सोमवार, 11 अप्रैल 2011

क्या वर्ण व्योस्था प्रासंगिक है ?? क्या हम आज भी उसे अनुसरित कर रहें हैं??

ये है हमारे बंधू सत्य गौतम जी के विचार..कृपया पढ़े..ये मेरी कृति भारतीय ब्लॉग लेखक मंच: भारतीय मुसलमान,इस्लाम और आतंकवाद.. के लिए हैं..

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सत्य गौतम ने कहा आशुतोष जी ! अब आप एक लेख एक दलित बनकर भी लिखिए। किसी गांव में जाइये और देखिए कि दलितों की बेटियों के साथ तथाकथित ऊंची जातियों के लोग बलात्कार कैसे करते आए हैं हजारों साल से ?
कैसे ईश्वर, धर्मग्रंथ और मानवाधिकारों को हजारों साल से कुचला है आपके पूर्वजों ने और आज भी कैसे कुचल रहे हैं ?
आपकी नई पोस्ट पढ़ने की हार्दिक इच्छा है।
ऐसा ही तो ऐतराज़ करने वाला योगेन्द्र और ऐसे ही प्रतिउत्तर देने वाले आप। दोनों एक ही थैली के चटटे बटटे। पोस्ट पढ़ने का सलीका नहीं और आर्डर जारी कर दिया।
कौन है यह पढ़ा लिखा आदमी ?
बाबा साहेब की जीवनी पढ़ो तब आपको अपनी सूरत सही सही नजर आएगी।
तुम्हारे बड़े जब हमारे बड़ों को अपने जुल्म की चक्की में पीस रहे थे और हम हा हा कार करके ऊपर वाले से प्रार्थना कर रहे थे तब हमारी इस देश में सुनने वाला कोई नहीं था। सब ओर ब्राह्मणशाही और ठकुरैत चल रही थी। जब इस देस में कोई मानव न मिला तब ऊपर वाले ने तुम्हारे जुल्म के खात्मे के लिए, तुम्हारे बड़ों के वध के लिए गजनी और अन्य हमलावरों को भेजा और उन्होंने आकर हर जालिम राजा की गर्दन या तो काट दी या झुका दी। उन हमलावरों को बुलाने वाले भी हिन्दू रजवाड़े ही थे। वे थोड़े से मुस्लिम हमलावर हिन्दुओं की लड़कियां लेकर जाने में सफल तब हो पाए जब हिन्दू राजाओं ने उनकी सहायता की। इतिहास यह सब भी तो बताता है। इसे आपने क्यों छोड़ दिया ?इसे आप बताएंगे या फिर मैं लिखूं इस पर पोस्ट ?
अगर उन हमलावरों ने उन लोगों न मारा होता तो वे भी जनसंख्या ही बढ़ाते। जिन लड़कियों को अरब भेज दिया गया। वे ऐश कर रही हैं और उनके पेट से होने वाली संतानें भी ऐश कर रही हैं। यहां रहतीं तो उन्हें देवदासी बना दिया जाता या फिर विधवा होते ही उन्हें जला दिया जाता। बच गई उनकी जान। धन्यवाद दो हमलावरों का और उन गददारों का जिन्होंने उन्हें बुलाया और उनका साथ दिया । उनके साथ के कारण ही वे 800 वर्ष शासन कर पाए और तुम्हारी नाक में ऐसी नकेल पहना गए कि अब तुम्हारी धौंस कहीं चलती नहीं। इसके बावजूद अपने कुल गोत्र की श्रेष्ठता के फरेब से निकलने के लिए तुम आज भी तैयार नहीं हो। सत्य को दिखाता है सत्य गौतम।
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में जल्दी में कोई पोस्ट नहीं लिखना चाहता था मगर आज अवकाश लेकर लिख रहा हूँ क्यूकी सत्य गौतम जी के सत्य विचारों पर मेरा लेख जरुरी था क्यूकी उन्होंने पूछा था मुझसे..

