गुरुवार, 31 मार्च 2011

हमें शर्म आएगी.....आपको ...नहीं .... जाने दीजिये ....?

  कब हमें शर्म आएगी..............?

आज पूरा देश जीत की खुशियाँ मना  रहा था. लोग मगन थे की पाकिस्तान पर जीत दर्ज कर भारत विश्व-विजय कर लिया. शायद फ़ाइनल के दिन इतने पटाखे न छूटे जितने  आज छुट गए. ११ लोंगो ने  खेल के प्रति जिम्मेदारी दिखाई व इमानदार बने रहे. पूर्णतः १०० प्रतिशत इमानदार, जिसके कारण पूरा भारत इतरा रहा है. नेट पर आया अनवर भाई से बात की फिर "भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" द्वारा आयोजित "महाभारत २०११ प्रथम के विजेता की घोषणा की, फिर समाचार देखे तो शर्म के कारण सारी खुशियाँ काफूर हो गयी, भ्रष्टाचार के मामले में भी भारत जीत चूका था, हालाँकि चौथे नंबर पर आने का कष्ट भी रहा, अरे हरामखोरो बेईमानी दिखाई तो ईमानदारी के साथ दिखाते ताकि वहा भी हम नंबर वन रहते.. चलो कोई बात नहीं, हम तो बेशरम ठहरे. कभी न कभी भ्रष्टाचार का कप हमारे यहाँ आएगा ही. आखिर हम भी तो सहयोग कर रहे है. अरे भाई पढ़े लिखे है तभी तो कर रहे है.
जी हाँ हम सही कह रहे हैं आज हमारी वजह से भ्रष्टाचार बढ़ रहा है. ऊपर हम बैठते है और ऊपर बैठने वाले हमें भूल जाते हैं. 

जरा इस समाचार को पढ़ें.....
सिंगापुर. हांगकांग स्थित प्रमुख बिजनेस कंसल्टेंसी फर्म पीईआरसी के ताजा सर्वे में भारत को एशिया प्रशांत क्षेत्र के 16 देशों की सूची में चौथा सबसे भ्रष्ट देश बताया गया है।

पॉलिटिकल एंड इकोनॉमिक रिस्क कंसल्टेंसी लि. (पीईआरसी) ने भारत को 0 से 10 के स्केल पर 8.67 पर रखा है। इस हिसाब से यह फिलीपींस (8.9), इंडोनेशिया (9.25) और कंबोडिया (9.27) के बाद इस क्षेत्र का सबसे भ्रष्ट देश है।

इस नवीनतम रिपोर्ट में 16 देशों की सूची में थाईलैंड 7.55 के स्केल के साथ 11वें नंबर पर है। उसके बाद चीन (7.93) तथा वियतनाम (8.3) को रखा गया है।

सिंगापुर को सबसे नीचे रखा गया है जिसे 0.37 अंक मिले हैं। पीईआरसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत में भ्रष्टाचार का दायरा बढ़ा है और कांग्रेसनीत यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में पूरी तरह छाया हुआ है। सरकार टेलीकॉम लाइसेंस से लेकर कॉमनवैल्थ खेलों के आयोजन, सेना की जमीन, सरकारी वित्तीय संस्थानों के लोन घोटालों से घिरी हुई है।

सबसे ज्यादा भ्रष्ट

1. कंबोडिया (9.27)
2. इंडोनेशिया (9.25)
3. फिलीपींस (8.9)
4. भारत (8.67)
5. वियतनाम (8.3)
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सबसे कम भ्रष्ट
1. सिंगापुर (0.37)
2. हांगकांग (1.10)
3. ऑस्ट्रेलिया (1.39)

