मंगलवार, 31 मई 2011

मै आवारा ना प्यारा बदनाम हुआ -


मै आवारा ना प्यारा बदनाम हुआ -
बचपन में कोई नहीं दुलारा !
सींचे बिन कोई शीश उठा मिटटी -ना-
-छाया पायी कोई -आँखें रोई !
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(फोटो साभार गूगल / नेट से )
रूखे दूजे चढ़ हरे हुए- अचरज से देखे
काट लिया उसको भी कोई !
गलियारों में कुत्ते भूंके- बच्चे तो छूने ना देते
-ना-आँख मिलायी !
रहा अकेला- मन में खेला -कुंठा ने दीवार बनायीं
लोग कहें हैं पाप कमाई !!
भूखे को दे –टाला खाना -मन कैसा ?
छीना झपटी- क्यों मारा ?? मै आवारा !!
————————————————-
बद अच्छा बदनाम बुरा -खुद कांटे बोकर -
घाव किया न सूखेगा !
नैनों में ना नीर बचा दिल पत्थर क्या तीर चुभे-
फूल कहाँ से फूटेगा !
बढ़ा दिए मन दूर किये जन -फूलों को अब लगता काँटा
अंग कहाँ बन पायेगा !
लगी आग घर -दूर खड़े हम -प्यास लगे ना पानी देता
ख़ाक हाथ रह जायेगा !
खोद कुआँ मै पानी पीता -रोज किसी को दिया सहारा -
मै आवारा ??? ना प्यारा बदनाम हुआ -
बचपन में कोई नहीं दुलारा !
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नासूर बनाये छेड़ छाड़ तो अंग तेरा कट जाएगा
उपचार जरा दे !!
टेढ़ी -मेढ़ी चालें चलता पग लड़ता गिर जायेगा
-तू चाल बदल दे !
भृकुटी ताने आँखें काढ़े -बोझ लिए मन रोयेगा
मुस्कान जरा दे !
अपनों को ही सांप कहे- पागल- तुझको डंस जायेगा
तू ख्याल बदल दे !
आग लगी मन -जल जाता तन-भटका फिरता -
छाँव कहाँ मिल पायेगा -मै आवारा ??
ना प्यारा बदनाम हुआ -
बचपन में कोई नहीं दुलारा !
!
————————————————–
आग लगे सब दूर रहें -परिचय चाहूं ना -
जल तप्त हुए -मै ना झुलसाता !
कीचड जाने दूर रहें -अभिनय -साधू ना-
दलदल में वह ना धंस जाता !
बलिदान चढ़ाता- ऋण भूले ना -
सजा काट कर न्याय बचाता -
पाप किये ना पाँव धुलाता
सीमा रेखा में अपनी -सिद्धांत बनाता -
दो टुकड़ों के खातिर कुछ भी -
साजिश कर -ना -देश लुटाता !
माँ बहनों को “प्यार” किये – “बदनाम” भी होता -
आग नहीं तो राख कहीं लग जाएगी -ये आवारा !
मै आवारा ?? ना प्यारा -बदनाम हुआ -
बचपन में कोई नहीं दुलारा !!!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
३१.०५.२०११ जल पी. बी .१०.४१ मध्याह्न

श्याम स्मृति - सनी...अगीत ....Dr shyam gupt....

वे चलते थे ,
पिता के अग्रजों के पद-चिन्हों पर ,                     
ससम्मान, सादर, सानंद;
आज्ञानत होकर ,
देश समाज राष्ट्र उन्नति हित-
सुपुत्र कहलातें थे |
आज वे-
पिता को, अग्रजों को ,
मनमर्जी से चलाते हैं ;
एन्जॉय करने के लिए,
अवज्ञानत होकर ;
स्वयं को एडवांस बताते हैं,
सनी कहलाते हैं ||

जय जय सिकुलर देवा

ये है नया सिकुलर कीड़ा 
हरामी सलमान खान ने अपनी फिल्म के एक गाने में श्री कृष्ण जी का अपमान किया है ,गाने का तात्पर्य है की "श्री कृष्ण करने तो रास लीला और वो  सलमान हरामी करे तो चरित्र हीनता " इसे कहते है हिन्दुओं की नपुंसकता किसी ने  भी इस हिन्दू भावना के अपमान के विरुद्ध आवाज नहीं उठाई ,क्या हिन्दू भावना को घोंट कर पी गए बीजेपी वाली जो इसके विरुद्ध आवाज भी नहीं उठाई ,यदि श्री कृष्ण पर कोई उल्टा सीधा गाना बन जाए तो वो ठीक किन्तु यदि हज़रात मोहम्मद का सच सामने रख दिया जाए तब जागृत होती है राष्ट्रीय एकता में दरार ,भाजपा के समर्थकों मैं आपसे पूछता हूँ की भाजपा इस पर क्यों चुप है , आपका क्या विचार है मेरे हिन्दू भाइयों ,यदि आप जरा सी भी हिन्दू भावना बची है तो इसकी फिल्म का सम्पूर्ण बहिष्कार करें ,और कृपया आप अपने विचार यहाँ पोस्ट करें 

रविवार, 29 मई 2011

शायरी

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सफीना

कहानी

कैस जौनपुरी

सफीना

-“हैलो...सर आपसे मिलने सफीना आई हुई हैं बैंक से...” ये आवाज थी मेरे ऑफिस की रिसेप्शनिस्ट की. मैं न चाहते हुए भी बैंक से फोन करने वालों को मना नहीं कर पाया था. और उसका सिला ये हुआ कि सफीना नए सेविंग अकाउंट के लिए मेरे डॉक्यूमेंट्स लेने आई थी. मैंने सोचा, “लड़की आई है...डॉक्यूमेंट्स लेने...? क्या बात है...! बैंक वाले भी क्या-क्या करते रहते हैं....! पहले तो लड़कियां सिर्फ फोन पर बात करती थीं....अब पेपर्स लेने भी खुद आने लगी हैं...”

खैर...मैं बेमन से कुछ सोचता हुआ आया...और रिसेप्शन पे बैठे लोगों पर एक नज़र दौड़ाई...एक पतली सी लड़की बैठी हुई थी, लाल सोफे पे, एक किनारे...मैंने उसी से पूछा...”सफीना...?” वो मुस्कुरा कर खड़ी हो गई...मैंने आदतन हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ाया...सफीना सिर्फ देखेने में छोटी सी, पतली सी लड़की लग रही थी मगर उसे सब बातें मालूम थीं कि लोग मिलते हैं तो हाथ मिलाते हैं...और मुस्कुराते हैं....

खैर तब तक मैं सफीना के चेहरे को देख चुका था...सफीना एक खूबसूरत लड़की थी...मासूम सी...फूल जैसी...कोमल...अनछुई...कच्ची कली जैसी...मगर इतनी छोटी सी उमर में मार्केटिंग जैसा जद्दोजहद वाला काम कर रही थी....

सफीना का हाथ मेरे हाथ में था और मुझे लगा जैसे मैं किसी मखमल की चादर के एक कोने को पकड़े हुए खड़ा हूँ...और चादर के मखमली अहसास को महसूस करके खुश हो रहा हूँ...फिर मैंने सफीना से कहा...”आइये...” सफीना को लेकर मैं मीटिंग रूम में आ गया...अब उस रूम में सिर्फ मैं था और सफीना थी....सफीना ने फॉर्म निकाल लिया था...और वो उसी काम के लिए आई भी थी...

सफीना अपना काम बहुत ही खूबसूरती से कर रही थी....और मैं...उसकी खुद की खूबसूरती में बार-बार खो जा रहा था...फिर जब कोई बात ऐसी होती थी जब मुझे जवाब देना होता था तब मैं वापस अपने होश में आ जाता था...और जब सफीना बोलती थी...तो मैं उसके चेहरे को एक तरफ से दूसरी तरफ नज़र घुमा कर देख ले रहा था. जब मेरी और सफीना की नज़रें मिलतीं तो थोड़ी देर के लिए मैं अपनी नज़र हटा लेता था...मगर ऐसी हालत में बहुत मुश्किल हो जाता है....अगर आपके दिमाग में कुछ और चल रहा है....... तो आप नज़र मिला के बात नहीं कर सकते...... और जब आप नज़र नहीं मिला पाते हैं........ तब इधर-उधर देखते हैं...और फिर जब सामने सफीना जैसी हसीन लड़की हो तो इधर-उधर देखना........ खुद को भी बुरा लगता है...मगर जरा सी देर के इस इधर-उधर में मैंने देख लिया था कि सफीना वाकई बहुत पतली थी...

