शनिवार, 2 अप्रैल 2011

जिन्दगी मे कुछ लमहा खास होता है

रात की तनहाई मे कुछ एहसास होता है
जिन्दगी मे कुछ लमहा खास होता है
मगरूर होकर न फिरो इस तरह ज़माने मे
यहा हर शख्स के चेहरे पर एक नकाब होता है

जिन्दगी मोहब्बत का नाम है इसे सजाए रखना
और तासुब के अँधेरो से बचाए रखना
ये तोह्फा दिया हा है रब्बे कायनात का
अपने दिलो मे खौफे खुदा बसाए रखना

तबाह कर के मुझको बेवफा कह दिया
ये कैसा जुल्मो सितम आपनो ने कर दिया
बडी मुद्दत के बाद मालूम हुआ उसे
एक जिस्म को एक जान से जुदा कर दिया

दुनिया मे इस्लाम को आतंकवाद समझा जा रह है
गजब मुल्कों पर कोई और ढा रहा है
ये सब सयासत की साजिशे है तौसीफ
हम मुसलमानो को फकत बदनाम किया जा रहा है

साजिशे कर रहे है वो हमे मिटाने की
मेरा निगह्बान खुदा है उन्हे मालूम नही
हस्तीया मिट गई नबी की बात झुट्लाने को
कुरान आज भी गवाह है उनसा कोई सानी नही 

चाहे दावूद या सलेम या फिर कसाब हो
इनका किसी कौम से रिश्ता हो नही सकता
तारीख गवाह है कायनात मे चौदाह सौ साल से
इस्लाम कभी दहशत गर्द हो हि नही सकता

जहा जहा तेरे कदमो के निशान है
वहा का हर  ज़र्रा ज़र्रा जीशान है
एक नज़र ही काफी है उम्मत के लिए
खुदा का ये मेराज की रात का बयान है 

हम कोई फसाना नही जो चाहो मिटा दो 
हम कोई मुजरिम नही जो चाहो सजा दो
चाहे हिन्दु,मुस्लिम ,सिख,या फिर इसाई 
जो मुजरिम है , तो है उसे शूली पर चढा दो

शहर दर -बदर करके न भूल पाओगे
जो प्यार है दिल मे उसे छुपा न पाओगे 
याद आई हमारी तो दिल को बेहला लेना 
दूर रहकर भी कभी हमें याद  कर लेना. 

[यह ग़ज़ल हमें तौसिफ भाई ने भेजी है]
तौसिफ अन्सारी
गुलाम इसा पुर्
भदोही
मोब. 9305507897-7505488844

1 टिप्पणी:

  1. चौदह सौ सालों की बात भूलकर अगर आज से भी एन पंक्तियाँ हम सभी सत्य मन लें तो कभी साम्प्रदायिक द्वेष फ़ैलाने वाले सफल नहीं हो सकते..
    मगर जरुरत है अनुकरण की ..
    ,....................
    आभार

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