4. जापान (1.90)     {आभार-दैनिक भास्कर"
सर्वे के मुताबिक भारत के राष्ट्रीय नेता कम भ्रष्ट हैं जबकि छोटे स्तर के अधिकारी व नेता ज्यादा भ्रष्ट हैं। सर्वे में राष्ट्रीय नेताओं को 9.27 प्वाइंट दिए गए हैं जबकि स्थानीय स्तर के नेताओं व अधिकारियों के खाते में 8.97 प्वाइंट गए हैं।
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भारत के राष्ट्रिय नेता कम भ्रष्ट हैं जबकि स्थानीय नेता व अधिकारी अधिक......
जरा सोचिये पिछले दिनों जब मुख्यमंत्री सुश्री मायावती जी  का दौरा  हुआ तो. सभी तहसीलों,थानों,विकास भवन व सभी सरकारी भवनों तथा आंबेडकर गावो के दिन लौट आये. अधिकारी रात-दिन जागकर विकास कार्य किये ताकि वे सी एम के कोप का निशान न बने, अब जरा सोचिये लोग चर्चा करते हैं की हर जनपद से एक बंधी बंधाई रकम बसपा प्रमुख को जाता है. जब अधिकारी पैसा ही पहुंचाते थे तो घबराहट क्यों.? इसका सीधा मतलब है की सारा भ्रष्टाचार नीचे से शुरू होता है. जब ऊपर का डर सताता है तो विकास कार्य शुरू अन्यथा चिल्लाते रहो बाप का राज़ है. कोई क्या कर लेगा..
जरा सोचिये..... वोट देना हमारा अधिकार नहीं नैतिक जिम्मेदारी भी है. फिर भी हम अपनी जिम्मेदारी से भागते हैं. वोट हमें देना चाहिए अपने बच्चो,अपने समाज,अपने देश, अपने हित में देखकर. पर क्या हम कभी अपने वोट की कीमत समझते हैं. नहीं हम हमेशा यही सोचते है हमारे एक वोट से क्या होगा. जरा सोंचे ४० प्रतिशत संख्या सरकार बना रही है. और ६० प्रतिशत कोसती है की भ्रष्टाचार है.........? इनमे अधिक संख्या कथित पैसे वाले औए नौकरी वालो की है. कही नौकरी वाले को छुट्टी नहीं मिलती और मिल भी गयी तो वह घर में बैठकर सेलिब्रेट करेगा वाह भाई बीबी के साथ रोमांटिक बात न करे.
और जो ४० पर्तिशत जाते हैं. वे हिन्दू,मुसलमान, ठाकुर,ब्रह्मण,यादव,दलित,बनिया या कुछ और होते हैं उन्हें अपने बच्चो का भविष्य नहीं दिखाई देता, उन्हें अपने जाती व धर्म की ऊँची नाक या मुर्गा-दारू की बोतल दिखाई देती है. जो लोग देश समाज और आने वाली पीढ़ी के भविष्य देखकर जाते है जरा बताएं उनकी संख्या कितनी होगी.
यदि हम सही रूप से व जिम्मेदारीपूर्वक वोट का प्रयोग करें. धर्म, जाती नहीं बच्चो का भविष्य चुने तो पैसे की लड़ाई नहीं होगी चुनाव में, इमानदार आदमी जीतेगा जिसे पैसा नहीं सम्मान प्यारा होगा और वह आपको साथ लेकर अधिकारीयों को इमानदार बनाने की मुहीम छेड़ेगा, आपकी समस्या ऊपर तक पहुंचाएगा.. वह पैसे खर्च नहीं किये तो विकास कार्यो की अनदेखी नहीं करेगा. भारत भ्रष्ट चार में नहीं ईमानदारी में नाम कमाएगा. 

 जी हां, आप इस आरोप से बरी हो सकते हैं. आपने वोट भले ही नहीं दिया, पर घूस को मारिये घूँसा, सूचना के अधिकार का प्रयोग कीजिये, अपने इस अधिकार का यदि ईमानदारी से करें. विकास कार्यो की जाँच अधिकारी ही नहीं आप भी कर सकते हैं. आपके पास पावर है, और यह पावर उन्ही ने दिया है जो भ्रष्टाचार के अंग बने हुए हैं. आप जानते हैं जब देवता,ऋषि मुनि के रूप में ईश्वर खुश होकर किसी राक्षस को अमर होने का वरदान देते थे तो उसकी मौत का कारण भी बता देते थे, भ्रष्टाचार के पोषको ने भ्रस्टाचार रुपी राक्षस को ख़त्म करने का हथियार दिया है तो उसका प्रयोग भी करें. आइये अपनी जिम्मेदारी निभाएं.
{सभी फोटो -- गूगल महराज}

