता था | यही संसार की सबसे बेहतरीन वर्ण व्यवस्था थी जो गुण, कर्म और स्वभाव पर आधारित थी |
उदाहरण के रूप में----- सत्यकाम जाबाल गणिका (वेश्या) के पुत्र थे परन्तु वे ब्राह्मणत्व को प्राप्त हुए  | राजा नेदिष्ट के पुत्र नाभाग वैश्य हुए | पुनः इनके कई पुत्रों ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया | (विष्णु पुराण ४..१३) ऋषि पुलस्त्य का पौत्र रावण अपने कर्मों से राक्षस बना |
विश्वामित्र के पुत्रों ने शूद्र वर्ण अपनाया | विश्वामित्र स्वयं क्षत्रिय थे परन्तु बाद उन्होंने ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया |
किन्तु बाद में कुछ स्वार्थी समर्थ लोगों ने इस व्यवस्था में घालमेल कर के इसे जन्म आधारित कर दिया |
आइये अब जाने जाति है क्या ....जाति का अर्थ है उद्भव के आधार पर किया गया वर्गीकरण |
 न्याय सूत्र यही कहता हैसमानप्रसवात्मिका जाति:” अथवा जिनके जन्म का मूल स्त्रोत सामान हो वह एक जाति बनाते हैं |
ऋषियों द्वारा प्राथमिक तौर पर जन्म-जातियों को चार स्थूल विभागों में बांटा गया है
१.. उद्भिज--धरती में से उगने वाले जैसे पेड़, पौधे,लता आदि
२.. अंडज --अंडे से निकलने वाले जैसे पक्षी, सरीसृप आदि
३.. पिंडज --स्तनधारी- मनुष्य और पशु आदि
४ .. उष्मज --तापमान तथा परिवेशीय स्थितियों की अनुकूलता के योग से उत्त्पन्न होने वालेजैसे सूक्ष्म जिवाणू वायरस, बैक्टेरिया आदि
हर जाति विशेष के प्राणियों में शारीरिक अंगों की समानता पाई जाती है | एक जन्म-जाति दूसरी जाति में कभी भी परिवर्तित नहीं हो सकती है और न ही भिन्न जातियां आपस में संतान उत्त्पन्न कर सकती हैं | अतः जाति ईश्वर निर्मित है |
जैसे विविध प्राणी हाथी, सिंह, खरगोश इत्यादि भिन्न-भिन्न जातियां हैं |इसी प्रकार संपूर्ण मानव समाज एक जाति है | ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र किसी भी तरह भिन्न जातियां नहीं हो सकती हैं क्योंकि न तो उनमें परस्पर शारीरिक बनावट में कोई अंतर है  और न ही उनके जन्म स्त्रोत  में भिन्नता पाई जाती है |
बहुत समय बाद जाति शब्द का प्रयोग किसी भी प्रकार के वर्गीकरण के लिए प्रयुक्त होने लगा | और इसीलिए हम सामान्यतया विभिन्न समुदायों को ही अलग जाति कहने लगे | जबकि यह मात्र व्यवहार में सहूलियत के लिए हो सकता है | सनातन सत्य यह है कि सभी मनुष्य एक ही जाति हैं |

बुधवार, 18 अप्रैल 2012

पुस्तक समीक्षा


बेनीपुरी साहित्य का आलोचनात्मक अध्ययन



पुस्तक- बेनीपुरी की साहित्य-साधना, लेखक- डा0 कमलाकांत त्रिपठी
प्रकाशक- पुस्तक पथ, वाराणसी, वितरक- शारदा संस्कृत संस्थान, सी. 27/59, जगतगंज, वाराणसी-221002, मूल्य- 350 रूपये (पेपर बैक)।