मुझे पता नहीं उसकी उमर क्या रही होगी मगर देखने में वो बिलकुल पन्द्रह साल की एक कमसिन लड़की लगा रही थी...लेकिन वो बैंक में काम करती थी तो इतना तो तय है कि वो कुल पन्द्रह साल की तो नहीं रही होगी...मगर मेरे लिए उसकी उमर उतनी मायने नहीं रखती थी जितना कि उसका खूबसूरत चेहरा....और जैसा मेरे साथ अक्सर होता है...एक खूबसूरत चेहरा दिखा नहीं कि मैं फ़िदा....मैं सफीना के खूबसूरत चहरे पर भी फ़िदा हो गया था...सफीना का छोटा सा गोरा चेहरा ऐसा लग रहा था जैसी किसी चित्रकार की कला हो...एक पेंटिंग हो....

जब वो बोल रही थी तो उसके गुलाबी होंठ ऐसे लग रहे थे जैसे कोई फूल खिल रहा हो...उसकी पंखुडियां फ़ैल रही हों...फिर सिकुड़ जा रही हों...फिर एक खुश्बू सी बिखर रही हो...

सफीना इस नए सेविंग अकाउंट के फायदे बता रही थी...जिनमें फायदे ज्यादा थे...नुकसान बिलकुल नहीं...तो मैंने पूछा...”ऐसा क्यूँ कर रहे हो आपलोग...? इतना सबकुछ फ्री में क्यों दे रहे हो...? आप कैसे मैनेज करोगे...???” तब सफीना मुस्कुराई थी...उसने कहा....”सर ये बैंक ऑफर दे रही है...अब कुछ नया नहीं रहेगा तो कस्टमर कैसे आयेंगे...ज्यादा कस्टमर को अट्रैक्ट करने के लिए खर्चा तो करना ही पड़ेगा...” मैंने पूछा...”वसूलोगे कैसे...?” इस बार सफीना खिलखिलाकर हंसी थी...

मुझे उससे बात करके अच्छा लग रहा था...एक तरफ मेरे दिमाग में ये ख्याल आ रहा था कि “ये बैंक वाले सब अच्छा-अच्छा दिखा के बाद में चूना लगाते हैं...” दूसरी तरफ सफीना का रूहानी चेहरा देखकर मैं सबकुछ भूल जा रहा था...या यूँ कहूँ तो जानबूझकर ऐसा कर रहा था...क्योंकि सफीना के मासूम चहरे के आगे मैं कोई भी धोखा खाने को तैयार था...ज्यादा से ज्यादा क्या जाएगा...कुछ पैसे....इतना कमाया...आगे भी कमा लूँगा....

बहरहाल...सफीना ने मुझे तैयार कर ही लिया...मैं और कुछ सोच भी नहीं पा रहा था...सफीना ऐसे अकाउंट की बात कर रही थी जिसमें मुझे पच्चीस हजार रूपए कम से कम रखने पड़ेंगे...मैं ये भी सोच रहा था...”क्या मैं इतने पैसे रख पाऊंगा...?” लेकिन फिर मैंने सफीना से पूछा...”अगर किसी महीने पच्चीस हजार से कम हो गए तो...?” तो सफीना ने मुस्कुरा कर ये भी परेशानी दूर कर दी...उसने बैंक के सारे नियम-कानून बता डाले...जिसमें मुझे कोई दिलचस्पी नहीं थी...मैं तो ये अकाउंट बस सफीना के कहने पर खोल रहा था....वो जो-जो कह रही थी....मैं एक अच्छे बच्चे की तरह सारी बातें मान रहा था...कहीं दिल के भीतर से ये आवाज आ रही थी...”डरो मत...इतनी खूबसूरत लड़की धोखा नहीं दे सकती...”

उसने कहा “चेक दे दीजिए....” मैंने पूछा...”कितने का...?” उसने कहा ...”पच्चीस...” मैंने पूछा....”पूरा....?” मेरे इस बचकाने सवाल पर सफीना एक बार फिर जोर से हंसी थी....और मेरे दिल को एक तसल्ली मिल गई....उस वक्त अगर वो कहती “पचास...” तो भी शायद मैं पीछे नहीं हटता...

मैंने पच्चीस हजार का चेक भी दे दिया.... इस बार सफीना ने मेरी टांग खीची....”सर...चेक क्लियर हो जाएगा ना....?” और इतना कहते ही हम दोनों हंसने लगे...ऐसा लग रहा था जैसे हम दोनों एक-दूसरे को बहुत पहले से जानते हैं...और बहुत अच्छे दोस्त हैं...मगर ऐसा नहीं था. सफीना अभी थोड़ी देर पहले ही मुझसे मिली थी...मगर उसका बात करने का अंदाज इतना प्यारा था कि बात कुछ और ही हो रही थी....

मैंने सफीना से कह दिया...”पहली बार मैं किसी ‘सेल्स गर्ल’ से इस तरह बात कर रहा हूँ....सफीना ने अपनी सफाई में कहा....”सर...आजकल कम्पटीशन बहुत बढ़ गया है...अब आपको कुछ अलग करना पड़ता है...तब बिजनेस आगे जाता है...तभी लोग जुड़ते हैं...और एक रिलेशन बनता है...”

सफीना की बात बिलकुल सही थी...उसने अपनी बातों से एक रिश्ता बना लिया था...मेरे और अपने बीच...मुझे ये रिश्ता एक खूबसूरत रिश्ते जैसा लग रहा था...एक सेल्स गर्ल और एक अकाउंट होल्डर का रिश्ता....एक खूबसूरत रिश्ता जिसमें दोनों अपनी-अपनी पहचान भूलकर एक इंसान की तरह पेश आ रहे थे....

सफीना ने जल्दी-जल्दी फॉर्म भर दिया...और मुझे दस्तखत करने को कहा...मैंने बिना देखे-पढ़े हर जगह दस्तखत कर दिए...मुझे सफीना पर भरोसा था...क्योंकि सफीना एक बेहद खूबसूरत लड़की थी...और खूबसूरती ही मेरी कमजोरी है...मुझे कुछ दिखाई नहीं देता है...अगर मेरे सामने एक खूबसूरत चेहरा आ जाए...कई बार इस वजह से मुझे नुकसान भी होता है....लड़कियां मेरे बारे में गलत राय बना लेती हैं...कि...मैं ऐसा हूँ...मैं वैसा हूँ....लेकिन इन लड़कियों को मालूम नहीं होता है कि...मैं किस चीज पर मर रहा हूँ....

“नॉमिनी किसको बनायेंगे सर....?” ये एक अचानक सा सवाल मेरे कानों को सुनाई दिया. अब बात कुछ और हो गई थी...मैंने एक नाम बताया. सफीना ने वो नाम लिख दिया...फिर सफीना ने पूछा...”नॉमिनी से आपका क्या रिश्ता है....” थोड़ी हिचक तो हुई मगर बताना तो था...हिचक इसलिए हुई कि अभी तक हम खुलकर बात कर रहे थे...हंस रहे थे...मुझे डर लगा कहीं सफीना ये जानने के बाद कि मैं शादी-शुदा हूँ...मुझसे दूरी ना बना ले...बस इसी डर से मैं हिचक रहा था...लेकिन सफीना का दिल बहुत साफ़ था...उसके चहरे पे एक शिकन भी नहीं आई...फिर मुझे लगा...मैं बिलावजह डर रहा था...

अब सफीना के जाने का वक़्त था...लेकिन सफीना ने जाने से पहले कुछ बातें ऐसी कहीं...कि मैं कुछ सोचने पर मजबूर हो गया....सफीना ने कहा....”सर ब्रांच कौन सी रखना चाहेंगे...? आप कहाँ रहते हैं...?” मैंने कहा...”अंधेरी वेस्ट...” सफीना ने कहा...”अंधेरी वेस्ट में जे पी रोड़ पर हमारी ब्रांच है...” मैंने कहा...”हां मेरे लिए वही सही रहेगा...मेरे घर के पास भी है...” मगर सफीना ने कुछ ऐसा कहा जिसने पूरी बातचीत का रुख मोड़ दिया...उसने कहा....”लेकिन सर....मैं चाहती हूँ..कि आप अंधेरी ईस्ट ब्रांच रखिये...क्योंकि यहाँ पर मैं बैठती हूँ...कल को आपको कोई जरुरत पड़ती है तो मैं हेल्प कर सकती हूँ...और आपका अकाउंट खुलते ही मैं खुद आकर आपको ‘वेलकम किट’ दे जाउंगी...” सफीना ने सारी बातें एक सांस में कह डालीं....मेरे लिए सोचने का वक्त ही नहीं था...सफीना खुद कह रही थी...कि वो खुद आएगी...मुझसे मिलने....उसने अपना विजिटिंग कार्ड भी दिया जिस पर उसका मोबाईल नंबर भी था....सफीना बिलकुल भी झिझक नहीं रही थी...

