सोमवार, 30 जनवरी 2012

पचपन और बचपन


पचपन की उम्र का सेहरा पहने मिश्रा जी बगीचे में अकेले बैठे उबासी ले रहे थे। तभी उनका पाँच वर्ष का पौता, करन कुछ टूटे हुए खिलौने लिए भागा-भागा उनके पास आया और चिल्लाते हुए बोला, ‘‘ दादा जी बचाओ-बचाओ दादा जी। मम्मी मेरे खिलौने कबाड़ी वाले को दे रही हैं। ये मेरे खिलौने हैं, मैं नही दूँगा इन्हें।’’ रूआँ सा करन दादा जी के पीछे खुद को छिपाने का असफल प्रयास कर रहा था और खिलौने वाले हाथों को अपनी कमर के पीछे छिपा रहा था।
‘‘क्या हुआ बहू? क्यों ले रही हो इसके खिलौने?’’, दादा जी ने पूछा।
‘‘पिताजी! ये सारे टूटे हुए खिलौने हैं। मैं कह रही हूँ कि इन्हें छोड़ दे, हम इससे भी अच्छे नये खिलौने इसे दिला देंगे। पर ये है कि मानता ही नही। पुराने-टूटे खिलौनों से घर भर रखा है।
करन, बेटा नये खिलौने ले लेना........इन्हंे मम्मी हो दे दो। मैं तुम्हें बिलकुल ऐसे ही नये खिलौने दिला दूँगा।
नहीं दादा जी, मुझे इन्हीं से खेलना है। मैं नहीं दूँगा।
अच्छा बहू, रहने दो। मत दो इसके खिलौने। खेलने दो इन्ही से इसे।
परेशान मम्मी वापस लौट जाती हैं।
अच्छा करन! ज़रा दिखा तो क्या खिलौने हैं तेरे पास, जिनके लिए तू मम्मी से इतना लड़ रहा था।
दिखाऊँ? मासूमियत से पूछते हुए करन ने एक टूटा ट्रक, कुछ तिल्लीनुमा लकड़ी, एक कपड़ा और पतंग का मंज्ज़ा आगे बढ़ा दिया।
दादा जी भी उस सामान को देखकर हैरान थे। परन्तु खिलौनों के प्रति करन का अनुराग देखकर उनकी उन खिलौनों में उत्सुकता बढ़ गई।
करन, इनसे खेलोगे कैसे?
आप खेलोगे दादा जी मेरे साथ?
हाँ-हाँ, क्यों नही! बताओ कैसे खेलना है?
मैं बताता हूँ। पहले तो आप ये स्टिक पकड़ो। अब इन्हें है ना इस ट्रक के चारों कोना पर लगाओ। इन छेदों में इन्हें लगा देते हैं। अब उस मंज्ज़ा से है ना इन स्टिक्स् को बाँधो, नी तो ये गिर जायेंगी। अब ये कपड़ा इन स्टिक्स् पर ऐसे लगा दो। ये बन गया हमारा घर। देखो दादा जी अच्छा है ना? और पता है ये चल भी सकता है।
दादा जी हैरान, करन को देख रहे थे। बच्चों के जो खिलौने हमारे लिए व्यर्थ का सामान होते हैं उन्हें लेकर कितनी कल्पनाएँ उनके संवेदनशील संसार में होती हैं। कैसा अद्भुत सान्निध्य उन सड़क पर ठोकर खाने वाले पत्थरों के प्रति, जो इनकी दुनिया में आकर सुंदर इमारत का रूप धर लेते हैं। ये बच्चें ही तो हैं जो पुरानी निर्जीव चीजों में से भी व्यर्थ का विशेषण हटा, उनके महत्व को बढ़ा देते हैं अन्यथा आज तो जीवित प्राणी भी का अस्तित्व भी अर्थहीन हो चला है। तभी तो पचपन का बचपन को किया गया प्यार लौटाने का समय आता है तो बचपन पचपन से उकता जाता है।
दादा जी के एकाग्रता के तार को करन की आवाज ने झनकारा और ‘चलो दादा जी खेलते हैं’ का सुर उत्पन्न हुआ। और एक बार फिर बचपन-पचपन का खेल प्रारम्भ हो गया।

शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

क्या कभी कोई
अपना सिर
अपनी ही गोद में रख कर सोया है ?
क्या कभी कोई 
अपना सिर
अपने ही कंधे पर रख कर रोया है ?
क्यों ? कोई ?
नहीं चाहता कभी,
अपना सुख दुःख,
स्वयं में समेटे रखना ?
अपने में जीना ?
अपने में मरना ?
और गुमनामी लपटे रखना ?
क्यों ?
इसीलिए
क्या ?,
रिश्ते जन्म लेते हैं ?
और
हमेशा अहम् होते हैं ?
रिश्ते ...?
अंकुरित होते हैं ?
उगते हैं ?
पनपते हैं ?
बनते हैं ?
या प्रकट होते हैं ?
पता नहीं,
क्यों ?
परन्तु अच्छे लगते हैं ?
हमेशा ?
और जरूरी से लगते है ?
क्यों ?
शायद..कुछ को
हम कभी नहीं समझते हैं ?
और कोशिश ?
भी नहीं करते हैं ?
भटकते है ?
एक कंधे की चाहत
और
अपना कन्धा खाली रखने की आदत
क्यों ?
बने रहना चाहते हैं ?
हम बीज
सब आत्मसात हैं जिसमे ? ,
ऐसा रिश्ता
जड़, तना और पत्ते
सब साथ साथ है जिसमे ?
क्यों ?
फिर सब बनाते है ?
एक नन्हा पौधा,
बढ़ना जिसकी नियति है ?
और
बढ़ कर दूर दूर हो जाना ?
या
दूर दूर होकर बढ़ जाना ?
जिसकी परिणिति है,
क्यों ?
दोहराया जाता है ?
बार बार ...
ये 
इति ! हास ?
इतिहास ? जो नहीं है.
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- शिव प्रकाश मिश्रा

गुरुवार, 26 जनवरी 2012

भारत देश हमारा प्यारा


भारत देश हमारा प्यारा
बड़ा अनोखा अद्भुत न्यारा
शत शत इसे नमन .......