तो सत्य गौतम जी मैं आप की आखिरी पंक्तियों से सहमत नहीं हूँ की जो मर गए वो जनसँख्या बढ़ाते :मरने वालों में दलित सवर्ण सब शामिल थे..दूसरा जिन नारियों का अरब ले जाकर बलात्कार किया गया उनके बारें में आप के विचार पर मैं टिप्पड़ी क्या करूँ??? जब आप ने बलात्कार को सही ठहरा दिया..फिर तो आप को किसी के साथ किये गए बलात्कार पर बोलने का अधिकार नहीं है..हमलावरों और गद्दारों को धन्यवाद देने वाली आप के देशभक्ति समाजभक्ति पर नमन .जिस बाबा साहब का आप जिक्र कर रहें है उनकी आत्मा आप के विचार सुनकर खुश तो नहीं ही हो रही होगी...

बलात्कार हिन्दू मुस्लिम दलित सवर्ण या किसी अन्य जिस का भी हो जिसने किया हो वो एक जघन्य कृत्य है.

और दूसरा प्रश्न आप का की मैंने जिक्र नहीं किया हिन्दू गद्दारों का तो सुनिये मैंने लिखा है की "खेद प्रकट कर के जयचंद नहीं बनना चाहता".मैं स्वीकार करता हूँ की गद्दार थे हाँ अब वो सवर्ण थे या दलित मैं इसमें नहीं जाना चाहता.हा आप ने ये जरुर कह दिया की इन गद्दारों का आप समर्थन करतें है और धन्यवाद् देते है..
सत्य जी मैंने आप की प्रोफाइल नहीं देखी शायद देखता तो आप का चित्रण कर के लिखता,तो हो सकता था अगर आप स्थापित लेखक होते तो मेरे जैसे अनुभवहीन का डर सामने आ जाता ..आप ने कुछ विषय उठाये..चुकी प्रश्न आप ने व्यक्तिगत किया इसलिए विचार भी पूर्णतया मेरे ही है...

वर्ण व्योस्था: प्राचीन काल से जब जाति प्रथा नही थी तब एक समाज था जिसमें न तो कोई शूद्र था न ही कोई ब्राम्हण..
सब लोग अपनी पसंद और योग्यता के अनुसार कार्य करते थे..इसी कार्य के अनुसार हिन्दू समाज में चार वर्ण निर्धारित किये गए...

१ क्षत्रिय: समाज का वो समूह जो देश को चलता था युद्ध करता था और जरुरत पड़ने पर अपना बलिदान करता था अपनी प्रजा के लिए..यह समूह तेज तर्रार व्यक्तियों एवं कुशल योधाओं का होता था..अब इस समूह में वीर भावना थी तो इसके लिए उसकी पीढ़ियों को लानत तो नहीं दिया जा सकता..

2 ब्राम्हण : उन लोगों का समूह जो पूजा पाठ, धर्म, कर्म, कर्मकांडों, यज्ञ आदि को प्रतिपादित करता था..एक समाज के तबके को उनके पूजा पथ और धर्म में रूचि को देखते हुए ब्राम्हण नाम दिया गया..अब इसमें उस तबके की क्या गलती जो उसे पूजा करना पसंद था..उसे मन्त्रों में रूचि थी..उसके अन्दर शायद युद्ध करने की इच्छा और शक्ति नहीं थी इसलिए वो क्षत्रिय नहीं कहा गया..

३ वैश्य: व्यापर में पारंगत व्यक्तियों का समूह वैश्य कहलाया.. ये लोग दुकानदारी व्यापर लेनदेन इत्यादि कार्य करते थे..इनकी कुशलता व्यापर में थी इसलिए इन्हें इस समूह में रखा गया..जैसे की अर्थशास्त्र पढ़ा व्यक्ति अच्छा अर्थशास्त्री हो सकता है मगर शायद राजा बनाकर उसकी प्रतिभा के साथ न्याय न हो..

४ शूद्र: ये तबका कृषि करने सफाई करने बर्तन बनाने का कार्य करता था अतः इसे शूद्र नाम दिया गया..अगर उस समय इस तबके को क्षत्रिय नाम भी दे दिया जाता तो कार्य में महारत तो इसे मिल नहीं जाती अतः इस कारण इस तबके को इनके कार्य के अनुसार नाम दिया गया..