अभी तक मैंने जितनी भी मार्केटिंग गर्ल्स को देखा है...सब सोचती हैं कि कितनी जल्दी इस आदमी से पीछा छूटे...और ऐसी लड़कियों के लिए आदमी भी यही सोचता है....कि...कितनी घमंडी है...मार्केटिंग कैसे करती है...मगर सफीना समुन्दर में तैरता हुआ एक ऐसा फूल थी....जो लहर के साथ ऊपर-नीचे हो रही थी...और देखने वाले को एक तसल्ली मिल रही थी...देखने वाला ये सोच रहा था कि...कितना खूबसूरत फूल है...देखो कितनी बेपरवाही से अकेला समुन्दर की लहरों पर तैर रहा है....

सफीना को देखकर ऐसा लग रहा था कि...सफीना खुद चाहती है कि मैं उससे मिलूं....तो फिर मुझे मना करने का कोई बहाना नहीं मिला...और फिर मेरे लिए तो अच्छा ही था...सफीना फिर मिलने का वादा करके चली गई...जाते हुए उसके चेहरे पे एक मुस्कान थी...कि जिस काम से वो आई थी....वो हो चुका था...और मेरे चेहरे पे एक मुस्कान थी...जो सफीना को देखने के बाद आई थी...मैं भूल गया कि वो लड़की पच्चीस हजार का चेक लेकर गई है...पता नहीं क्या करेगी...?

फिर दोपहर में उसका फोन आया...”सर आपका ‘वेलकम किट’ रेडी है....मैं आ जाऊं देने के लिए...?” मैंने पूछा...”इतनी जल्दी...? आपने तो कहा था...दो दिन लगेंगे...?” फिर उसने कहा...”हां सर...सब डिटेल्स ठीक थीं इसलिए जल्दी हो गया...” उस वक्त एक बज रहा था...नमाज का वक्त हो रहा था...मैंने कहा...”अभी तो मैं नमाज के लिए जा रहा हूँ...आप उसके बाद आइये...” सफीना ने कहा...”ठीक सर...मैं आपको दो बजे फोन करती हूँ...अल्लाह हाफ़िज़....” सफीना ने जो कहना था कह दिया...मुझे बस ये समझ में आया कि वो मुझसे मिलने आ रही है...दो बजे. उसका वो बाद में कहना...”अल्लाह हाफ़िज़...” मेरे दिल को छू गया था...उसने मेरी हिफाज़त के लिए ऐसा कहा था...इसका मतलब उसे मेरी फिक्र थी...और ये अहसास मेरे लिए ऐसा था जैसे मेरे अंदर दो बोतल खून एकाएक बढ़ गया हो...

मैंने नमाज खत्म होने के बाद सफीना को फोन किया...सफीना ने कहा...”सर मैं बांद्रा के लिए निकल गई हूँ...मेरा एक्सिक्यूटिव आएगा और वो आपको किट दे देगा....” मुझे ये कतई मंजूर नहीं था...अभी तो मैं अपने खुदा का शुक्रिया अदा करके आ रहा था कि उसने मुझे इस खूबसूरत सफीना से मिलाया...और अब सफीना कह रही थी कि वो नहीं आ रही है...उसकी जगह कोई और आ रहा है...

तब तक मुझे भी इतना हौसला मिल चुका था कि मैं अपने दिल की बात कह सकता था...सो मैंने भी कह दिया...”जी... ये ठीक नहीं है....आपने कहा था कि आप आएँगी...अब आप किसी और को मत भेजिए...मैंने तो सोचा था आप आएँगी फिर हम दोनों एक साथ लंच करेंगे....”

सफीना का दिल बहुत बड़ा था...उसने मुझे नाराज नहीं किया और अगली सुबह साढ़े नौ बजे अंधेरी स्टेशन पर मिलने का वादा किया...अगली सुबह मैं जल्दी-जल्दी तैयार होकर स्टेशन पहुँच गया...मगर सफीना अभी नहीं आई थी...मैंने फोन किया तो उसने कहा...”मैं दस मिनट में पहुँच रही हूँ...” दस मिनट बीस मिनट में बदल गए...दस बजने को आये थे मगर सफीना अभी नहीं आई थी...मेरे दिमाग में बहुत सारे ख्याल आ-जा रहे थे...मैं सोच रहा था... सफीना के साथ मैक्डोनाल्ड में नाश्ता करूँगा....फिर साथ में ऑटो में बैठकर अंधेरी ईस्ट चलेंगे...दोनों का आफिस उधर ही था...

काफी देर इन्तजार करने के बाद सफीना आई...मैंने सफीना को देखा...वो मेरी ही तरफ आ रही थी...मगर आज मुझे वो रौनक उसके चेहरे पर दिखाई नहीं दी...शायद मेरी नज़र में कोई कमी आ गई थी...शायद मैं सफीना को अकेले मिलना चाहता था और सफीना अपने साथ एक बॉडीगार्ड लेकर आई थी...सफीना के साथ में एक लड़की और थी...मुझे उस लड़की के बारे में कुछ नहीं कहना था...मुझे शुकायत हो रही थी सफीना से....मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगा था...इतनी सारी बातों के बाद सफीना मुझसे सिर्फ काम के सिलसिले में मिलने आई थी...उसने मुझे ‘वेलकम किट’ दिया और कहा... “इसमें से एक पेपर मुझे चाहिए...” उसने मुझे लिफाफा खोलने के लिए कहा....मगर मैं तब तक इतना हार चुका था कि एक लिफाफा भी नहीं खोल सकता था...मैंने उसी से कहा...”आप ही खोलिए...” सफीना ने जल्दी-जल्दी लिफाफा खोला और मुझे सारी चीजें दिखाई...”ये है आपका एटीएम कार्ड... ये है चेक बुक...ये तीनों पासवर्ड...एक एटीएम का ...एक...नेटबैंकिंग का...और ये फोन बैंकिंग का...”

मैंने पूछा...”अब आपको किधर जाना है...” सफीना ने अपनी उसी मोहक अदा से कहा...”अब मुझे दादर जाना है...” पहली बार मुझे लगा कि सफीना झूठ बोल रही है....सच जो भी हो लेकिन एक सच ये था कि सफीना मेरे साथ नहीं थी...उसने...कहा...”और कुछ...?” मैं कहना तो चाह रहा था मगर मैं कैसे कहता उसके साथ एक लड़की और थी...मैं कुछ न कह सका...सफीना...”ओके...बॉय...” कहके चल दी....मैं उसे जाते हुए देख रहा था...मैं सोच रहा था...किसी ने सच ही कहा है....धोखा हमेशा खूबसूरत ही होता है...लेकिन सफीना ने कोई धोखा नहीं दिया था...वो तो बस अपना काम एक ‘अपनेपन’ से कर रही थी....वो तो मैं था जो उसके इस बेबाक ‘अपनेपन’ में अपने आप को ढूँढ़ रहा था....