(photo with thanks from google/net)
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तरह तरह की भाषाएँ हैं
भिन्न भिन्न है बोली
रहन सहन पहनावे कितने
फिर भी सब हमजोली
भारत देश हमारा प्यारा
बड़ा अनोखा अद्भुत न्यारा
शत शत इसे नमन ......
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मन मिलते हैं गले मिलें हम
हर त्यौहार मनाएं
धूमधाम से हँसते गाते
हाथ मिलाये सीढ़ी चढ़ते जाएँ ..
भारत देश हमारा प्यारा
बड़ा अनोखा अद्भुत न्यारा
शत शत इसे नमन .......

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बड़े बड़े त्यागी मुनि ऋषि सब
इस पावन धरती पर आये
वेद ज्ञान विज्ञानं गणित सब
दुनिया योग  सिखाये ...
भारत देश हमारा प्यारा
बड़ा अनोखा अद्भुत न्यारा
शत शत इसे नमन .......

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आलस त्यागे बच्चे बूढ़े कर्म जुटे  हैं
हरियाली खुशहाली  देखो
घर घर में है ज्योति जगाये
लिए तिरंगा नापे धरती सागर चीरे
पर्वत चढ़ के आसमान हम छाये
चमक दामिनी सी गरजें जब
दुश्मन सब थर्राएँ
भारत देश हमारा प्यारा
बड़ा अनोखा अद्भुत न्यारा
शत शत इसे नमन .......

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कितने जालिम तोड़े हमको
लूटे - ले घर भागे
सोने की चिड़िया हम अब भी
देखो सब से आगे
जहां रहेंगे खिल जायेंगे
फूल से महके जाते
वे जलते कोयले सा बनते
हीरा हम सब चमके जाते
भारत देश हमारा प्यारा
बड़ा अनोखा अद्भुत न्यारा
शत शत इसे नमन .......

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वीर जवानों वीर शहीदों
शत शत नमन तुम्हे ,
तेरे ऋण से उऋण  कहाँ हे !
नक़्शे कदम पे तेरे जाके
है प्रयास हम प्रजा सभी का
झंडा ले हम विश्व पटल पे
भरे  ऊर्जा जोश दोगुना
ऊंचाई   चढ़ सूर्य से चमकें
पल पल हम गतिशील रहें !
भारत देश हमारा प्यारा
बड़ा अनोखा अद्भुत न्यारा
शत शत इसे नमन .....

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सुरेन्द्र शुक्ल भ्रमर ५
करतारपुर पंजाब
२६ जनवरी २०१२
८-८.१५ पूर्वाह्न
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अभिव्यक्ति की आज़ादी पर अंकुश है आचार संहिता