बुधवार, 30 मार्च 2011

आज ही के दिन ललकार उठे थे मंगल पांडे

भारत की आजादी के इतिहास में 29 मार्च 1857 स्वर्णाक्षरों में अंकित है। इसी रोज अंग्रेजों के खिलाफ बागी जिला बलिया के वीर सपूत मंगल पांडे ने बंदूक उठाई और दो अंग्रेजों की हत्या कर प्रथम जंग-ए-आजादी का एलान किया था। अंग्रेजी फौज से बगावत व दो अंग्रेजों की हत्या के जुर्म में हालांकि बाद में उन्हें फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया, पर मंगल पांडे की ओर से जलाई गई आजादी की चिंगारी ने आने वाले दिनों में ईस्ट इंडिया कंपनी की हुकूमत को जला कर राख कर डाला।
बलिया के नगवा गाव का यह सपूत अंग्रेजों की फौज 34 नेटिव इंफैन्ट्री का सिपाही था। नंबर था 1446। बैरकपुर छावनी के मैदान में 29 मार्च, 1857 को मंगल पांडे सुबह सफेद टोप, लाल रंग का बंद कोट व दो पोछिटा धोती पहने बंदूक व तलवार से लैस अपने साथी सिपाहियों को ललकार रहे थे..भाइयो, बैरक से बाहर निकलो, मेरे पास आओ, अंग्रेजों को मार भगाओ और उनका कब्जा खत्म करो। मंगल पांडे की ललकार से चारों ओर सनसनी फैल गई। मैदान में आवाज सुनकर लेफ्टिनेंट जनरल ह्यूंसन पहुंचा तथा जमादार ईश्वरी प्रसाद को मंगल पांडे को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। लेकिन, ईश्वरी प्रसाद ने आदेश को मानने से इनकार कर दिया। इसी बीच घोड़े पर सवार लेफ्टिनेंट जनरल वाफ भी मैदान में पहुंचा। मंगल पांडे ने वाफ पर गोली दाग दी। गोली घोड़े को लगी और वाफ नीचे गिर गया। उसने मंगल पांडे पर गोली चलाई, लेकिन गोली नहीं लगी। इसी दौरान वाफ की मदद के लिए ह्यूंसन आगे बढ़ा। मंगल पांडे ने उस पर गोली दाग दी और ह्यूंसन ढेर हो गया। फिर, मंगल पांडे ने तलवार से वाफ को भी काट डाला। बाद में जब मंगल पांडे को लगा कि उन्हें अंग्रेज गिरफ्तार कर लेंगे तो उन्होंने खुद को गोली मार ली। वह मरे तो नहीं, लेकिन गंभीर रूप से घायल हो गए। अंग्रेज अफसर के आदेश पर मंगल पांडे को न पकड़ने के आरोप में जमादार ईश्वरी प्रसाद को 6 अप्रैल को फासी पर लटका दिया गया। घायलावस्था में मंगल पांडे का सैनिक न्यायालय में कोर्ट मार्शल हुआ और आठ अप्रैल 1857 को बैरकपुर में ही उन्हें फासी दे दी गई। मंगल पांडे को अंग्रेज 7 अप्रैल को ही फासी देना चाहते थे, लेकिन उस दिन स्थानीय कोई भी जल्लाद फासी देने को तैयार नहीं हुआ। अगले दिन चार जल्लाद कोलकता से बुलाए गए, जिन्होंने उन्हें फासी दी। हालाकि, सैनिक न्यायालय ने मंगल पांडे की फासी की तिथि 18 अप्रैल निर्धारित की थी, लेकिन अंग्रेजों ने गुपचुप तरीके से उन्हें दस दिन पहले ही फासी दे दी। इतिहास बताता है कि अंग्रेज 18 अप्रैल तक मंगल पांडे को जिंदा रख कर कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते थे। मंगल पांडे की फासी के बाद भारतीय सिपाहियों में आक्रोश बढ़ने लगा। यह मेरठ छावनी में 10 मई 1857 को फूटा। वहां के सिपाही खुद को आजाद घोषित करते हुए दिल्ली की ओर कूच कर गए। इन सिपाहियों ने 11 मई को दिल्ली को अंग्रेजों की दासता से मुक्त करते हुए बहादुर शाह जफर को भारत का बादशाह घोषित कर दिया। बाद में लंदन की महारानी ने भारत से ईस्ट इंडिया कंपनी की सत्ता को समाप्त कर हुकूमत की बागडोर अपने हाथ में ले ली। देश आज आजाद है। इसके बावजूद अब तक मंगल पांडे के अवदान का सही मूल्याकन नहीं हुआ। पूर्वाचल में उनके निशान ढूंढ़े नहीं मिलते, यह हमारे लोकतंत्र के शहजादों की पोल खोलते हैं।


