गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

रूहें यहाँ जली काया जो हो अधमरी आह भरती है


रूहें यहाँ जली काया जो
हो अधमरी आह भरती है

 हे मन-मोहन -मन को मोहो
माया अपनी छोडो !!
 अरे सोणिये से जा कह दे 
बहू हमारी गृह लक्ष्मी है ?? 
तुलसी-राम के आँगन आई !
इस धरती की आज वेदना -दर्द हमारा
चिट्ठी पाती -रचना लेख
वहीँ से पढ़ ले !!

जन-जागरण से जुडी रहे वो 
एक चिट्ठी तो नाम हमारे 
अपने मन की महिमा सारी
मन आये जो कभी तो लिख दे

"शांति" रहे भूषण -आभूषण 
कितने  -रोज हमें  मिल जाएँ
अन्ना -अन्न- हमारा भाई
बिन उसके हम ना जी पायें

तुम अबोध –‘बालक से हो के
प्रेम बीज सच इस धरती पर
दिवस’- निशा संग आ के बो दो

अलका सी तुम अलख जगाओ
प्रात काल  की स्वर्णिम बेला
कमल के जैसे खिल के अपने
भारत को तुम हंसी दिलाओ

जो गरीब -बच्चे-भूखे हैं
पेट भरे -तुम उन्हें पढ़ा दो
हो विनीत आदर्श प्यार से
लाल-बहादुर-बाजपेयी बन
अच्छाई का यश तुम गा दो

राम राज्य का सपना ही न
राम-राज्य ला के दिखला दो
नीलम मोती मणि को गुंथ के
हार बनाओ हाथ मिलाओ
गले मिलाओ-सचिन के जैसे
छक्के -जड़ के विश्व पटल पर
भारत का झंडा फहरा दो !!

रचना – ‘प्रियासे प्रेम बढ़ा के
नारी को सम्मान दिलाओ
दीप-संदीप करो उजियारा
ब्रज-किशोर चाहे हरीश या आशुतोष बन
मंगल धरती मदन अमर कर !!

सेवा भाव सदा ही रखना
माँ का नित ही नमन करो
कोमल-कपिल-दिव्य-मृतुन्जय
विश्वनाथ बन -कंचन -बरसा दो

तू मनीष चाहे सलीम बन
आलोकित- पुलकित -मन कर दे
संगीता- रजनी या मोनिका
गृह लक्ष्मी -शारद  बन जाओ

अख्तर- खान -अकेले बढ़ के
हीरा ढूंढो और तराशो
डंडा चाहे चक्र चला दो

मथुरा में दिव्या क्यों रोती
श्याम उसे तुम न्याय दिला दो
तन्मय हो के –‘राज छोड़ दे
गाँधी का तुम भजन सुनाओ !!
सुशील, ‘चैतन्य ,’रवि या दिनेश हो
धरती को जीवन दे जाओ
हे देवेन्द्र’- कृशन’- गगन पर
सत्यम शिवम् सुंदरम लिख के
मोती अमृत कुछ बरसाओ !!!

आशा- लता -है  कुम्हलाई जो
सींच उसे - कुछ शौर्य सुना दे
गीत - भजन -कुछ ऐसा गा दें  
युवा वर्ग में जोश जगा दे !!


रूहें यहाँ जली काया जो
हो अधमरी आह भरती हैं
प्रेम’- सुधा रस शायद पी के
जी जाएँ कुछ क्रांति करें !!

सोच नयी हो- भाई-चारा
धर्म -जाति-बंधन या भय से
मुक्त हुए सब गले मिले
कहें 'भ्रमर' तब दर्द दूर हो
बिन भय दर्पण जब सब कह दे !!

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
२४.४.२०११ जल पी बी 

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी कविता बहुत सुन्दर विचार .
    आपको मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं

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  2. मजा आ गया भ्रमर जी..बहुत ही सुन्दर वर्णन है,..
    एक दो सेकुलर गद्दारों को भी आइना दिखा दें अपनी अगली कृति में..
    आनंद आ गया ..बधाइयाँ

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  3. मदन भाई सराहना के लिए और रचना पसंद आने के लिए धन्यवाद -आओ इसी तरह एक माला में गूँथ हम इन मोतियों को अपने नाम को साकार करें ..

    शुक्ल भ्रमर५

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  4. आशुतोष भाई धन्यवाद आप की प्यारी प्रतिक्रिया के लिए चक्र जब चल ही पड़ा है हमारा आप का और बहुत से प्यारे बंधुओं को तो कभी न कभी इस काल चक्र के नीचे वे भी आयेगे ही -कहते हैं न आशु भाई देर है पर अंधेर नहीं न ....

    शुक्ल भ्रमर ५

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