{इस लेख के माध्यम से हम आचार संहिता पर अंगुली नहीं उठा रहे है, बल्कि जो हम देख और महसूस कर रहे है वही व्यक्त कर रहे है.}
बचपन में जब हम गाव में रहते थे और चुनाव का दौर आता था तो हम खुश हो जाते थे. जब कोई प्रचार वाहन आता तो हम बच्चे बड़े खुश हो जाते. हमें झंडा और पोस्टर मिल जाता था, हम लोग झंडा हाथ में लेकर एक टोली में गाव में घूमा करते. हमें याद है उस समय नारे लगाकर घूमना बड़ा अच्छा लगता था, खूब मस्ती होती, फिर मुख्य चुनाव टी.एन. शेषन बने उन्होंने फिजूल खर्ची पर काफी रोक रोक लगा दी, वहा तक सबकुछ ठीक था. किन्तु इस बार जो हालात बने है. वह मेरी खुद की राय में कही से भी उचित नहीं है. चुनाव में व्याप्त भ्रष्टाचार और फिजूल खर्ची रोकने के नाम पर लोंगो को डराया जा रहा है. बेवजह लोंगो को परेशां किया जा रहा है. और यह सब कुछ चुनाव में पारदर्शिता लाने के नाम पर हो रहा है. और सब चुप्पी साधे पड़े है. आचार संहिता की हनक ऐसी की कोई जुबान नहीं खोल रहा कही मुकदमा न दर्ज हो जाय.
भले ही लोग कह रहे है की ऐसे ही होता रहा तो एक आम आदमी भी चुनाव लड़ सकता है.. जबकि आम और इमानदार व्यक्ति को चुनाव में रोकने के लिए एक गहरी साजिस रची जा रही है.... मैं मीडिया से जुडा व्यक्ति हूँ और अभी तक मुझे ही नहीं पता की कितने प्रत्यासी हमारे जनपद से चुनाव लड़ रहे है, हो सकता है सभी का परचा दाखिल हो जाय उसके बाद पता चल जाय पर सभी के चुनाव चिन्ह याद रखना तो बहुत ही मुश्किल है. आज किसी आम आदमी से पूछा जाय की कितने चुनाव चिन्ह उसे याद है तो  शायद बमुश्किल चार या पार्टियों के चुनाव चिन्ह उसे याद रहेंगे,  छोटे दलों के प्रत्यासी अपनी पहचान भी नहीं बता पा रहे हैं. सोचना यह है की जो अपनी पहचान नहीं बता पा रहा है, वह मतदाताओ को कैसे समझा पायेगा. पूरा चुनाव उसे अपना परिचय देने में ही बीत जायेगा. क्या ऐसा नहीं हो सकता की बड़े दलों और चुनाव आयोग की यह मिलीजुली साजिश हो ताकि छोटे दल और निर्दल प्रत्यासी चुनाव लड़ने की जुर्रत भी नहीं कर पाए.
देखा जा रहा है की हर व्यक्ति आज खुद को डरा हुआ महसूस कर रहा है. कही भी सार्वजानिक स्थल पर किसी दल का नाम लेने से भी घबरा रहा है. किसी का झंडा अपने मकान पर लगाने से डर रहा है. चारो तरफ एक अजीब सी  ख़ामोशी व्याप्त है और लोग इश्वर से प्रार्थना कर रहे है की जल्दी से चुनाव बीत जाय... व्यापारी वर्ग व्यापर के सिलसिले में पैसा लेकर जाने से डर रहा है. यहाँ तक की बैंक की वैन भी पिछले दिनों पुलिसे ने रोक ली., करीब चार माह पूर्व भदोही में पीस पार्टी की रैली हुयी थी, आचार संहिता लागू होते ही प्रशासन ने सार्वजानिक स्थलों पर लगे झंडे बैनर हटवा लिए... इत्तफाक से एक झंडा टेलीफोन के खम्भे पर रह गया था, एक फुट का यह झंडा धुप और पानी से गल गया था, पर उसे उतार कर डॉ.अयूब के ऊपर पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर लिया. वाराणसी रोड के एक पेड़ पर रैली के समय का ही फ्लेक्स लगा था, चौरी पुलिस ने उसका भी मुकदमा दर्ज कर लिया. यहाँ तक की जनपद के लगभग हर प्रत्याशी के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो चूका है. जिसमे ९० प्रतिशत ऐसे मामले है जिसे देखकर हंसी भी आती है. आचार संहिता के नाम आम आदमी को डराया जा रहा है.
मिडिया पर अंकुश लग चुका है. खैर इस मामले में मैं मिडिया को ही दोषी मानता हूँ. पेड न्यूज़ के कारण मिडिया ने जो किया था. उसका खामियाजा तो उसे भुगतना ही था. पैसे लेकर गलत खबरे छापने से ही मिडिया की गरिमा गिरी है. लगभग सभी अख़बार पैसे वाले प्रत्यासियो की रखैल बन चौके है. और इसका खामियाजा वे पत्रकार उठा रहे है. जो निष्पक्ष होकर खबरे लिखना चाहते है पर उन्हें मौका नहीं मिल रहा है. हाथ पैर बांध दिए गए है.
निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव करने के लिए चुनाव आयोग द्वारा उठाये गए कदम सराहनीय है., पर जिस आचार संहिता के चलते किसी की रोज़ी रोटी छीन जाय, व्यवसायियों एवं आम आदमी में भय व्याप्त हो, लोग खुलकर अपनी बात न कर सके. सच की आवाज़ दबा दी जाय,  अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगे. प्रशासन निरंकुश होकर मनमानी करे. ऐसी आचार संहिता का औचित्य कम से कम मुझे तो समझ में नहीं आ रहा .

बुधवार, 25 जनवरी 2012


तन्तुं तन्वन्रजसो भानुमन्विहि ज्योतिष्मतः पथो रक्ष धिया कृतान्
अनुल्वणं वयत जोगुवामपो मनुर्भव जनया दैव्यं जनम् (ऋग्वेद 10.53.6)


अर्थात्मनुष्य की योनि-आकृति पाने वाले हे मानव! संसार का ताना-बाना बुनते हुए तू प्रकाश का अनुसरण कर। बुद्धिमानों द्वारा निर्दिष्ट ज्योतिर्मय मार्गों की रक्षा कर। निरन्तर ज्ञान एवं कर्म का अनुष्ठान करने वाले उलझन रहित आचरण का विस्तार कर। मनुष्य बन और दिव्य मानवता का प्रकाशन कर तथा दिव्य सन्तानों को जन्म दे। 

बंद करो ये भ्रष्टाचार
मै पूछता हूँ खुद से ना जाने कई बार  
क्यों फैला इस देश में हर जगह भ्रष्टाचार 
नेताओं की देखो धूम मची है 
हो रहे हैं कैसे मालामाल  
सत्य की राह पे चलने वाला 
आज हो चला है कंगाल 
देश की सीमा का प्रहरी 
कर रहा है यही पुकार
क्यों फैला इस देश में हर जगह भ्रष्टाचार 
हर प्रान्त की है भाषा अलग 
फिर भी एक तिरंगा है 
आज भी हिन्दू मुस्लिम में 
हो रहा क्यों दंगा है 
इंसानियत भी बिक रही है देखो
खुले आम बीच बाजार 
क्यों फैला इस देश में हर जगह भ्रष्टाचार
कुछ तो सोचो कुछ तो समझो 
क्यों बिक रही ये ईमानदारी 
औरो को सजा देते हुवे
गम हुई कहाँ अकल तुम्हारी 
कुछ ही पैसों की खातिर क्यों 
बिकती है ये ईमानदारी 
अब तो जी घबराता है 
क्यों कर बने हम ईमानदार 
क्यों फैला इस देश में हर जगह भ्रष्टाचार 
कभी तो आइना जागेगा
कभी तो तस्वीर होगी साफ़
जो बोएगा वही काटेगा
कभी तो राज करेगा इन्साफ
कभी तो आत्मा कचोटेगी तेरी
कभी तो बजेगा मन का सितार 
क्यों फैला इस देश में हर जगह भ्रष्टाचार 