साभार: दैनिक जागरण

मंगलवार, 29 मार्च 2011

मनमोहन जी विश्वकप में भारत की इज्जत लुटवाने की अग्रिम बधाइयाँ

कल मोहाली में क्रिकेट मैच है हिन्दुस्थान और पाकिस्तान का..सुना है भारत के प्रधानमंत्री भी आ रहें है..कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री जी ने अन्ना हजारे को समय देने से इंकार किया था व्यस्तता का हवाला देते हुए.. हाँ भाई अन्ना हजारे उनके मंत्रियों के लूट का हिसाब मांगने वाले थे एक हिंदुस्थानी की हैसियत से..
अब मोहाली के लिए माननीय प्रधान मत्री जी को समय मिल जाता है...अगर भारत जीते या भारत हारे दोनों ही परिस्थितियों में न तो काला धन वापस आ सकता है,न ही महंगाई घट सकती है, न ही ये चोर सरकार अपनी चोरी और लूट को बंद कर सकती है...एक सामान्य नागरिक की हैसियत से मैं जो सोचता हूँ या पाता हूँ हम लोग भावना के आवेश में बह जातें है...अभी भावना क्रिकेट की है..कल महंगाई..परसों काला धन तो कभी भोपाल..

भोपाल से याद आया हम लोग ने कितनी चिल्ल पों मचाई थी कुछ माह पहले भोपाल गैस कांड को ले कर...मीडिया ने भी मिले सुर मेरा तुम्हारा करते हुए बेचना शुरू कर दिया था भोपाल त्रादसी के जख्मों को..
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क्या बदल गया भोपाल में तब से आज तक...कुछ नहीं...लेकिन हमने तो मोंबत्तियां जला ली ..ब्लॉग लिख लिया और बस हो गया भोपाल कांड ख़तम....
मुद्दे को उठाने से जरुरी उसको तब तक जीवंत रखना होता है जब तक वो अपनी परिणिति तक न पहुच पाए ...और कई लोग बोलेंगे की आज भोपाल मुद्दे का क्या ओचित्य है.. तो मित्रों आज न तो बरसी है भोपाल कांड की,न ही किसी विकिलीक्स ने खुलासा किया है..ये मुद्दे को जीवंत रखने का एक सामान्य आदमी का एक छोटा सा प्रयास है...

आगे देखें तो हमारे प्रधानमंत्री जी ने नापाक पाक के सभी आतंकवादियों को सरकारी मेहमान बनने का न्योता भी भेज दिया..
अरे कसब और अफजल जैसे दामाद पा के आप का जीवन धन्य नहीं हुआ की आज ये दोगलापन दिखा रहे हो...ये दोगला शब्द का चयन मैंने पुरे होशोहवास में किया है...क्यूकी इस निर्णय से कहीं न कही एक आम हिन्दुस्तानी भी आहत है..मुंबई हमलों के बाद इसी सरकार ने गले फाड़ फाड़ के कहा था की अपराधियों पर बिना किसी करवाई के कोई वार्ता नहीं होगी...शर्म अल शेख में क्या कसब की हालचाल देने गए थे आप..और गए भी तो बलूचिस्तान बलूचिस्तान का मन्त्र पढ़कर भारत को ही कटघरे में खड़ा कर दिया...आप भारत के प्रतिनिधि थे या पाकिस्तान के बिचौलिए.
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ये तो फिर भी उच्च स्तर की बातें है जिसकी समझ मुझे न हों मुझे ये बताएं आज तक पाकिस्तान ने खुल्ला घूम रहें मुल्ला और अपराधियों के आवाज के नमूने भी नहीं दिये पकड़ना तो दूर और हम दुम हिला रहें है कायरों की तरह और मैच दिखा रहें है..अतिथि सत्कार कर रहें है....कोई आश्चर्य नहीं होगा इस भरत मिलाप के कुछ माह में ही भारत में बम फोड़े जाएँ या कश्मीर में कत्ले आम हो.. तो हम हर बार अपनी ही बातों से फिर जातें है ..एक पाकिस्तानी पत्रकार को कहते सुना था मैंने की पाकिस्तान को वार्ता के लिए झुकने की जरुरत नहीं है,भारत वाले १-२ साल बाद खुद ही आयेंगे हमारे पास ..
.तो सोनिया के मनमोहन जी आप के आप के सरकार की,युवराज और महरानी की पाकभक्ति के कायल पाकिस्तानी भी है..वो जानते है की आप के लिए कसब और पाकिस्तानी जल्लाद प्यारें है तो आप मैच देखने आयेंगे ही गिलानी से चोंच लड़ायेंगे ही...हा गलती से कश्मीरी पंडितों का हाल नहीं लेंगे क्यूकी बड़े दामाद अफजल जी नाराज हो जाएँगे..
चलिए आप को विश्वकप में भारत की इज्जत लुटवाने की अग्रिम बधाइयाँ ...