इनकी उत्त्पत्ति की और भी धार्मिक कहानिया हैं मगर वैज्ञानिक दृष्टि से ये ही समझाई जा सकती है इसलिए मैंने इसे लिखा..

अब धीरे धीरे ये एक सामाजिक व्योस्था बन गयी जिसका स्वतः ही पालन इन चारों वर्णों की आने वाली पीढ़ियों ने किया.और एक सामाजिक सहिष्णुता और सौहार्द बना रहता था..
कुछ शासक सत्ता के मद में चूर हो कर निरंकुश हो गए अतः उसी प्रकार उनका विनाश हो गया..अगर इस शासकों को वर्ण व्योस्था से जोड़ के देखा जाए तो ये हमारे मानसिक दिवालियेपन का परिचायक होगा.और ये व्योस्था तो युगों से है कालांतर में इसमें कुछ कमियां आती गयी और कलयुग में ज्यादा कमियां थी जिसका हमारे कई भाई उल्लेख कर रहें है.

सतीप्रथा: प्राचीन काल में स्त्रियाँ पति की मृत्यु के बाद स्वतः की इच्छा से पति की चिता के साथ अपने प्राण त्याग देती थी इसे सती प्रथा कहते थे..जिस प्रकार योगी अपना शरीर अपनी इच्छा से छोड़ देते हैं..धीरे धीरे उन महिलाओं को जबरन जलाया जाने लगा इसका विरोध सबने किया और ये प्रथा बंद हो गयी..

सती प्रथा का वर्तमान परिवेश में कोई महत्त्व नहीं था इसलिए खुद ही ख़तम हो गयी..मगर पहले इस प्रथा के क्या कारण थे इस पर लम्बी चर्चा हो सकती है...हाँ हमारी हिन्दू महिलाएं इतनी आत्मशक्ति रखती थी की अगर संभव हो सके तो जौहर करके प्राण दे देती थी मगर आताताइयों के हाथ अपवित्र नहीं होती थी..

देवदासी:इन स्त्रियों का विवाह मंदिरों से कर दिया जाता था ये नृत्य सिखाती थी और मंदिरों की देखभाल करती थी..परम्परा की बात करें तो वो अपनी इच्छा से पर पुरुष से सम्भोग कर सकती थी मगर कालांतर में उसे विकृत कर के आवश्यक बनाने की कोशिश की गयी.. ये प्रथा वर्तमान परिवेश में निंदनीय है...

अब एक ज्वलंत सवाल आप सब से: क्या हम अब भी वर्ण व्योस्था को मानते है?? क्या ये आज भी प्रासंगिक है??:क्या हम वर्ण व्योस्था को आज भी दुसरे रूप में अनुसरण कर रहें है?: ज्यादातर लोग कहेंगे नहीं??
तो अब कुछ २१वीं सदी की बात करता हूँ.चलिए माना किसी ने व्यक्तिगत फायदे के लिए ये सड़ी गली वर्ण व्योस्था बनायीं थी..तो ख़तम क्यूँ नहीं होती...

शायद सेकुलर लोग एक शब्द बोलते हैं class(क्लास)...ये क्या है बंधू..जरा भारत के लोगों के क्लास को देखे..

१ अपर क्लास: राजनेता, बड़े व्यापारी,कुछ भ्रष्ट लोग

२ हायर मिडल क्लास: उच्चाधिकारी, छोटे नेता,छोटे व्यापारी

३ मिडल क्लास: सरकारी और निजी संस्था में कम करने वाले व्यक्ति..

४ लोअर क्लास: किसान,मजदूर,इमानदार व्यक्ति..

क्या आज हम इस वर्ण व्योस्था को फालो नहीं कर रहें है..और इसमें कोई ब्राम्हण शूद्र क्षत्रिय वैश्य की बात नहीं है..सुखराम मायावती कलमाड़ी जूदेव कोड़ा दिग्विजय सिंह(अगर कोई ब्राह्मन छुट गया हो तो उसे भी मान लें) सब अलग अलग जाति के है मगर आज की वर्ण व्योस्था में अपर क्लास है..इसी प्रकार कोई ब्राम्हण शूद्र क्षत्रिय वैश्य शायद इन सारे बाकी क्लास में मिल जाएगा..