मंगलवार, 24 जनवरी 2012

राजनीती

चुनावी दंगल में डान

उत्तर प्रदेश का चन्दौली जनपद धान का कटोरा माना जाता था मगर राजनैतिक व प्रशासनिक उपेक्षा के चलते किसानों के कटोरे से धान सूख गया है। अब इसकी पहचान नक्सली जनपद के रूप में की जाती है। आखिर हो भी क्यों ना? चकिया व नौगढ़ के जंगलों में नक्सलियों के पदचाप की कोलाहल गाहे-बेगाहे सुनायी देती रही है। किसानों की बदहाली व युवाओं की बेरोजगारी के साथ संसाधनों का आभाव प्रमुख वजह है। अगर राजनैतिक परिदृष्य पर गौर फरमाये नतो चन्दौली पचास से सत्तर के दशक के बीच लोकतांत्रिक राजनीतिक चेतना का गढ़ रहा है। यहां से राजनीति की शुरूवात करने वालों ने प्रदेश की राजनीति व सरकार को जहां नेतृत्व प्रदान किया है वहीं यहां विपक्ष की राजनीति करने वाले राजनीतिज्ञ भी अपनी अलग पहचान रखते थें। चन्दौली से सन् 1952 में अपनी राजनीतिक पारी की शुरूवात करने वाले दो राजनीतिक दिग्गज त्रिभुवन नारायण सिंह व पं0 कमलापति त्रिपाठी ने उत्तर प्रदेष सरकार की बागडोर सम्भाली। समाजवादी आनदोलन के जनक डा0 राममनोहर लोहिया ने सन् 1957 में चन्दौली से चुनाव लड़े व हार गये बावजूद इसके वे क्षेत्र से अपना सम्बंध बनाए रखे।
वैस तो जनपद में चार विधानसभा सीटें हैं मगर परिसीमन के बाद धानापुर व चन्दौली सदर दो विधानसभा सीटों का वजूद समाप्त हो गया है जिसके बाद सैयदराजा व सकलडीहा दो नये विधानसभा सृजित हुए। अब चकिया सुरक्षित के अलावा मुगलसराय, सैयदराजा व सकलडीहा जनपद की चार विधानसभा सीटें हैं। चुनाव की तारीख जैसे-जैसे करीब आ रही है सूबे में तमाम सियासी पार्टियों का चुनावी अभियान जोर पकड़ता जा रहा है। आज पांच दषक बीतने के बाद नये परिसीमन के साथ जनपद की राजनीति भी बदली सी गयी है। तभी तो सैयदराजा विधानसभा में 2012 में होने जा रहे चुनाव में जहां एक तरफ कानून का रखवाला चुनाव लड़ रहा है वहीं दूसरी तरफ कानून तोड़ने वाला भी चुनावी समर में ताल ठोंकता नजर आ रहा है।


सत्ता की हनक, विधायक की ठाट बाट और रूतबे को देखकर आज राजा से रंक तक को राजनीति का चस्का लग गया है। फिर जरायम जगत के चर्चित चेहरे सियासत का ताज पहनने से पीछे क्यों रहें? षायद यही वजह है कि जरायम की कालिख को सियासी लिबास में सफेद करने के लिए माफिया डान बृजेश सिंह भी सलाखों के पीछे से विधानसभा पहुंचने की जुगत में है। तभी तो वह चन्दौली के सैयदराजा विधानसभा सीट से प्रगतिषील मानव समाज पार्टी से चुनाव लड़ रहा है। डान के सामने पूर्व डिप्टी एसपी शैलेन्द्र सिंह भी कांग्रेस पर्टी से चुनाव लड़ रहें हैं। विदित हो कि शैलेन्द्र सिंह ने सपा सरकार में एक माफिया का एलएमजी पकड़े जाने वाले मामले में नौकरी छोड़ दी थी। लोगों में यह चर्चा आम है कि यहां मुकाबला कानून का रखवाला बनाम कानून तोड़ने वाले के बीच है। इसके अलावा सपा, बासपा, भाजपा व निर्दल उम्मीदवार भी चुनावी मैदान में हैं।


सैयदराजा विधानसभा में जातिगत आंकड़े पर गौर फरमाये तो यहां तकरीबन साठ हजार अनुसूचित जाति/जन जाति, पैतालिस हजार यादव, चालीस हजार राजपूत/भूमिहार, पच्चीस हजार मुसलमान, पच्चीस हजार बिन्द/मल्लाह, पन्द्र हजार ब्राहमण समेत अन्य बिरादरी के मतदाता हैं। ऐसे में वर्तमान पूर्व मंत्री व सदर बसपा विधायक शारदा प्रसाद को अपने कैडर वोट व ब्राहमण मतदाताओ का सहारा है तो सपा के रमाशंकर सिंह हिरन को परम्परागत मुस्लिम-यादव गठजोड, कांग्रेस को राहुल के जादू व शैलेन्द्र सिंह का साफ ईमानदार छवि तो भाजपा के हरेन्द्र राय का हंगाई व भ्रश्टाचार मुददा है। सपा के बागी व निर्दल उम्मीदवार मनोज कुमार सिंह डब्लू को यादव/मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन व स्थानीय प्रतिनिधि व क्षेत्र की बदहाली के मुददे का सहारा, बृजेश सिंह को स्वजातीय मतों के अलावा बिन्द/मल्लाह के समर्थन से चुनावी नैया पार लगाने की जुगत में है। स्वाजातीय उम्मीदवारों से घिरे माफिया डान बृजेश सिंह का सियासी सफर आसान नहीं लग रहा है। इसके साथ भतीजे व धानापुर से बसपा विधायक सुशील सिंह की कारकरदगी का भी सामना इनको करना पड़ सकता है। सूत्रों की मानें तो डान का चुनवी कमान उनका साल, पत्नि व खास लोगों के कंधों पर है। इनके लोग कहीं जाति तो कहीं जान बचाने के नाम पर वोट मांग रहे हैं।
एक तरफ जहां क्षेत्र में बिलजी, पानी, सड़क व स्वास्थ सेवाओं की बदहाली तो दूसरी तरफ गंगा कटान में समाती किसानों के मकान व कास्त की जमीने भी चुनाव के प्रमुख मुददें होंगे। बदहाल किसान, बेरोजगार युवा, बदहाल षिक्षा व्यवस्था भी नेताओं के सामने होगा। पांच साल तक उपेक्षित जनता बदलाव के मूड में है। सियासी जानकारों की मानें तो ऐसे में जबर्दस्त सियासी घमास की उम्मीद है। कडाके की ठण्ड में भी सैयदराजा में सियासी पारा गर्म है। चैराहों-चैपालों में जितनी मुंह उतनी बातों का सिलसिला जारी है। आटकलों और आकलनों बाजार गर्म है। सियासी दंगल में उंट किस करवट बैठेगा लोगों में कयासों का दौर जारी है।