जय हिंद

सोमवार, 28 मार्च 2011

मैं भीष्म हूँ

मित्रों सोच रहा था लेख से ब्लॉग पर कुछ लिखना शुरू करूँ या कविता से...क्यूकी कविता मेरी प्रेरणा है और लेख मेरा सामर्थ्य..
तो सोचा शुरुवात भावना से करता हूँ...इसी कविता से ब्लॉग लिखना भी शुरू किया था मैंने..शायद हमारे पूर्वांचल पर भी सटीक है ये कविता...हमारा पूर्वांचल भी भीष्म जैसा ही है अपनों के शर से बिंध हुआ शर शय्या पर पड़ा हुआ.......
...............................................


मैं भीष्म हूँ
त्याग की प्रतिमूर्ति,
प्रतिज्ञा का पर्याय,

शर शैया पर पड़ा हूँ
,


बाणों से बिंधा हुआ,
उस युग मे भी..
इस युग मे भी..
ये सारे शर,मेरे प्रिय के हैं,
प्रिय पुत्र अर्जुन के...


जिनका संधान सिखा था उसने,
अनवरत मेरी साधना से,
गुरु द्रोण की तपस्या से..

लेकिन कही नहीं था शामिल,
मेरे साधना में..या द्रोण की तपस्या में,
धर्म की रक्षा के लिये,
अधर्म को अपनाना
भीष्म को जितने के लिये
शिखंडी को कवच बनाना

लेकिन ये उपाय भी तो मैने ही बताया है..
धर्म की रक्षा के लिये,
इच्छा मृत्यु का वरदान गंगा से,
मैने ही तो पाया है.....

वो एक महाभारत था,
हर युग मे महाभारत होगा,
मगर,
मै भीष्म डर रहा हू आज,
सूर्य के उतरायण होने से..
मुझे मृत्यु का किंचित भय नहीं है...
मगर,
सूर्य उतरायण हुआ तो,
अब शिखंडियो की फ़ौज से कौन टकराएगा,
अगर मैने ये शारीर छोड़ दिया तो,
अर्जुन को विजय कौन दिलाएगा..
क्या इस युग मै भी
कोई गंगा से इच्छा मृत्यु का वरदान पायेगा???
मैं भीष्म हूँ...........



."आशुतोष नाथ तिवारी"

