मंगलवार, 17 मई 2011

माँ जैसे थपकी दे जाती



एक नन्हा बालक जो किहाँ किहाँ -उहाँ उहाँ- रो रहा मोती छलकाते माँ की गोदी में चिपका माँ की आँखों में झांकता है और विश्व दर्शन सा कहीं खो जाता है -आइये आज आप सब को उस दुनिया में ले चलें जहाँ से कभी आप भी गुजरे होंगे -आइये याद कर लें वो पल -
अम्मा जब मै तेरी गोदी
रो रो किहाँ -किहाँ करता
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(फोटो साभार गूगल से )
तेरी आँखों में छवि अपनी
देख देख कुछ खो जाता
मायावी आँखों का जादू
सागर की गहराई में !
जल तरंग कुछ जल परियां
आ गोदी भर ले जाती हैं !
लोरी गा गा मैया मुझको
चांदी के पलने में देखो !
घूम नाच कुछ घुंघरू जैसे
पांवों में छनकाती हैं !!
तेरी ऊँगली थिरक थिरक
“माँ”-जैसे -थपकी दे जाती !
कुछ हंसती कुछ लिए कटोरा
सोने के चम्मच से मुख में
मुझको दूध पिलाती हैं !!
तेरा आँचल लहरा कर माँ
ज्यों ही पलकों मेरे पड़ता
ऊँगली पकडे जोर तभी मै
पलक खोल कर चिहुंक उठा !
जाग गया मै देखा मैया
क्या क्या रूप गढ़ा तूने !!
तू देवी है तू सागर है
तू सीपी है तू मोती है
नील गगन तू चंदा तू है
सूरज तू है चाँद सितारा
रजनी दिवस सभी तो तू है !!
तू माया है ममता तू है
राग रागिनी सब माँ तू है
नींद हमारी तू है मैया
पलक हमारी छू ले फिर से
फिर सपनों में खो जाऊं !
दिल में तेरे छुपा रहूँ मै
वहीँ घरौंदा एक बनाऊं !!
तेरी सांस से मेरी साँसे
तेरी धड़कन मेरी माँ !
कितना प्यार करे तू अम्मा
वहीँ देख -मै सो जाऊं !!
किहाँ किहाँ फिर नहीं करूँगा
तुझको नहीं रुलाऊंगा
तू रोएगी जो अम्मा तो
पलक खोल ना पाऊंगा !!
हंस दे तू -फूलों सी अम्मा
खिली रहे शाश्वत इस बगिया !
तुझे निहारूं जब भी मै तो
हो आबाद हमारी दुनिया !!
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(फोटो साभार गूगल से )
तेरे दिल का टुकड़ा हूँ मै
कभी बिछड़ ना जी पाऊँ
इस टुकड़े को जोड़े रखना
कभी जुदा ना करना माँ !!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
प्रतापगढ़ उ.प्र.
१७.५.२०११

2 टिप्‍पणियां:

  1. माँ की महिमा अपरम्पार है..
    भ्रमर जी आपकी कृतियों में माँ की अद्भुत वात्सल्यता का यथार्थ चित्रण देखने को मिलता है...
    आभार..

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  2. आशुतोष भाई धन्यवाद आप का माँ ममता की मूर्ति है वात्सल्य से भरी अमृत की गगरी है जहाँ भी चले प्रेम छलकती पावन कर जाये
    आभार आप का
    शुक्ल भ्रमर ५

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