एम. अफसर खान सागर

सोमवार, 23 जनवरी 2012

एक प्यारा शहर : गोरखपुर
मैं १७ अप्रैल २००७ को स्थानांतरित होकर गोरखपुर पहुंचा | मैंने पाया कि पूर्वांचल के बारे में ज्यादातर मेरे मित्रों की राय अच्छी नहीं थी और वह सही भी नहीं थी ....!

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में गोरखपुर, बाबा गोरखनाथ के नाम से सुविख्यात अनेक पुरातात्विक, अध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक धरोहरों को समेटे हुए राप्ती नदी के किनारे बसा एक प्राचीन शहर है। एशिया की सबसे बड़ी राम गढ़ झील यहाँ स्थिति है | मुंशी प्रेमचन्द की कर्मस्थली व फिराक गोरखपुरी की जन्मस्थली के रुप मे गोरखपुर, पूर्वांचल के गौरव का प्रतीक है। तीर्थाकर महावीर, करुणावतार गौतम बुद्ध, संत कवि कबीरदास भी किसी न किसी रूप में शहर से सम्बद्ध रहे हैं | गुरु गोरक्षनाथ ने जनपद के गौरव को राष्ट्रीय व अन्तराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्थापित किया । अमर शहीद पं0 राम प्रसाद बिस्मिल, बन्धु सिंह व चौरीचौरा आन्दोलन के शहीदों की शहादत स्थली चौरी चौरा (गोरखपुर) में है । हस्तकला ‘टैराकोटा’ के लिए प्रसिद्ध गाँव, जहाँ के कई शिल्पकार राष्ट्रपति से पुरस्कार प्राप्त कर चुके है यहाँ स्थित है |
शहर में स्थित गोरखनाथ मंदिर और गीताप्रेस गोरखपुर ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया |गीता प्रेस ने हिन्दुस्तानियों के प्राचीन ग्रंथों का प्रकाशन कर उनका संरंक्षण किया और बहुत सस्ते दामो पर देश विदेश में सर्व सुलभ कराया यह एक ऐसा कार्य है जिसका संपूर्ण भारत विशेषतया प्रत्येक हिन्दू और उनकी आने वाली पीढ़िया आभारी रहेंगी | बिना कोई दान स्वीकार किये और बिना कोई घाटा उठाये गीता प्रेस ने समाज की जो सेवा की है वह न केवल प्रसंसनीय है बल्कि प्रबंधन के विद्यार्थियों के लिये शोध एवं अध्धययन का विषय भी है |इसके कर्मचारी संतोषजनक वेतन पाते है और अन्य सभी वैधानिक भुगतान पाते है और कल्याणकारी कार्य में लगे होने का गर्व भी महसूस करते है |


गोरखनाथ मंदिर वास्तव में पूर्वांचल का शक्ति केंद्र है और योग पीठ भी| गोरखपुर के वर्तमान में गोरखनाथ मंदिर का बहुर बड़ा योगदान है| मंदिर के उतराधिकारी और गोरखपुर सदर के सांसद योगी आदित्यनाथ एक कर्मयोगी की तरह गोरखपुर के विकाश और समाज सेवा में अथक परिश्रम कर रहे हैं| गोरछ पीठ आज के पूर्वांचल का एक अभिन्न हिस्सा हैं और योगी आदित्य नाथ उसके ध्वज वाहक हैं| योगी जी की दिनचर्या - सुबह ३ बजे से शुरू होकर रात ११ बजे समाप्त होती है | सुबह मंदिर की गौसाला की गायो से लेकर बन्दर और कुत्ते भी उनसे लिपट कर ऐसे मिलते है जैसे अपने घर का कोई सदस्य खासतौर से घर के छोटे बच्चे |ये सब किसी भी व्यक्ति के लिए ये सुखद प्रेरणा का श्रोत हो सकती है| मैं उनकी कर्त्तव्य परायणता से बहुत प्रभावित हुआ | मैंने पाया कि वह प्रत्येक बिषय पर अपनी वेवाक राय रखते है और शब्दों का चयन बहुत सोच समझ कर करते है | स्वाभाविक है किसी बिषय पर बोलने के पहले उसका गहन अध्धययन करते होंगे |मंदिर परिसर में आयुर्वेद का चिकत्सालय है और एक योग केंद्र भी |परिसर में एक और एलोपेथिक चिकत्सालय है जिसमे शहर के सभी नामी गिरामी स्पेसिअलिस्ट और सुपर स्पेसिअलिस्ट डॉक्टर ओ पी डी में बैठते है और मरीजो को लगभग मुफ्त में देखते हैं | यहाँ गोरखपुर का सबसे बड़ा ब्लड बैंक भी है| प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति के अवसर मंदिर में एक माह तक मेला लगा रहता है भारत भर से श्रद्धालु यहाँ आकर गोरखनाथ बाबा के दर्शन करते हैं |