डा0 कमलाकांत त्रिपठी द्वारा लिखित पुस्तक ‘बेनीपुरी की साहित्य साधना’ भारतीय ग्राम्य जीवन और आदर्शोन्मुक्त यथार्थवाद के प्रतिनिधि कथाकार रामवृक्ष बेनीपुरी के साहित्य को समग्रता में व्यक्त करते हुए उसे वर्तमान जीवन के विविध आयामों में व्याख्यायित करती है। यह पुस्तक बेनीपुरी के जीवन-कार्य तथा साहित्य साधना का सर्वांगीण परिचय ही नहीं प्रस्तुत करता बल्कि उनके कार्य तथा साधना का सूक्ष्म विशलेषण कर उन समस्त विशेषताओं को अधोरेखित भी करता है जो व्यक्ति बेनीपुरी तथा लेखक बेनीपुरी को अलग कर देता है।
पुस्तक के प्रथम दो अध्यायों में लेखक ने बेनीपुरी के साहित्य साधना के लगभग सभी पक्षों पर दृष्टिपात किया है। कथामकता को आधार बनाते हुए उन्होने बेनीपुरी साहित्य को दो प्रधान वर्गों में विभाजित किया है- कथा-साहित्य और कथेतर-साहित्य। तृतीय अध्याय में डा0 त्रिपाठी ने प्रेरण स्रोत, विषयोपन्यास, सैद्धांतिक मान्यताएं तथा कथ्य उपशीर्षकों के अन्तर्गत बेनीपुरी के साहित्य की विशेषताओं को अंकित किया है। अन्य कतिपय विशिष्टताओं के साथ-साथ बेनीपुरी साहित्य का जनवादी पक्ष लेखक को सर्वोपरी लगता है। उन्होने लिखा है- ‘‘जनता के साहित्यकार बेनीपुरी ने जनता के पक्ष को जनता की भाषा दी। उनका यह जनवादी पक्ष उनके साहित्य में सर्वत्र मुख्य है।’’ बेनीपुरी की कथ्यगत विशिष्टताओं की चर्चा में लेखक लिखता है- ‘‘उनका भाव लोकसंघर्ष के साथ आनन्द का भी है। परिस्थितयों के संघर्ष में क्रांतिकारी और संघर्ष की समाप्ति के बाद उल्लास के गायक का रूप-दर्शन बेनीपुरी में होगा।
शैलीकार की भाषा का पूरा विश्लेषण तब तक अधुरा माना जाता है जब तक साहित्यिक भाषा की समग्र प्रक्रिया उसके विविध स्तरों की संरचना के आधार पर सोदाहरण स्पष्ट नहीं की जाती। डाॅ0 त्रिपाठी ने पुस्तक के चतृर्थ अध्याय ‘बेनीपुरी की भाषा शैली’ में यह कार्य बड़ी सुक्ष्मता, गहन विश्लेषण क्षमता के साथ किया है। तुलनात्मक विवेचना का आधार ग्रहण करते हुए लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि भाषा के प्रत्येक स्तर के इकाई का चयन करते हुए बेनीपुरी ने किस प्रकार प्रभाव विस्तार का ध्यान रखा है। बेनीपुरी के गद्य के शब्द-वर्ग, वाक्य-विन्यास, परिच्छेद, विराम-चिन्ह, मुहावरें-कहावतें आदि सभी इकाईयों की उपयोगिता तथा अनुकूलता की चर्चा सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रभाव विस्तार के आधार पर साहित्य भाषा का सही आकलन प्रस्तुत किया है।
डा0 कमलाकांत त्रिपाठी का ग्रन्थ बेनीपुरी की साहित्य साधना बेनीपुरी की विशिष्टता के आकलन का एक महत्वपूर्ण प्रयास है। बेनीपुरी साहित्य पर अधावधि प्रकाशित प्रबन्धों में यह प्रबंध अपना अलग स्थान रखता है। साहित्य के अध्येताओं की आकलन परिधि के विस्तार की दृष्टि से यह निश्चय ही उपयोगी रचना है।


एम अफसर खां सागर

सोमवार, 16 अप्रैल 2012



जंग से जमीन में 
घाव बहुत होते हैं 
जख्म गर भरे भी तो 
रोम-रोम रोते हैं !
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इन्सां ने इन्सां को 
इन्सां सा प्यार दिया 
स्वर्ग धरा लाये आज 
जिन्दगी संवार लिया 
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बेटियों ने बेटों को 
जी भर के प्यार दिया 
बेटों ने बदले में 
कोख में ही मार दिया ?


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गीली सी मिटटी है 
प्यारा कुम्हार 
पीट पीट ढाल रहा 
सांचे में खांचे में 
देता आकार !
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आस

