शुक्रवार, 20 मई 2011

कितने रूप धरे तू नारी


बड़े चैन से सोया था मै
मंदिर सीढ़ी पड़ा कहीं
क्या क्या सपने -खोया था मै
ले भागी स्टेशन जब !!
सीटी एक जोर की सुन के
चीख उठा मै कान फटा
एक भिखारन की गोदी में
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(फोटो साभार गूगल /नेट से लिया गया)
सुन्दर-सजा हुआ लिपटा
देख रहा अद्भुत एक नारी !!
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बड़ी भीड़ में घूर रही कुछ
तेज निगाहें देख रहा
अरे चोरनी किसका बच्चा
ले आई यों खिला रही
शर्म नहीं ये धंधा करते
खीसें खड़ी निपोर रही
देख रहा शरमाती नारी !!
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फटी हुयी साडी लिपटा के
मुझे लिए डरती भागी वो
खेत बाग़ डेरे में पल के
खच्चर -मै -चढ़ घूम रहा
सूखा रुखा मुर्गा चूहा
पाया जो आनंद लिया !
कान छिदाये माला पहने
नाग लिए मै घूम रहा !
खेल दिखाता करतब कितने
“बहना” भी एक छोटी पायी
भरे कटोरा ले आते हम
ख़ुशी बड़ी अपनी ये माई !
देख रहा क्या लोलुप नारी !!
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उस माई का पता नहीं था
कहीं अभागन जीती जो
या लज्जा से मरी कहीं वो
साँसे गिनती होगी जो
सोच रहा वो कैसी नारी !!!
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अपनी माँ को माँ कहने का
सपना मन में कौंध रहा
उस मंदिर में बना भिखारी
रोज पहुँच मै खड़ा हुआ
जिस सीढ़ी से मुझे उठा के
इस माई ने प्यार दिया
सोच रहा था ये भी नारी !!!
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माई माई मै घिघियाता
कुछ माई ने देखा मुझको
सिक्का एक कटोरे डाले
नजरों जाने क्या भ्रम पाले
कोई प्यार से कोई घृणा से
मुह बिचका जाती कुछ नारी
कितने रूप धरे तू नारी !!!
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नट-नटिनी के उस कुनबे में
मुझे घूरती सभी निगाहें
कृष्ण पाख का चंदा जैसे
उस माई का “लाल ये” दमके
कोई हरामी या अनाथ ये
बोल -बोल छलनी दिल करते
देख रहा अपमानित चेहरा -तेरा -नारी !!
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बच्चों की कुछ देख किताबें
हाथ में बस्ता टिफिन टांगते
कितना खुश मै हँस भी पड़ता -
मन में !! -दूर मगर मै रहता
छूत न लग जाये बच्चों को
प्यारे कितने फूल सरीखे !
गंदे ना हो जाएँ छू के !
हँस पड़ता मै -रो भी पड़ता
हाथ की अपनी देख लकीरें
देख रहा किस्मत की रेखा !!!!
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तभी एक “माई” ने आ के
पूड़ी और अचार दिया
गाल हमारा छू करके कुछ
“चुप” के से कुछ प्यार दिया
गोदी मुझे लगा कर के वो
न्योछावर कर वार दिया !
कुछ गड्डी नोटों की दे के
इस माई से मुझे लिया !!
भौंचक्का सा बना खिलौना
“उस माई ” के संग चला
देख चुका मै कितनी नारी !!!
कितने रूप धरे तू नारी !!
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
१७.५.२०११ जल पी. बी .१०.४१ मध्याह्न

4 टिप्‍पणियां:

  1. भ्रमर जी ..
    कई कविताये आपकी पढ़ी थी माँ के लिए मगर ये बहत मर्मस्पर्शी लगी..
    आभार इस सुन्दर कविता के लिए...इसी भावना में हिंदी में लिखी एक कविता : माँ से कुछ सवाल-एक अनाथ के

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  2. आशुतोष भाई जी माँ और अनाथ के वेदना और वस्तुगत स्थिति भाव से भरी ये रचना आप को मर्म स्पर्शी लगी सुन हर्ष हुआ

    आशुतोष जी आप की इस से मिलती कविता माँ मैं अब बड़ा हो रहा हूँ… बहुत प्यारी है और बहुत ही समृद्ध है बधाई हो

    धन्यवाद

    शुक्ल भ्रमर ५

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  3. भ्रमर जी, आपकी रचनाये मैं पढता रहता हूँ पर कमेन्ट नहीं कर पाता. बहुत अच्छा लिखते हैं आप.
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  4. हरीश भाई नमस्कार सुन्दर लगा -आप पढ़ते तो हैं न -विचार आप के से विद्वानों के पढ़े जाएँ तो मजा आये पर समय की कमी से हम सब मजबूर हैं -अपना स्नेह बनाये रखें

    धन्यवाद

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