गोरखपुर की एक अन्य बिशेषता है लोगो की जागरूकता या जागरूक बने रहने की इसीलिये शायद यहाँ से हिन्दी के लगभग सारे समाचार पत्र छपते है जागरण, आज, हिंदुस्तान, सहारा, अमर उजाला इत्यादि |लोग इतने जागरूक है कि अपनी शिकायतों के लिए सम्बंधित विभाग में नहीं इन अखबारों के दफ्तर में जरूर पौंच जाते हैं | यहाँ लगभग १० स्थानीय टी वी चैनल हैं जिनके दफ्तर भी इस तरह के जागरूक निवासियों से भरे रहते हैं और अन्य टी वी चैनल तो हैं ही | आकाशवाणी और दूरदर्शन केंद्र भी यहाँ है | यहाँ ४ स्टार होटल, वाटर पार्क, फोरेस्ट क्लब, शौपिंग माल आदि काफी कुछ है |सभी प्रनुख बैंक स्टेट बैंक का आंचलिक कार्यालय, पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय यहाँ हैं | दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्व विद्यालय भी यहाँ है हर साल यहाँ फिल्म फेस्टिवल होता आयोजित किया जाता है जिसमे कई अन्तराष्ट्रीय फिल्मे प्रदर्शित की जाती है | सयोंग से मेरे पड़ोस में रहने वाले पेशे से डॉक्टर भी फिल्म निर्माण से जुड़े है| उनकी एक भोज पुरी फिल्म बन रही है "कोऊ हमसे जीत न पाई" |

कुल मिला कर ये शहर बहुत प्यारा और बहुत अपना सा लगता है |


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                     शिव प्रकाश मिश्रा
        http://shivemishra.blogspot.com

मंगलवार, 17 जनवरी 2012

आकांक्षा यादव को मानद डाक्टरेट की उपाधि

विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार के सोलहवें महाधिवेशन (13-14 दिसंबर, 2011)में युवा कवयित्री, साहित्यकार एवं चर्चित ब्लागर आकांक्षा यादव को मानद डाक्टरेट (विद्यावाचस्पति) की उपाधि से विभूषित किया गया। आकांक्षा यादव को मानद डाक्टरेट की इस उपाधि के लिए उनकी सुदीर्घ हिंदी सेवा, सारस्वत साधना, शैक्षिक प्रदेयों, राष्ट्रीय एवं अन्तराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में महनीय शोधपरक लेखन के द्वारा प्राप्त प्रतिष्ठा के आधार पर अधिकृत किया गया। उज्जैन में आयोजित कार्यक्रम में उज्जैन विश्वविद्यालय के कुलपति ने यह उपाधि प्रदान की।

गौरतलब है कि आकांक्षा यादव की रचनाएँ देश-विदेश की शताधिक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित हो रही हैं। नारी विमर्श, बाल विमर्श एवं सामाजिक सरोकारों सम्बन्धी विमर्श में विशेष रूचि रखने वाली आकांक्षा यादव के लेख, कवितायें और लघुकथाएं जहाँ तमाम संकलनों /पुस्तकों की शोभा बढ़ा रहे हैं, वहीं आपकी तमाम रचनाएँ आकाशवाणी से भी तरंगित हुई हैं। पत्र-पत्रिकाओं के साथ-साथ इंटरनेट पर भी सक्रिय आकांक्षा यादव की रचनाएँ तमाम वेब/ई-पत्रिकाओं और ब्लॉगों पर भी पढ़ी-देखी जा सकती हैं। व्यक्तिगत रूप से ‘शब्द-शिखर’(http://shabdshikhar.blogspot.com) और युगल रूप में ‘बाल-दुनिया’ (http://balduniya.blogspot.com),‘सप्तरंगी प्रेम’ (http://saptrangiprem.blogspot.com) व ‘उत्सव के रंग’ (http://utsavkerang.blogspot.com) ब्लॉग का संचालन करने वाली आकांक्षा यादव न सिर्फ एक साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित हैं, बल्कि सक्रिय ब्लागर के रूप में भी उन्होंने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। ’क्रांति-यज्ञ: 1857-1947 की गाथा‘ पुस्तक का कृष्ण कुमार यादव के साथ संपादन करने वाली आकांक्षा यादव के व्यक्तित्व-कृतित्व पर वरिष्ठ बाल साहित्यकार डा0 राष्ट्रबन्धु ने ‘बाल साहित्य समीक्षा‘ पत्रिका का एक अंक भी विशेषांक रुप में प्रकाशित किया है।

मूलतः उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ और गाजीपुर जनपद की निवासी आकांक्षा यादव वर्तमान में अपने पतिदेव श्री कृष्ण कुमार यादव के साथ अंडमान-निकोबार में रह रही हैं और वहां रहकर भी हिंदी को समृद्ध कर रही हैं। श्री यादव भी हिंदी की युवा पीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर हैं और सम्प्रति अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाएँ पद पर पदस्थ हैं। एक रचनाकार के रूप में बात करें तो आकांक्षा यादव ने बहुत ही खुले नजरिये से संवेदना के मानवीय धरातल पर जाकर अपनी रचनाओं का विस्तार किया है। बिना लाग लपेट के सुलभ भाव भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें यही आपकी लेखनी की शक्ति है। उनकी रचनाओं में जहाँ जीवंतता है, वहीं उसे सामाजिक संस्कार भी दिया है।