कैस जौनपुरी

qaisjaunpuri@gmail.com

9004781786, 7738250270

दुःख ही दुःख का कारण है


दुःख ही दुःख का कारण है
दिल पर एक बोझ है
मन मष्तिष्क पर छाया कोहराम है
आँखों में धुंध है
पाँवो की बेड़ियाँ हैं
हाथों में हथकड़ी है
धीमा जहर है
विषधर एक -ज्वाला है !!
राख है – कहीं कब्रिस्तान है
तो कहीं चिता में जलती
जलाती- जिंदगियों को
काली सी छाया है !!
फिर भी दुनिया में
दुःख के पीछे भागे
न जाने क्यों ये
जग बौराया है !!
यही एक फूल है
खिला हुआ कमल सा – दिल
हँसता -हंसाता है
मन मुक्त- आसमां उड़ता है
पंछी सा – कुहुक कुहुक
कोयल –सा- मोर सा नाचता है
दिन रात भागता है -जागता है
अमृत सा -जा के बरसता है
हरियाली लाता है
बगिया में तरुवर को
ओज तेज दे रहा
फल के रसों से परिपूर्ण
हो लुभाता है !!
गंगा की धारा सा शीतल
हुआ वो मन !
जिधर भी कदम रखे
पाप हर जाता है !!
देखा है गुप्त यहीं
ऐसा भी नजारा है
ठंडी हवाएं है
झरने की धारा है
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(फोटो साभार गूगल से)
जहाँ नदिया है
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(फोटो साभार गूगल से)
भंवर है
पर एक किनारा है
-जहाँ शून्य है
आकाश गंगा है
धूम केतु है
पर चाँद
एक मन भावन
प्यारा सा तारा है !!
शुक्ल भ्रमर ५
29.05.2011 जल पी बी

शनिवार, 28 मई 2011

सियासत

समाजवादी पार्टी में घमासान

चंदौली के सय्यदराजा विधानसभा में सपाई नाराज चल रहे हैं, वजह है यहाँ से बहरी उम्मीदवार को उतरना
पेश है इंडिया न्यूज़ हिंदी साप्ताहिक पत्रिका के 03 जून 2011 के अंक में छपा रिपोर्ट...

कितना बदल गया रे गाँव


कितना बदल गया रे गाँव
अब वो मेरा गाँव नहीं है
ना तुलसी ना मंदिर अंगना
खुशियों की बौछार नहीं है
पीपल की वो छाँव नहीं है
गिद्ध बाज रहते थे जिस पर
तरुवर की पहचान नहीं है
कटे वृक्ष कुछ खेती कारण
बँटी है खेती नहीं निवारण
जल के बिन सूखा है सारा
कुआं व् सर वो प्यारा न्यारा
मोट – रहट की याद नहीं है
अब मोटर तो बिजली ना है
गाय बैल अब ना नंदी से
कार व् ट्रैक्टर द्वार खड़े हैं
एक अकेली चाची -ताई
बुढ़िया बूढ़े भार लिए हैं
नौजवान है भागे भागे
लुधिआना -पंजाब बसे हैं
नाते रिश्ते नहीं दीखते
मेले सा परिवार नहीं है
कुछ बच्चे हैं तेज यहाँ जो
ले ठेका -ठेके में जुटते
पञ्च -प्रधान से मिल के भाई
गली बनाते-पम्प लगाते -जेब भरे हैं
नेता संग कुछ तो घूमें
लहर चले जब वोटों की तो
एक “फसल” बस लोग काटते
“पेट” पकड़ मास इगारह घूम रहे
मेड काट -चकरोड काटते
वंजर कब्ज़ा रोज किये हैं
जिसकी लाठी भैंस है उसकी
कुछ वकील-साकार किये हैं
माँ की सुध -जब दर्द सताया
बेटा बड़ा -लौट घर आया
सौ साल की पड़ी निशानी
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(फोटो साभार गूगल से )
कच्चे घर को ठोकर मारी
धूल में अरमा पुरखों के
पक्का घर फिर वहीँ बनाया
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चार दिनों परदेश गया
बच्चे उसके गाँव गाँव कर
पापा को जब मना लिए
कौवों की वे कांव कांव सुनने
लिए सपन कुछ गाँव में लौटे
क्या होता है भाई भाभी
चाचा ने फिर लाठी लेकर
पक्के घर से भगा दिया
होली के वे रंग नहीं थे
घर में पीड़ित लोग खड़े थे
शादी मुंडन भोज नहीं थे
पंगत में ना संग संग बैठे
कोंहड़ा पूड़ी दही को तरसे
ना ब्राह्मन के पूजा पाठ
तम्बू हलवाई भरमार
हॉट डाग चाउमिन देखो
बैल के जैसे मारे धक्के
मन चाहे जो ठूंस के भर लो
भर लो पेट मिला है मौका
उनतीस दिन का व्रत फिर रक्खा
गाँव की चौहद्दी डांका जो
डेव -हारिन माई को फिर
हमने किया प्रणाम
जूते चप्पल नहीं उतारे
बैठे गाड़ी- हाथ जोड़कर
बच्चों के संग संग –भाई- मेरे
रोती – दादी- उनकी -छोड़े
टाटा -बाय -बाय कह
चले शहर फिर दर्शन करने
जहाँ पे घी- रोटी है रक्खी
और आ गया “काल”
ये आँखों की देखी अपनी
हैं अपनी कडवी पहचान !!
कितना बदल गया रे गाँव
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२८.५.२०११
जल पी बी

शुक्रवार, 27 मई 2011

उपलब्धियों पर हावी होती अव्यवस्थाएं:इलाज के अभाव में राजस्थान की जेलों में दम तोड़ रहे कैदी

लेखिका::खुशबू(ख़ुशी)इन्द्री
संपर्क ::media1602@gmail.com
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देश की संप्रग सरकार के दूसरे कार्यकाल को दो साल पूरे हो गये|इस दौरान अपने द्वारा किये गये विकास कार्यों का सरकार ने आज एक लेखा जोखा भी जारी किया|इस अवसर पर प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने कहा कि किसी भी भ्रष्टाचारी को बख्शा नही जायेगा|माना कि सरकार ने अपने दो साल के कार्यकाल में कुछ विकासपरक काम किये होंगे|लेकिन इस दौरान सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों को भी झेले हैं और अब तक सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार के मामले भी कांग्रेस के शासनकाल में ही उजागर हुए हैं|दूसरी और इस दौरान देश भर में अव्यवस्थाओं के दौर भी देखने को मिले हैं|देश की जनता को इस वक्त जहाँ शिक्षा शेत्र में और चिकित्सा सुविधाओं के आभाव के दौर से जूझना पड़ रहा अहि वहां देश की जेलों में रहने वाले कैदियों को ये अव्यवस्थाएं झेलनी पड़ रही हैं|
राजस्थान की जेलों में मेडिकल सुविधाओं के अभाव में हर चौथे दिन किसी न किसी कैदी की जान जा रही है। राज्य की जेलों के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो साल 2009 और 2010 में जेलों में 180 कैदियों की मौत बीमारी के कारण हो चुकी है । फिर चाहे सबसे सुरक्षित कही जाने वाली जोधपुर सेंट्रल जेल हो या जयपुर सेंट्रल जेल। मरने वाले में सबसे ज्यादा 50 कैदी जयपुर सेंट्रल जेल से हैं। वहीं कोटा सेंट्रल जेल में गुजरे दो सालों में 29 कैदियों की सांसे उखड़ गईं। उदयपुर सेंट्रल जेल से 26 कैदियों की जीवन डोर टूट गई। बीकानेर सेंट्रल जेल में बीमारी और अन्य कारणों से बीते दो सालों में 19 कैदी मारे गए। देश की दूसरी सबसे सुरक्षित जेल जोधपुर सेंट्रल जेल से बीते दो सालों में 15 कैदी हमेशा के लिए आजाद हो चुके हैं। भरतपुर सेंट्रल जेल से पांच, अजमेर सेंट्रल जेल से नौ ओर गंगानगर जेल से दो कैदियों की मौत हो चुकी है। वहीं अलवर जिला जेल से दो कैदी, निंबाहेड़ा उपकारागार से एक कैदी, हनुमानगढ़ जिला जेल से तीन कैदी, डीडवाना जेल से एक कैदी, मांडलगढ़ जेल से एक कैदी, जैतसर जेल से दो कैदी, कोटपूती जेल से दो कैदी, सिरोही, भीलवाड़ा और करौली जेल से एक-एक कैदी की मौत हो चुकी है। चूरू की राजगढ़ जेल से तीन कैदियों की मौत हो चुकी है। डीग, नागौर, ब्यावर, पाली, बीछवाल, राजसिंहनगर जेल से भी एक-एक कैदी की बीमारी से मौत हो गई। वहीं सांगानेर में स्थित खुली जेल से भी एक कैदी की मौत हो चुकी है। रिकॉर्ड्स के अनुसार, राज्य की जेलों में मरने वाले कैदियों में सबसे ज्यादा मौतें टीबी से होना सामने आया है। जेलों में प्राथमिक उपचार के अलावा अन्य गंभीर बीमारियों से निपटने के लिए दी जानेवाली मेडिकल सुविधाओं के हालात भी नाजुक हैं। अन्य रोगों से निपटने के लिए भी प्राथमिक उपचार के साधनों का अभाव है। हर साल कैदियों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन सुविधाएं वहीं की वहीं हैं।
इन अव्यवस्थाओं को और भ्रष्टाचार के आरोपों को सरकार की उपलब्धियों पर या दो साल का कायकाल पूरा होने की ख़ुशी पर कालिख कहा जाये तो कुछ गलत नही|क्योंकि अव्यवस्थाएं होते हुए उपलब्धियां अधूरी ही होती हैं|जनता को तो सुविधाएँ चाहियें उपलब्धियां नही|