शनिवार, 26 मार्च 2011

आशुतोष बने PBA के प्रथम अध्यक्ष


पूर्वांचल की मिटटी में पैदा हुए ब्लॉग लेखको का प्रथम संगठन  "पूर्वांचल ब्लोगर्स असोसिएसन" का प्रथम अध्यक्ष आशुतोष नाथ तिवारी जी को घोषित किया जाता है. आशुतोष जी अपने निजी ब्लॉग "हिंदी कविता-कुछ अनकही कुछ विस्मृत स्मृतियाँ" और "आशुतोष की कलम से.." में अपनी भावनाओ को व्यक्त करते {लिखते} हैं, इसके अलावा वे भारतीय ब्लॉग लेखक मंच,    आल  इंडिया ब्लॉगर्स एसोसियेशन   से भी जुड़े हैं. 
पूर्वांचल की वीरभूमि  देवरिया जिले की माटी में पले बढे श्री तिवारी का परिचय उन्ही के शब्दों में........ 
जन्म से मूलतः उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले की माटी में पला बढ़ा.गाँव का नाम नोनापार है जो हमेशा मेरे लिए आकर्षण और समर्पण का केंद्र है.. प्राथमिक शिक्षा यहीं प्राप्त की.स्वभावतः मैं साहित्य प्रेमी हूँ लेकिन परिस्थितिवश उच्च शिक्षा में इलेक्ट्रोनिक्स अभियंत्रण और विपणन प्रबंधन को चुना,और आगे की शिक्षा लखनऊ और नई दिल्ली में ली..जानने वाले कहतें है विद्रोही प्रवृति का इन्सान हूँ..और यही मेरे व्यक्तित्व का सम्बल और कमजोर पक्ष दोनों है ... मैं चिंगारी को कुचलने की जगह चिंगारी को हवा दे कर हर एक उस सामाजिक परिवारिक या व्यक्तिगत व्यवस्था में एक क्रांति लाने का विचारक हूँ जो दोगली विचाधाराओ पर आधारित है ... मैं स्वदेशी और मातृभाषा का प्रबल समर्थक हूँ..व्यक्तिगत जीवन में भी इस विचार का अनुकरण करने का प्रयास करता हूँ ... मगर विडम्बना यह है की इन सब के बाद भी एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी मे कार्यरत हूँ.इस विरोधाभास की सफाई में इतना ही कह सकता हूँ की भूखे पेट और बिना बंदूकों के कोई जंग नहीं जीती जाती...व्यवस्था बदलनी है तो उसका हिस्सा बनना हमारी जरुरत है ... कभी कभी कुछ अनकही भावनाये व्यक्त करने के लिये कविता या लेखों को माध्यम बना लेता हूँ. उम्मीद करता हूँ की आप को पसंद आयें..
श्री तिवारी को यह जिम्मेदारी सौंपते हुए मैं विश्वास जताता हू की वे पूर्वांचल के ब्लॉग लेखको के इस प्रथम संगठन को बुलंदियों तक ले जायेंगे. आज से इस संगठन पूर्ण जिम्मेदारी आशुतोष जी के हाथ में रहेगी. मेरा हस्तक्षेप कदापि नहीं रहेगा. सिर्फ सलाहकार के रूप में मैं सदैव हाज़िर रहूँगा. 

कौन बनेगा अध्यक्ष ...............?

कौन बनेगा अध्यक्ष ?
                        
                           सिर्फ पूर्वांचल से जुड़े ब्लोगरो के लिए
कैसा लगा शीर्षक, पूर्वांचल के सबसे पहले असोसिएसन की की सबसे अनोखी प्रतियोगिता.. 
जी हा अभी तक यह होता था की कोई एक ब्लोगर असोसिएसन बनाता था और मनचाहा पद बांटकर खुद मनमानी करता था. संगठन के सदस्यों या पदाधिकारियों की कोई परवाह नहीं. जिसको चाहे जिस पद पर बिठा दिया. और जब चाहे बाहर का राश्ता दिखा दिया ... क्या यह संगठन है जी नहीं. भैया यह तो बसपा सरकार है. जो एक ही आदेश पर चलती है. पर यहाँ संयोजक की मनमानी नहीं चलेगी. चलेगी सिर्फ संगठन की मनमानी और यह करेगा संगठन बहुमत के साथ , 
पहली बार जिसे मेरी चुनौती स्वीकार है जो इस संगठन को चलाने का माद्दा रखता हो. उसे हम पहला " अध्यक्ष" बनायेंगे
हमारी शर्त पूरी करिए और बन जाईये अध्यक्ष ..............
*  इस संगठन का मैं आजीवन संस्थापक/ संयोजक रहूँगा. अपने बाद मैं संयोजक किसी को भी बना सकता हूँ. 
पर संयोजक का अधिकार सिर्फ सलाह देना रहेगा, मानना न मानना संगठन की जिम्मेदारी. यह शर्त मुझपर भी लागू होगी. 
अध्यक्ष का कार्यकाल एक वर्ष होगा. वह कोई भी निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र होगा. पर निर्णय लेने से पहले अन्य पदाधिकारियों की सलाह लेना आवश्यक. अंतिम निर्णय अध्यक्ष का होगा जिस पर कोई विवाद नहीं होगा. 
* प्रति वर्ष अध्यक्ष का चुनाव होगा. पर अन्य पदों का चुनाव अध्यक्ष करेगा ताकि वह अपनी टीम के साथ कार्य करे. 
यदि आप में एक सामुदायिक ब्लॉग चलाने की हिम्मत है तो आईये खुद को साबित कीजिये की आप में वह माद्दा है  की आप चुनौतियों का सामना करना जानते है. सोच लीजिये मुकाबले की चुनौती  "भारतीय ब्लॉग लेखक मंच"
के संस्थापक ने दिया है. 
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