इससे पूर्व भी आकांक्षा यादव को विभिन्न साहित्यिक-सामाजिक संस्थानों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। जिसमें भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ’भारती ज्योति’, ‘एस0एम0एस0‘ कविता पर प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा पुरस्कार, इन्द्रधनुष साहित्यिक संस्था, बिजनौर द्वारा ‘साहित्य गौरव‘ व ‘काव्य मर्मज्ञ‘, श्री मुकुन्द मुरारी स्मृति साहित्यमाला, कानपुर द्वारा ‘साहित्य श्री सम्मान‘, मथुरा की साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘आसरा‘ द्वारा ‘ब्रज-शिरोमणि‘ सम्मान, मध्यप्रदेश नवलेखन संघ द्वारा ‘साहित्य मनीषी सम्मान‘ व ‘भाषा भारती रत्न‘, छत्तीसगढ़ शिक्षक-साहित्यकार मंच द्वारा ‘साहित्य सेवा सम्मान‘, देवभूमि साहित्यकार मंच, पिथौरागढ़ द्वारा ‘देवभूमि साहित्य रत्न‘, राजेश्वरी प्रकाशन, गुना द्वारा ‘उजास सम्मान‘, ऋचा रचनाकार परिषद, कटनी द्वारा ‘भारत गौरव‘, अभिव्यंजना संस्था, कानपुर द्वारा ‘काव्य-कुमुद‘, ग्वालियर साहित्य एवं कला परिषद द्वारा ‘शब्द माधुरी‘, महिमा प्रकाशन, दुर्ग-छत्तीसगढ द्वारा ’महिमा साहित्य भूषण सम्मान’, अन्तर्राष्ट्रीय पराविद्या शोध संस्था,ठाणे, महाराष्ट्र द्वारा ‘सरस्वती रत्न‘, अन्तज्र्योति सेवा संस्थान गोला-गोकर्णनाथ, खीरी द्वारा ’श्रेष्ठ कवयित्री’ की मानद उपाधि, जीवी प्रकाशन, जालंधर द्वारा ’राष्ट्रीय भाषा रत्न’ इत्यादि शामिल हैं।

विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार के इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न भागों में कार्यरत हिन्दी सेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि, विभिन्न विश्वविद्यालयों के विद्वान, शिक्षक-साहित्यकार, पुरातत्वविद्, इतिहासकार, पत्रकार और जन-प्रतिनिधि शामिल थे। उक्त जानकारी विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ के कुल सचिव डा. देवेंद्र नाथ साह ने दी।


बुधवार, 11 जनवरी 2012

ये नेता अब बिगड़ गए हैं

ये नेता अब बिगड़ गए हैं
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खटमल तो हैं भले बिचारे
चूस रक्त फिर भक्त बने
ये नेता तो चूसे जाते
घर भर लेते नहीं अघाते
दिन में भी हैं लूट रहे
सात समुन्दर पार हैं उड़ते
दिल बदले फिर फिर कर आते
जिस थाली में आते खाते
उसी में सौ सौ छेद करें
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मच्छर तो हैं भले बिचारे
बोल चूस कर उड़ जाते
बच सकते जो जागे होते
नेता जैसे नहीं ये होते
आँख झंपी तो वार करें
अपने बीच में पड़े खड़े हैं
कोल्हू जैसे पेर रहे
यहीं घूमते गोले-गोले
निशि दिन तेल निकाल रहे
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मगरमच्छ सा भोले बन के
यहाँ वहां है सोये
खून सूंघते आहट पर ये
“सौ” -टन जबड़ा कसते
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माया मोह न भाई बंधू
कुछ भी ना पहचानें
बड़े बेरहम हैं -अंधे -ये
माँ को भी ना जानें
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ये बन्दर हैं छीन झपट लें
शेर से करते वार
देव -दूत ना हंस नहीं हैं
गीदड़ -रंगा-नील सियार
पिजड़े में जब तेरे होंगे
मिट्ठू मिट्ठू बोलें
नाक नकेल अगर तुम ला दो
देश का बोझा ढो दें !!
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ये नेता अब बिगड़ गए हैं
फूल का हार न भाता
कोई जूता -हार -पहनता
कोई थप्पड़ खाता !
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काल कोठरी इनको भाती
एक एक कर जाते
माँ के दूध की लाज भी भूले
तनिको ना शरमाते
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रौंद रौंद फुलवारी को अब
सब पराग ले जाता
अंडे खा ना पेट भरे ये
“सोने चिड़िया ” नजर गडाए
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विद्वानों की मति मारें ये
पार्टी चाबुक लाये
जनता को सौ टुकड़े बाँटें
खून हैं रोज बहाते
रावण कंस बने ये दम्भी
देव से लड़ने जाते !!
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अथक परिश्रम से बनता है
भाई अपना खून
पानी सा मत इसे बहाना
सपने में ना भूल
कल रथ की डोरी हाथों में
तेरे फिर फिर आये
कोड़ा -चाबुक ले कर ही चढ़ना
गीता रखना याद !
माया -मोह- न रटना- “अपने ”
अर्जुन कृष्ण को लाना चुन के
तभी जीत हे ! जनता तेरी
तेरा होगा राज !!
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शुक्ल भ्रमर ५
३.३०-४.३१ पूर्वाह्न
२७.११.११ यच पी

मंगलवार, 3 जनवरी 2012

चर्चित लेखक-ब्लागर कृष्ण कुमार यादव को विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ द्वारा ’विद्यावाचस्पति’ की मानद उपाधि

विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार के सोलहवें महाधिवेशन (13-14 दिसंबर 2011) में युवा साहित्यकार एवं भारतीय डाक सेवा के अधिकारी श्री कृष्ण कुमार यादव को ’विद्यावाचस्पति’ की मानद उपाधि से विभूषित किया गया। श्री यादव को यह उपाधि उनकी साहित्यिक रचनाशीलता एवं हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए प्रदान किया गया। उज्जैन में आयोजित कार्यक्रम में उज्जैन विश्वविद्यालय के कुलपति ने यह उपाधि प्रदान की। श्री कृष्ण कुमार यादव वर्तमान में अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाएँ पद पर कार्यरत हैं ।