लेखिका::खुशबू(ख़ुशी)इन्द्री

गुरुवार, 26 मई 2011

नीलकंठ पत्रकार और सेकुलर एक्सप्रेस:


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अभी अभी मिल कर आ रहा हूँ नीलकंठ भाई से ...बेचारे  अपनी आप बीती सुना रहें थे सोचा आप लोगो से साझा करूँ ..लेकिन एक बात आप सभी सम्मानित जनों से मेरे पास उनसे बातचीत की कोई विडियो नहीं है..इसलिए इसे आप काल्पनिक भी मान सकते हैं...आज-कल जमाना है स्टिंग का..लेकिन मेरी तनख्वाह इतनी नहीं की समाज या देश सेवा कैमरे के साथ कर सकूँ..
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हुआ कुछ यूँ की नीलकंठ जी  कार्यरत थे किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में..उसी समय उनका मिलना हुआ "सेकुलर एक्सप्रेस" दैनिक के मालिक  हरिदास सिन्हा से, जो की एक समर्पित पत्रकार भी थे...नीलकंठ जी को उन्होंने दे दिया न्योता, की "सेकुलर एक्सप्रेस" में एक कालम लिखो....नीलकंठ जी समसामयिक और धार्मिक विषयों पर कभी कभी  कुछ न कुछ कलम घिस लेते थे, अब मंच दे दिया हरिदास सिन्हा ने अपने अख़बार में..अब तो नीलकंठ की निकल पड़ी.. कलम भी चल पड़ी और कुछ मुरीद भी मिल गए...
कुछ लेखों के बाद अख़बार की  तिमाही मीटिंग में हरिदास जी ने, नीलकंठ को फ़ोन किया और प्रस्ताव दिया यार तुम्हारा कालम रेगुलर कर दिया जाए,कैसा रहेगा???और तुम सेकुलर एक्सप्रेस के अंशकालिक पत्रकार भी बन जाओ..नीलकंठ को क्या चाहिए था ,अंधे को दो आँख..उनकी पत्रकारिता की  कामना का तरु पल्लव पल्लवित होने के लिए अठखेलियाँ करने लगा..साक्षात्कार की तारीख फिक्स हो गयी, क्यूकी हरिदास जी मालिक जरुर थे, मगर अपने मातहतों को कभी नौकर नहीं समझा उन्होंने..भाई निदेशक मंडल की राय जरुरी थी..शाम को ७ बजे समय फिक्स हुआ ..नीलकंठ पहुंचे अपनी चुरकी को बांधते  हुए...चलते चलते  चन्दन और लगा लिया की रिजेक्सन की गूंजाइस न रहे ..तुर्रा ये की दहेज़ में मिला कुरता पहन लिया, गलती से वो भगवा रंग का था..
साक्षात्कार मंडल में ३ लोग थे हरिदास सिन्हा जी, जनक जी ,और पातंजलि...आगे बढ़ने से पहले बता दूँ की नीलकंठ जी के अन्दर एक  बहुत बड़ी कमी थी की वो सच को सामने लाने  के लिए प्रमाण का सहारा नहीं लेते थे..सूत्रों से मिली खबर को भी लाइव कर देते थे..और जन्म से हिन्दू होने के कारण अपने धर्म की विशेषता या किये गए अत्याचारों पर बोलने से झिझकते नहीं थे.. चलिए कहाँ विषयांतर में फस गए ...
आगे बढ़ते हैं,तो शुरू हुआ नीलकंठ का साक्षात्कार, "सेकुलर एक्सप्रेस" में...हाँ ३ लोगों में से पातंजलि जी नहीं आ पाए थे, अतिब्यस्तता के कारण इसलिए वो वेब कांफ्रेसिंग के जरिये साक्षात्कार में शामिल हो गए,धन्य है आज की संचार प्रौद्योगिकी जो मीलों दूर बैठे ब्यक्ति का आभासी स्वरुप कम से कम  सामने ला देती है....पातंजलि जी सेकुलर एक्सप्रेस की वितरण और मार्केटिंग से सम्बंधित प्रबंधन देखते थें..
पहला प्रश्न दागा हरिदास जी ने.. आप कैसे "सेकुलर एक्सप्रेस" में योगदान दे सकते हैं....नीलकंठ जी ने कहा श्रीमान मैं "सेकुलर एक्सप्रेस" को रॉकेट की गति से ले जाऊंगा बस पुष्पक विमान और राम के बारे में कुछ लिखने की अनुमति चाहिए...हरिदास जी खुद भी इश्वर के महाभक्त, मुस्करा कर रह गए नीलकंठ की हाजिरजबाबी से ..
तभी जनक जी ने बोला नहीं नहीं, नीलकंठ इस अख़बार में कोई धर्म वर्म की बात नहीं होगी,देखो में भी पहले बहुत लिखता था जब नया नया आया था तुम्हारी तरह मगर अब इससे कुछ हासिल नहीं होने वाला... भूल जाओ क्या हुआ तुम्हारे साथ,अपने को आगे के लिए तैयार करो...
ये बताओ क्या जानते हो आज की राजनीति के बारे में????नीलकंठ जी पूरी तयारी से आये थे और अमर सिंह का प्रभु चावला के साथ टेप भी सुनकर आये थे,सो दोहरा दिया ' आज कल राजनीति में यही हो रहा है वो मुझको ठोक रहा है मैं उसको ठोक रहा हूँ" बाकि जो बजे वो ताली ठोक रहे हैं...जनक जी मुस्कराए बिना नहीं रह पाए ..मगर साथ में वरिष्ठ  होने के के कारण राय दे डाली की इतनी स्पष्टवादिता ठीक नहीं होती..फिर भी मेरी तरफ से तुम ओके हो...हरिदास जी ने भी अपनी रहस्यमयी हिंदुत्व का लबादा ओढ़े हुए सेकुलर मुस्कान से सहमती दे दी..