हम भी तो आज सोचते है की आज डिनर पंचसितारा में करते तो कैसा होता ..लेकिन भाई मुझे वहां के तरीके नहीं आते इसलिए जाने से डरता हूँ..और कभी चला गया तो वहां का सबसे बड़ा महादलित मैं होता हूँ..फरारी के सामने अल्टो कैसी लगेगी..अमीर लोग ऐसे देखेंगे की ये कहा से आ गया उन अमीरों में....हिन्दू मुस्लिम ब्राम्हण या दलित कोई भी हो सकता है उन लोगों में ..
शशि थरूर की जात क्या है, मैं नहीं जानता मगर मैं कभी जहाज में इकोनोमी क्लास में बैठता हूँ तो मेरी जात उन्होंने बता दी " "कैटल क्लास"..अब वो दलित सफ़र कर रहा हो या मुस्लिम मेरे साथ,आज की व्योस्था का कैटल क्लास" है वो..

और अगर प्रतिभा के अनुसार वर्गीकरण खराब है तो क्यों न चपरासी को निदेशक बना दिया जाए..वहां भी तो वर्गीकरण है..क्यों न निदेशक को २००० रूपये तनखाह दी जाए और मजदूर को २ लाख ...क्यों न सारे ५ सितारा ढहा कर एक सामान्य लाज बना दिया जाए..क्यों न ट्रेन से वातानुकूलित डब्बे हटा दिए जाएँ..ये सब भी तो सामाजिक वर्गीकरण ही करते है.

मित्रों..वर्ण व्योस्था हमारे जीवन का अभिन्न अंग है जो समयानुसार अलग अलग नाम लेती है .हा इसका कार्यान्वयन सही होना चाहिए .आज कल भी तो हम उसे अनुसरित ही कर रहें है हा शायद सेकुलर बनने के चक्कर में स्वीकार नहीं करते..समाजं को उसकी योग्यता के अनुसार चलने के लिए वर्ण व्योस्था किसी न किसी रूप में हमारे साथ रहेगी..

मेरे व्यक्तिगत जबाब श्रीमान सत्य गौतम को:मैंने व्यक्तिगत रूप से कितने दलितों के जीवन में परिवर्तन लाया है इस सार्वजानिक मंच पर मिया मिट्ठू नहीं बनना चाहता..अगर सत्यापन करना हो तो व्यक्तिगत रूप से उन बंधुओं का संपर्क सूत्र ले लें मुझसे...
श्रीमान मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से ब्राम्हण होता है..शयद जन्म से उसे स्वाभाविक वृत्ति मिलती है मगर अपने कर्मों में ब्राम्हण का गुण लाना जरुरी होता है वरना उस ब्राम्हण का विनाश हो जाता है" मुझे गर्व है की मैं ब्राम्हण हूँ मुझे गर्व है अपने गोत्र पर गर्व है अपने कुल पर...मगर उन सबसे पहले हिंदुस्थानी हूँ जो वन्दे मातरम कहने में नहीं संकोच करता है...

जय हिंद वन्दे मातरम....

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुखराम मायावती कलमाड़ी जूदेव कोड़ा दिग्विजय सिंह(अगर कोई ब्राह्मन छुट गया हो तो उसे भी मान लें) सब अलग अलग जाति के है मगर आज की वर्ण व्योस्था में अपर क्लास है.
    आशुतोष जी बेबाक , व्यंग्य का पुट लिए, रोचक और ज्ञान दाई ये लेख ,आप का जारी रहे ये रंग गुल खिलायेगा बहुत सुन्दर ,
    आइये अपने सार्थक प्रयासों से समाज को एक नयी गति दें शुभ कामनाएं
    कुछ और समाज के दर्द से जुड़े लेखकों को आमंत्रित करियेगा
    सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५

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  2. ashutosh bhayi ise hm varn vyavstha

    वर्ण - व्यवस्था क्यों न लिखें ??

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