सरकारी सेवा में उच्च पदस्थ अधिकारी होने के साथ-साथ साहित्य, लेखन और ब्लागिंग के क्षेत्र में भी चर्चित नाम श्री कृष्ण कुमार यादव की रचनाधर्मिता को देश की प्रायः अधिकतर प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में देखा-पढ़ा जा सकता हैं। विभिन्न विधाओं में अनवरत प्रकाशित होने वाले श्री यादव की अब तक कुल 5 पुस्तकें- अभिलाषा (काव्य-संग्रह-2005), 'अभिव्यक्तियों के बहाने' व 'अनुभूतियाँ और विमर्श' (निबंध-संग्रह-2006 व 2007), India Post : 150 Glorious Years (2006) एवं 'क्रांति -यज्ञ : 1857-1947 की गाथा' (2007) प्रकाशित हो चुकी हैं। प्रसिद्ध बाल साहित्यकार डा. राष्ट्रबन्धु द्वारा श्री यादव के व्यक्तित्व व कृतित्व पर ‘‘बाल साहित्य समीक्षा‘‘ पत्रिका का विशेषांक जारी किया गया है तो इलाहाबाद से प्रकाशित ‘‘गुफ्तगू‘‘ पत्रिका ने भी श्री यादव के ऊपर परिशिष्ट अंक जारी किया है। आपके व्यक्तित्व-कृतित्व पर एक पुस्तक ‘‘बढ़ते चरण शिखर की ओर: कृष्ण कुमार यादव‘‘ (सं. डा. दुर्गाचरण मिश्र, 2009) भी प्रकाशित हो चुकी है। पचास से अधिक प्रतिष्ठित पुस्तकों/संकलनों में विभिन्न विधाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं व ‘सरस्वती सुमन‘ (देहरादून) पत्रिका के लघु-कथा विशेषांक (जुलाई-सितम्बर, 2011) का संपादन भी आपने किया है। आकाशवाणी लखनऊ, कानपुर व पोर्टब्लेयर और दूरदर्शन से आपकी कविताएँ, वार्ता, साक्षात्कार इत्यादि का प्रसारण हो चुका हैं।

श्री कृष्ण कुमार यादव ब्लागिंग में भी सक्रिय हैं और व्यक्तिगत रूप से शब्द सृजन की ओर (www.kkyadav.blogspot.com) व डाकिया डाक लाया (www.dakbabu.blogspot.com) और युगल रूप में ‘बाल-दुनिया’ ,‘सप्तरंगी प्रेम’ ‘उत्सव के रंग’ ब्लॉगों के माध्यम से सक्रिय हैं। विभिन्न वेब पत्रिकाओं, ई पत्रिकाओं, और ब्लॉग पर प्रकाशित होने वाले श्री यादव की इंटरनेट पर ’कविता कोश’ में भी काव्य-रचनाएँ संकलित हैं।

इससे पूर्व श्री कृष्ण कुमार यादव को भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘’महात्मा ज्योतिबा फुले फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान‘‘ व ‘’डाॅ0 अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान‘‘, साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा, राजस्थान द्वारा ”हिंदी भाषा भूषण”, भारतीय बाल कल्याण संस्थान द्वारा ‘‘प्यारे मोहन स्मृति सम्मान‘‘, ग्वालियर साहित्य एवं कला परिषद द्वारा ”काव्य शिरोमणि” एवं ”महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला‘ सम्मान”, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ‘‘भारती रत्न‘‘, अखिल भारतीय साहित्यकार अभिनन्दन समिति मथुरा द्वारा ‘‘कविवर मैथिलीशरण गुप्त सम्मान‘‘, ‘‘महाकवि शेक्सपियर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान‘‘, मेधाश्रम संस्था, कानपुर द्वारा ‘‘सरस्वती पुत्र‘‘, सहित विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं द्वारा विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और प्रशासन के साथ-साथ सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु 50 से ज्यादा सम्मान और मानद उपाधियाँ प्राप्त हो चुकी हैं।

विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार के इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न भागों में कार्यरत हिन्दी सेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि, विभिन्न विश्वविद्यालयों के विद्वान, शिक्षक-साहित्यकार, पुरातत्वविद्, इतिहासकार, पत्रकार और जन-प्रतिनिधि शामिल थे। उक्त जानकारी विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ के कुल सचिव डा. देवेंद्र नाथ साह ने दी।

सोमवार, 2 जनवरी 2012

जय बाबा बनारस ...पुरविया.: तू कैसा ब्लॉगर है

जय बाबा बनारस ...पुरविया.: तू कैसा ब्लॉगर है: अमा इतना खुस गवार मौसम है अपनी इस प्यारी दिल्ली का और तू कैसा ब्लॉगर है की कुछ लिखता ही नहीं कुछ नहीं तो यही लिख दे की आज का मौसम बहुत अ...

मसाला तो बहुत है लेकिन ...

अमा इतना खुस गवार मौसम है अपनी इस प्यारी दिल्ली का

और तू कैसा ब्लॉगर है की कुछ लिखता ही नहीं

कुछ नहीं तो यही लिख दे की आज का मौसम बहुत अच्छा है इसलिए

कुछ लिखने का मन नहीं कर रहा है फिर भी कुछ लिख रहे है

अबे किया खाक लिखा है लिख ने को मसाला तो बहुत है

लेकिन ........तू कैसा ब्लॉगर है....समय की धारा के साथ साथ कुछ सार्थक लिख

चलो आज कुछ तो लिखा कल कुछ और लिखे गे ...

जय बाबा बनारस.....