मगर तूफान के पहले की शांति की तरह पातंजलि जी खामोश...पता चला की संचार की आडिओ ठीक नहीं होने के कारण उनकी आवाज नहीं आ पा रही थी,अब जा के ठीक हुआ ..
पातंजलि  का पहला प्रश्न या यूँ कह ले नीलकंठ के लिए विशेषण "अरे तुम्हारा नाम नीलकंठ है ..इस नाम से मुझे साम्प्रदायिकता की बदबू आती है" 
नीलकंठ आवक ...." पातंजलि जी मुझे तो भगवान शिव की छवि याद आती है" थोडा सँभालते हुए नीलकंठ ने कहा...
दूसरा बम भी तैयार था, वेबकैम के माध्यम से गिरा" ये शिखा क्या बना रक्खी  है, तुम तो सांप्रदायिक लगते हो,कहीं भगवा एजेंट तो नहीं हो, जो इस अख़बार में सेंध लगा रहे हो.. नहीं नहीं श्रीमान 'हकलाते हुए नीलकंठ बोले" तभी पातंजलि की निगाह पड़ी भगवा कुरते पर अब क्या था पारा सातवे आसमान पर अपने भावनाओं पर काबू करते हुए पातंजलि ने हरिदास की और देखते हुए बोला" ये भगवा आतंकवादी नहीं चाहिए मुझे..इसकी हिम्मत कैसे हुई "सेकुलर एक्सप्रेस"के आफिस में भगवा पहन कर आने की...जल्दी बाहर करें इस कूड़े को.......
नीलकंठ की अब दूसरी कमजोरी हिलोरे मारने लगी वो उनका गुस्सा ..जी में आया की पातंजलि को पातंजलि योग प्रदीप पुस्तक का दर्शन करा दें अपने तांडव से, मगर हरिदास जी से वो बड़े भ्राता जैसा स्नेह रखते थे, सो मन मसोस कर अपने ससुराल वालों को कोस कर रह गए की कुरता दिया भी दहेज़ में तो, भगवा रंग का सालों ने.....चलिए बहुमत साथ था तो नौकरी मिल गयी मगर, पातंजलि जी की आँखों में किरकिरी तो बन ही गए नीलकंठ...
एक बार नौकरी मिलते ही,अपने पुराने रंग में वापस नीलकंठ ...अन्दर का पत्रकार हिलोरे मारता और वो दिन रात एक कर के लेख लिखते सेकुलर एक्सप्रेस में,बीच बीच में हरिदास और जनक जी पीठ थपथपा देते, तो पत्रकारिता के नवोदित बालक को ,जिसके दूध के दांत भी टूटे नहीं थे,समाज बदलने का दिवास्वप्न्न आने लगे..
मगर पातंजलि जी पूरे इंतजार में थे की एक गलती नीलकंठ की और उसकी खोजी पत्रकारिता का पिंडदान सेकुलर एक्सप्रेस में ही हो जाए...
समय बीतता गया और वो गलती कर दी नीलकंठ ने ...पहले इटली से आयातित कुछ विचारधारा को गलत बताया ...पब्लिक का क्या साथ हो ही लेती है ...पातंजलि चुप..फिर इटली की रानी का चरित्र चित्रण पातंजलि चुप फिर युवराज...हद तो तब हो गयी जब उसने लादेन को लादेन और कसब को कसब कह दिया....
अरे ये नीलकंठ क्या कर रहा है  हरिदास जी, इसको पता नहीं देश के दामादों(अफजल और कसब) के बारे में सम्मान से लिखना चाहिए... ये उन्हें पाकिस्तानी आतंकवादी और न जाने क्या क्या बता रहा है..और पहली बहुप्रतीक्षित "सेकुलर एक्सप्रेस' से निकलने की वार्निंग नीलकंठ को...अब नीलकंठ ने सोचा अपना नाम निलाकुद्दीन रख लूँ तो नौकरी बच जाए..मगर बच्चों का क्या होगा ..बीबी का धर्म भी बदलेगा...समाज क्या कहेगा..खैर ...जैसे तैसे फील्डिंग लगा के हरिदास  जी से अभयदान पा लिया...
लेकिन कहते हैं न "आदत छुटे नहीं छुटती" आज हद हो गयी एक हिन्दू नाबालिक लड़की के साथ  दुष्कर्म हुआ और नीलकंठ की इतनी मजाल जो उसकी आप बीती सेकुलर एक्सप्रेस में छाप दे..अरे हिन्दू लड़की तो होती ही है बलात्कार और शोषण के लिए..नीलकंठ के जानने वाली थी तो खबर  पक्की मान कर चाप दिया लेख..
दूसरी वार्निंग पातंजलि की ..क्या प्रमाण है इस लड़की का बलात्कार हुआ है???क्या विडियो है इसका ?? क्या तुमने मेडिकल कराया?? क्या पता किता बलात्कार करने वाला कौन है??क्या इसके पड़ोसियों से पूछा बलात्कार कैसे किया गया??इसके कपडे कहाँ कहाँ से फाड़े गए थे उसका चित्र है???ये जब देखो तब सूत्रों से मिली खबर तुमको ही क्यों मिलती है नीलकंठ...जाओ पहले बलात्कार का विडियो बनाओ फिर यहाँ आना..अब पानी सर से ऊपर हो रहा है हरिदास जी..कभी ये इश्लाम तो कभी युवराज तो कभी इतिहास तो कभी शिवलिंग..ये इन्सान बखेड़ा खड़ा करता है ..केवल जीभ चलता रहता है...समाज में क्या योगदान है इसका???
अरे हिंदुत्व की बात  करने की बार बार हिमाकत करता है..."सेकुलर एक्सप्रेस" की रीडरशिप घट गयी..मदरसों ने एड देना बंद कर दिया...क्या बंद करना है इस सेकुलर एक्सप्रेस को, जो एक भगवा गुंडे को बैठा रखा है, सेकुलर लोगों को सेकुलर श्वान बोलने के लिए????अब या तो ये या तो मैं....

पता चला जनक जी ब्याक्तिगत कार्य में ब्यस्त थे ...हरिदास  की परिस्थिति भी धृतराष्ट्र  जैसी, अगर नीलकंठ को न निकाला तो पातंजलि चला जाएगा  सेकुलर एक्सप्रेस कैसे बिकेगा..धन्धा बंद..और अगर नीलकंठ को निकला तो नैतिक आधार क्या होगा ...रीडर तो उसके लेख पसंद ही करते हैं बड़ी उलझन है भाई..
तभी मोबाइल की घंटी बजी..."नीलकंठ कालिंग"..हेल्लो हरिदास  जी, मैं इस मंच से स्वेच्छा से इस्तीफा दे रहा हूँ ..जो राम का नहीं वो हमारे किसी काम का नहीं.....अब हरिदास  जी सोच रहे थे "जय श्री राम" आप से ही चल रहा है "सेकुलर एक्सप्रेस" का काम ..दुविधा से मुक्ति मिली.....

चलो भाई नीलकंठ तुम अगर जाना चाहते हो तो में कैसे रोक सकता हूँ...एक काम करो एक नया अख़बार निकलना शुरू किया है...हिंदी हिन्दू हिन्दुस्थान...हम अब उधर ध्यान देते हैं..वहाँ ये पातंजलि का पंगा भी नहीं रहेगा और तुम देशभक्ति भी कर लेना.....और हाँ खाली हाथ नहीं सेकुलर एक्सप्रेस की तरफ से में तुम्हे योगदान के लिए ५ हजार का चेक भी दूंगा..मगर नीलकंठ वो तुम्हारे इस्तीफे वाली खबर हम कालम से हटा रहें हैं...सेकुलर मज़बूरी है...और ये ५ हज़ार मेरी तरफ से भी...
कल से "हिंदी हिन्दू हिन्दुस्थान".के आफिस में तुम्हारा स्वागत है...फिर मिलते हैं. 

सामने रखे कंप्यूटर में ईमेल पर "पातंजलि" का धन्यवाद लिखा मेसेज फ्लेश कर रहा था......
"सेकुलर एक्सप्रेस" और "हिंदी हिन्दू हिन्दुस्थान" दोनों मजे में चल रहा है...
हरिदास जी भी गा रहें हैं..
हरी अनंत हरी कथा अनंता......


आशुतोष की कलम से 

जड विहीन...डा श्याम गुप्त....

 (अगीत छंद )

मैं बुरा न बन पाया,
अत: बदनाम हूं ।
बदनीयत नहीं बन पाया,
नाम हीन हूं ।
भ्रष्टाचार की दिशा तय नहीं करपाया,
दिशा हीन हूं ।
प्रोटोकोल नहीं निभा पाया,
अनुशासन हीन हूं ।
क्योंकि मेरी पीठ पर किसी का हाथ नहीं है,
मैं जड विहीन हूं ॥