धानापुर विधानसभा बने रहने की उम्मीद बरकरार

चुनाव आयोग द्वारा सन् 2008 में विधानसभा के परिसीमन के दौरान धानापुर विधानसभा का नाम बदलकर सैयदराजा कर दिया गया था। इसके उपरान्त धानापुर के लोगों ने 16 अगस्त 1942 के आन्दोलन के शहीदों से प्रेरणा लेकर धानापुर बचाओ संघर्ष समिति का गठन किया। नाम बदलने के लिए समिति के लोग लगातार जन जागरण कर हाईकोर्ट जाने की तैयारी किया।
इस कड़ी में सरकार व चुनाव आयोग को पंजीकृत डाक के माध्म से धानापुर विधानसभा का नाम यथावत रखने का गुहार लगाते रहें। जब समिति के गुहार पर कोई कार्यवाही नहीं हुई तो विगत 09 अप्रैल 2012 को उच्च न्यायालय के समक्ष एक जनहित याचिका दाखिल कर धानापुर विधानसभा का नाम बदलने का आग्रह किया गया। जिसकी सुनवाई 12 अप्रैल 2012 को न्यायधीश द्वय माननीय आर के अग्रवाल व निय माथुर द्वारा की गयी।
सुनवाई के दौरान दोनो पक्ष के वकीलों ने अपने तर्क रखें। जिसमें संघर्ष समिति के वकील द्वारा क्षेत्र की जनता का आत्मीय लगाव धानापुर के नाम के प्रति दर्शते हुए बताया कि धानापुर सिर्फ एक जगह का नाम नहीं बल्कि शहीदों की धरती है। धानापुर के नाम के साथ लाखें लोगों की आस्था जुडी है। दोनो पक्षों की दलीलें सुनने के बाद न्यायधीश द्वय ने शासकीय अधिवक्ता को सरकार का पक्ष रखने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया है।
इस आदेश के बाद धानापुर के लोगों में हर्ष के साथ न्याय मिलने की आस में नाम बदले की उम्मीद जागी है

शनिवार, 14 अप्रैल 2012


निर्मल बाबा का चमत्कार......है.....या फिर देश की भावुक जनता पर निर्मल बाबा का अत्याचार
 बाबा के थिएटर में बड़ी भीड़ थी. लोग रो रहे थे. एक महिला उठी और बोली की बाबा कल मै रात को पार्टी में गयी थी और जब पार्टी से वापस लौटने लगी तो देखा की मेरी गाडी की चाभी खो चुकी थी,  मै परेशां हो गयी, लेकिन तभी मैंने आपका स्मरण किया और कुछ ही देर में एक लड़का मेरी चाभी लेकर गयाबाबा ऐसी कृपा बनाये रखना.
 बाबा बोले ये सब तो ठीक है..  ये गोलगप्पे कहा से रहे हैं? कितने दिनों से गोलगप्पे नहीं खाए ? आज जाकर गोलगप्पे खाना कृपा हो जाएगी (बाबा गोलगप्पे के भी स्टार प्रचारक हैं)
एक व्यक्ति भीड़ के बीच से उठा और बोला बाबा मेरे घर में शिव,पार्वती,हनुमान,राम,सीत,काली और लक्ष्मी की मूर्तियाँ हैं.
बाबा बोले - काली को घर से बाहर निकाल दो कृपा हो जाएगी और ये बीडी का क्या मामला है कब से नहीं पी ? रोज़ - पिया करो  कृपा हो जाएगी (बाबा ने काली को तो निकालने के लिए बोल दिया और लक्ष्मी के लिए क्यों नहीं बोला)  
एक बुज़ुर्ग उठा और रोने लगा बाबा मेरी लड़की की शादी होनी थी और अचानक मेरे घर में चोरी हो गयी, शादी रुक गयी. मैंने आपका स्मरण किया और शादी हो गयी कृपा बना के रखना.
बाबा बोले तुम्हारी हरी कमीज़ अलमारी में क्या कर रही है ? उसको पहन कर हनुमान जी के दर्शन करो कृपा हो जायेगी.
अब बाबा बोले सब अपना पर्स खोल दो, पर्स का मुह मेरी तरफ कर दो, जिस के पास १० रूपये वाला पर्स है उसके पास लक्ष्मी नहीं आएगी इसलिए १०० रुपये वाला पर्स लो कृपा हो जाएगी. (बाबा बने पर्स के स्टार प्रचारक)
 भोली जनता पी एन बी में लाइन लगा कर खड़ी है कोई समागम के टिकट ले रहा है तो कोई दस्वंद भेज रहा है..अरे आखिर ये है क्या माजरा किसी गरीब को पेट भर खाना दे दो, किसी असहाय का इलाज़ करवा दो, किसी अनाथ आश्रम में दान दे आओ तो कृपा बने . ऐसे अर्जी-फर्जी बाबा जो शकल से बाबा कम धूर्त और व्यापारी ज्यादा लगते हों इनसे तौबा करो और पूजा की अध्यात्मिक पध्धति से विरक्त मत बनो.
इश्वर सर्वव्याप्त है. उस इश्वर की कृपा पाने के लिए ऐसे ढोंगी बाबाओं का सहारा लेना किसी बेवकूफी से कम नहीं है इसलिए ऐसे बाबाओं के चंगुल में जान बूझ कर अपनी गर्दन फ़साना समझदारी नहीं.....