बलात्कार – रो रो माँ का हाल बुरा था छाती पीट-पीट चिल्लाये


जब जब मै स्कूल चली
तोते सा फिर माँ ने मुझको
रोज सिखाया – रोज पढाया
क्षुद्र जीव हैं इस समाज में
भोली सूरति उनकी
प्यार से कोई पुचकारेंगे
कोई लालच देंगे तुझको
कोई चन्दन कही लगाये
तिलक लगाये भी होंगे
बूढ़ा या फिर जवां कही !
आँखें देख सजग हो जाना
भाषा दृग की समझ अभी !!
मतलब से बस मतलब रखना
अगर जरुरी कुछ – बस कहना !
मौन भला- गूंगी ही रहना !!
बेटी – देखा- ही ना होता !
मन में- काला तम -भी होता !!
“नाग” सा जो “कुंडली” लपेटे
“डंस” जाने को आतुर होता !!
ये सब गढ़ी पुरानी बातें
इस युग में मुझको थी लगती
टूट चुकी हूँ उस दिन से मै
माँ के अपने चरण में गिरती !!
अंकल-दोस्त – बनाती सब को
मेरी सहेली एक विचरती
सदा फूल सी खिलती घूमी
सब से उसने प्यार किया
शाम सवेरे बिन डर भय के
आँखों को दो चार किया !!
प्रेम – प्रेम -में अंतर कितना
घृणा कहाँ से आती !
माँ की अपनी बातें उसको
मै रहती समझाती !!
खिल्ली मेरी उड़ाती रहती
जरा नहीं चिंतन करती
उस दिन गयी प्रशिक्षण को जब
शाम थी फिर गहराई
माँ बाबा मछली सा तडपे
नैन से सारा आंसू सूखा
बात समझ न आई !!
कुछ अपनों को गृह में ला के
रोते घूमे सारी रात !
ना रिश्ते में ना नाते में
खोज खोज वे गए थे हार !!
काला मुह अपना ना होए
कुछ भी समझ न आये !
कभी होश में बकते जाते
बेहोशी भी छाये !!
दिन निकला फिर बात खुल गयी
पुलिस- लोग -सब -आये
ढूंढ ढूंढ फिर “नग्न” खेत में
क्षत – विक्षत -बेटी को पाए
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खून बहा था गला कसा था
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(फोटो साभार गूगल से )
आँखें शर्मसार हो जाएँ !
“कुत्तों” ने था छोड़ा उसको
“कुत्ते” पास में कुछ थे आये !!
रो रो माँ का हाल बुरा था
छाती पीट पीट चिल्लाये
देख देख ये हाल जहाँ का
छाती सब की फट फट जाये
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Cute-Baby-Girl-Weeping
(फोटो साभार गूगल/नेट से )
पल में चूर सपन थे सारे !
पढना लिखना उड़ना जग में
चिड़ियों सा वो मुक्त घूमना
लिए कटोरी दूध बताशा
माँ दौड़ी दौड़ी थक जाये !!
बचपन दृश्य घूम जाता सब
लक्ष्मी –दुर्गा- चंडी -झूंठे
आँखे फटी फटी पत्थर सी
पत्थर की मूरति झूंठलाये !!
कितने पापी लोग धरा पर
जाने क्यों जग जनम लिए
मर जाते वे पैदा होते
माँ उनकी तब ही रो लेती
रोती आज भी होगी वो तो
क्या उनसे सुख पाए ???
उसका भी काला मुँह होगा
जो बेटा वो अधम नीच सा
बलात्कार में पकड़ा जाए !
दोनों माँ ही रोती घूमें
रीति समझ ना आये !!
पकड़ो इनको बाँधो इनको
कोर्ट कचहरी मत भेजो
मुह इनका काला करके सब
मारो पत्थर- गधे चढ़ाये -
जूता चप्पल हार पिन्हाये
मूड मुड़ाये – नोच नोच
कुछ “उस” बच्ची सा लहू निकालो !
लौट के फिर भाई मेरे सब
इनकी नाक वहीँ रगडा दो !!
आधा इनको गाड़ वहीँ पर
उन कुत्तो को वहीँ बुला लो
वे थोडा फिर रक्त चाट लें
इस का रक्त भी इसे पिला दो !!
क्या क्या सपने देख गया मै
दिवा स्वप्न सब सारे
पागल बौराया जालिम मै
ऐसी बातें मत सोचो तुम
जिन्दा जो रहना है तुम को !
दफ़न करो ना कब्र उघारो !!
वही कहानी लिखा पढ़ी फिर
पञ्च बुलाये कफ़न डाल दो
गंगा जमुना ले चल कर फिर
उनको अपनी रीति दिखा दो !!
हिम्मत हो तो कोर्ट कचहरी
अपना मुह काला करवाओ
दौड़ दौड़ जब थक जाओ तो
क्षमा मांग फिर हाथ मिलाओ !!
नहीं तंत्र सब घेरे तुझको
खाना भी ना खाने देगा !
जीना तो है दूर रे भाई
मरने भी ना तुझको देगा !!
कर बलात जो जाये कुछ भी
बलात्कार कहलाये ???
वे मूरख है या पागल हैं
नाली के कीड़े हैं क्या वे ?
मैला ही बस उनको भाए !
नीच अधम या कुत्ते ही हैं
बोटी नोच नोच खुश होयें !!
इनके प्रति भी मानवता
का जो सन्देश पढाये
रहें लचीले ढीले ढाले
कुर्सी पकडे -धर्म गुरु या
अपने कोई -उनको -अब बुलवाओ
वे भी देखें इनका चेहरा
उडती चिड़िया कटा हुआ पर
syedtajuddin__Death of a injured bird
(सभी फोटो गूगल नेट से )
रक्त बहा वो -चीख यहाँ की
तब गूंगे हो जाएँ !!!
शुक्ल भ्रमर ५
२३.०५.२०११ जल पी बी

बुधवार, 25 मई 2011

कहाँ गए वो चाणक्य जो एक हजार चन्द्रगुप्त तैयार कर अखंड भारत की नीव रखते थे , लगता है आधुनिकता खा गयी !




भाइयों यह बड़ा सामन्य लगने वाला किन्तु बड़ा गंभीर विषय है ,आज यह विषय कई बार छेड़ा जाता है किन्तु मात्र इसे निबंध समझ कर किताबों या अभ्यास पुस्तकों में कैद कर लिया जाता है , आज समय फिर से चाणक्य ,गुरु वशिष्ठ और गुरु विश्वामित्र की मांग कर रहा है जो श्री राम और चन्द्रगुप्त जैसे राष्ट्रभक्त राजाओं को जन्म दे अखंड भारत का पतन रोक सकें ,किन्तु प्रश्न यह है कहाँ हैं वो गुरु जो श्री राम और चाणक्य को तैयार कर देश का पतन रोक सकें ,कहाँ हैं हमारी वो मर्यादाएं और सभ्यताएँ ,क्या आधुनिकता उसे खा गयी या मैकाले की शिक्षा पद्दति ने उसे निगल लिया ,शर्म आती है आज के पब्लिक स्कूल के अध्यापकों को अध्यापक या गुरु कहते हुए ,सुप्रसिद्ध चाणक्य धारावाहिक में एक संवाद था -"जब राष्ट्र की बागडोर राजा नहीं संभल पता तो शिक्षक उसे संभालता है " क्या आप इस बात को मानते हैं आज के सन्दर्भ में ,नहीं यह विचारधारा जो करीब ३००० वर्षों पूर्व चली थी आज मुल्लों और अंग्रेजों की गन्दी नीतियों तथा आजादी के बाद नेहरु जैसे कुत्तों के चलते गर्त में मिल गयी और आज उसका सम्पूर्ण नाश करने में सहयोगी मीडिया और बॉलीवुड है और विरोध करो तो हम जैसे लोग बंद दिमाग वाले और नालायक की संज्ञा पाते हैं ,वाह भाई वाह 
जब युद्ध भूमि पर धर्मराज युधिष्ठिर गुरु द्रोणाचार्य से युद्ध की आज्ञा  तथा आशीर्वाद लेने गए तो गुरु द्रोणाचार्य ने उन्हें बड़े महत्त्व की बात कही जो उनकी ओर इंगित थी उन्होंने कहा -"शिष्य जो गुरु अपनी विद्या का सौदा कर देता है वो आदरणीय नहीं होता बल्कि अर्थ का दास होता है " आज ऐसे हजारों द्रोणाचार्य भारतीय सभ्यता के चीरहरण में चटखारों के साथ योगदान कर रहे हैं ,कैसी शर्मनाक स्थिति है ,

आज सारे गुरु विद्या का सौदा करते हैं और वही शिष्य उन्हें पसंद आते हैं जो गुंडागर्दी कर स्वयं को स्मार्ट कहते हैं थू !
मैं अपना एक किस्सा सुनाता हूँ मेरी अंग्रेजी की अध्यापिका ने मुझसे कहा -"इस उम्र में लड़के कटरीना कैफ के पीछे भागते हैं और तुम क्रांतिकारियों के पीछे "
क्या विचार है थू !
एक हमारे एक और महाशय अध्यापक श्री विक्रांत पाण्डेय भी धन्य हैं ,कक्षा में आकर बच्चों को श्रेष्ठ संस्कार देने के बजाय डबल अर्थी गंदे शब्द और गालियों के साथ भद्दे चुटकुले सुनाते हैं |
कितनी महान शिक्षा है वाह !
मेरी एक बार उनसे हिंदुत्व को लेकर बहस छिड़ गयी और उन्होंने मेरे पिताजी से यह शिकायत कर दी की मैं -मुस्लिम विरोधी हूँ जिसकी वजह से मुझे घर में फटकार मिली 
वाह वाह क्या अध्यापक धर्म है 
चाहे आप इसे मेरी व्यक्तिगत भड़ास कहें या मेरा क्रोध किन्तु स्थिति इतनी ही कुरूप है 

बताइए गुरु धर्म के गिरते हुए स्टार का जिम्मेदार मैं किसे कहूँ और आप किसे कहेंगे -
नेहरु को?
अंग्रेजों को ?
मैकाले को ?
या 
शर्मनिरपेक्षता को |

यह उत्तर देना हर एक का नैतिक कर्त्तव्य है क्योंकि मेरी तरह आप का भी बच्चा पब्लिक स्कूलों में पढता होगा!

जय श्री राम !

अन्यायपूर्ण अधिग्रहण


अन्यायपूर्ण अधिग्रहण


साल भर की मेहनत के बाद हमारे अन्नदाताओं को बाकी दिन गुजारने के लिए ‘ऊँट के मुँह में जीरे भर’ मेहनताना मिलता है। वो भी कभी लाठियाँ खाकर तो कभी गोलियाँ खाकर। कभी किसानों को गन्ने की वाजिब दाम के लिए लड़ना पड़ता है तो कभी अपनी जमीन के लिए। जो जमीन उन्हें-हमें अन्न प्रदान कर रही है उसे विकास के नाम पर उनसे कोड़ियों के दाम में छीना जा रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की भूमि खेती के लिए सर्वाधिक उपजाऊ जमीन मानी जाती है। विकास के नाम पर उसकी उपजाऊ क्षमता को व्यर्थ करना कहाँ कि बुद्धिमत्ता है? आजादी के समय 75 फीसदी उत्पादकों को जी डी पी का लगभग 61 फीसदी दिया जाता था आज 64 फीसदी उत्पादकों को 17 फीसदी मिलता है। आप ही बताइये क्या यह किसानों के प्रति अन्याय नहीं है? जो लोग हमारे लिए अन्न का उत्पादन करते हैं उनके हक की लड़ाई पर राजनेता वोट की राजनीति कर रहे हैं और अपने लाभ की रोटियाँ सेंक रहे हैं। वास्तव में किसानों का हित इनमें से कोई नहीं चाहता। क्या नोट बनाने की मशीनें (व्यापारी वर्ग) रोटियों का उत्पादन कर सकती हैं? भूमि अधिग्रहण कानून जोकि 116 साल पहले (1894) में बनाया गया था वर्तमान परिस्थितियों में प्रासंगिक नहीं है। परन्तु फिर भी वर्षाें से इस कानून से गरीब किसानों को प्रताड़ित किया जा रहा है। भारत में 80 प्रतिशत किसान ऐसे हैं जो 4 हेक्टेयर से भी कम भूमि के मालिक हैं और मुफलिसी में जीवन यापन कर रहे हैं। 1975 से अब तक 8 बार कृषि आयोग भूमि अधिग्रहण कानून की नवीन संस्तुतियाँ प्रस्तुत कर चुका है जिसमें किसानों के पुनर्वास सम्बन्धी सुझाव दिये गये। दुर्भाग्य से अभी तक इस प्रस्ताव को पारित नहीं किया गया। वर्तमान में भूमि अधिग्रहण कानून-2007 प्रस्तावित है। आशा करते हैं कि इसमें पूंजीपति हित की अपेक्षा किसानहित को प्राथमिकता दी जाये। जब किसी किसान की भूमि अधिग्रहित की जाती है तो मुआवजा कब्जे के तारीख से तय होता है। सरकारी महरबानी यह है कि सरकार कभी किसान को कब्जे की स्पष्ट तारीख से अवगत नहीं कराती और जब मुआवजा देना होता है तो पुरानी तारीखों से कब्जा प्रदर्शित कर किसान को ठगती है। शर्मनाक है कि भांखड़ा नांगल बाँध के लिए अधिग्रहित भूमि के किसान मालिकों को आज तक मुआवजा प्राप्त नहीं हुआ है। भूमि अधिग्रहण मसलों में सरकार मुख्यतः दलाल की भूमिका निभाती है। यह किसानों से औने-पौने भाव जमीन खरीद बड़े मुनाफे से बिल्डरों को बेच देती है। किसानों में रोष इसी बात का है कि जिस जमीन के लिए उन्हें 1100रू प्रति मीटर दिये गये हैं वही जमीन सरकार ने बिल्डरों को 1 लाख 30 हजार रूपयों में बेची है। उसमें भी मुआवजे की राशि किसानों को 10 प्रतिशत कमीशन देने के बाद प्राप्त होती है। शहरीकरण और विकास के नाम पर किसानों को बेघर किया जा रहा है परन्तु क्या कृषि का विकास उन्नति की सीढ़ी नही है? क्या तेल, पेट्रोल के पश्चात् कृषि प्रधान देश अब खाद्यानों का भी आयात करेगा? स्थिति तो कुछ ऐसी ही है।

मंगलवार, 24 मई 2011

मेरी बिटिया जब आई तो



मेरी बिटिया जब आई तो
kh baby-24.5.11-2
भोर हुआ इक नया सवेरा
मलयानिल जैसे पुरवाई !
मन महका शीतलता छाई !!
उमड़ घुमड़ घन छाये गरजे !
रिमझिम रिमझिम बादल बरसे !!
चहुँ दिशि में फैला उजियारा
मन मयूर अंगनाई नाचा !
बाप बना कोई-बना था चाचा !!
पास पडोसी जुट आये सब
थाल बजाये – गाये गाना
सोहर अवधपुरी का गाया !
मुंह मीठे मधु -रस घुल आया !!
दादा दादी फूल के कुप्पा !
लक्ष्मी शारद देते उपमा !!
दौड़ -दौड़ कर स्वागत करते
लक्ष्मी आज अंगनवा आई !
हहर हहर खुश उसकी माई !!
बहुरि गये दिन इस फुलवारी
P190511_06.43
फूल खिला अब इस अंगनाई
P190511_06.41
व्यथा रोग सब हर ले भाई





देवी का प्रतिरूप है बेटी
वरद हस्त ले कर गृह आई !!
भर देगी आंगन घर तेरा
शुभ-शुभ जगमग तेरा डेरा
मान करे तू गले लगाये !
जितना प्यार इसे कर पाए !!
अरे लुटा दे खुले हाथ तू
दुगुना तू जीवन में पाए !!
यही कल्पना यही किरण है
प्रतिभा ममता सब कुछ ये
ये गंगा है सीता है ये
यही शीतला यही भवानी
दुर्गा भी ये चंडी मान !
धरती है सुख धन की खान !!
चरण पकड़ चल दे संग इसके
जीवन तू पाए सम्मान !!
सब से बड़ा दान कन्या का
कर पाए जो बने महान !!
दिया जला- फैला – उजियारा
अँधियारा अब कोसों दूर
बेटा -बेटी कभी न करना
मन में कभी न ऐसी भूल !!
जगमग ज्योति जलाये चलना
चरण चढ़ा ले पग की धूल !!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२४.५.२०११ जल पी बी

सोमवार, 23 मई 2011

द्रोपदी के खत......

       (अगीत छंद में)
१-
माते कुन्ती!
तुम्हारी बहू बन्धन में  थी , 
बंटकर;
माँ, पुत्री, पत्नी , बहू के रिश्तों में |
अब वह स्वतंत्र है, मुक्त है,
बंटने के लिए किश्तों में ||

२-
दुर्योधन !
ठगे रह गए थे तुम , देखकर-
" नारी बीच सारी है , या-
सारी बीच नारी है |"
आज कलियुग में भी सफल नहीं हो पाओगे,
साड़ी हीन नारी देख,
ठगे रह जाओगे ||

३-
हे धर्मराज !
वह बंधन में थी,
समाज व संस्कार के लिए ;
दिन रात खटती थी , गृह कार्य में ;
परिवार, पुरुष पति की सेवा में |
आज वह मुक्त है,
बड़ी कंपनी की सेवा में नियुक्त है,
स्वेच्छा से दिन रात खटती है;
कंपनी के लिए,
अन्य पुरुषों के साथ , या मातहत रहकर;
कंपनी की सेवा में ||

४-
सखा कृष्ण !
द्वापर में एक ही दुर्योधन था ;
द्रौपदी को बचा पाए थे | 
आज  कूचे कूचे , वन-बाग़ , चौराहे-
दुर्योधन हैं;
किस किस को साड़ी पहनाओगे |
सोचती हूँ- इस बार-
अवतार बन कर नहीं आना,
जन जन के मानस में -
संस्कार बन के ,
उतर जाना ||





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मुद्दा

बेमकसद एक शिक्षा...
उत्तर प्रदेश सरकार का एक प्रोग्राम जिससे फायदा की जगह नुकसान ही हो रहा हैमुस्लिम समाज के कल्याण की खातिर एक पहल जो ज़रूर हुयी मगर नाकामयाबइंडिया न्यूज़ साप्ताहिक पत्रिका के 27 मई 2011 के अंक में प्रकाशित यह रिपोर्टआपके हवाले...

एम अफसर खान सागर